Saturday, May 31, 2008

दिल और जान


दिल की लगी है बुझती नहीं
आंसूं की झडी है जो रूकती नहीं

हमने तो तराने गाये थे तेरे को खुदा जान कर
बाहों के ताज पहिनाए थे दिलरुबा जान कर

तू पत्थर का सनम निकलेगी यह गुमान ना था
किस्मत अपनी अपनी नहीं तो मैं आदमी था काम का

दिल की चिंगारी को दिलजला ही जानता है
शोले जब भड़के आशिक के दिल में 'जख्मी' ही जानता है

चाँद भी तू तारे भी तू आगोश में मेरे तो बहारें भी तू
तू दूर तो अमावस और पूनम की रात अगर पास है तू

खुदा-बुदबुदा


जवानी में हसीना का पसीना इत्र ए गुलाब
और बाद में उसका सीना चारमीनार ए हयद्राबाद

हमें मुर्गा मुस्सलम नहीं सिर्फ दावत ए शिराजी चाहिए
तुम्हारी सांसे नहीं सिर्फ साथ जीने की आसें चाहिए

कहाँ खुदा- कहाँ बुदबुदा
मैं तो इंसान हूँ इंसान ही भला


भूल गए सुबह की नसीहत जो शाम ख़राब करते हो
लड़ने जीने की बात करते हो दिल पे वार करते हो

तुम करो या मैं करू किसी का साझा नहीं है
काम सब को है इम्त्ज़ार में कृष्ण के राधा नहीं है

अक्स ए खुदा

हमारी वफ़ा तुम्हे दगा लगती है
हम तुम्हारे इशारे पर चले फिरभी तुम्हे तसल्ली नहीं मिलती है


हम तुम्हारा नाम लेकर निकले थे तुम्हारा दिदार करने
तुम्हें पाया रकीब की बाँहों में मायूस हो हम निकले

हर इंसान में सैतान और भगवान छुपा होता है
तुमने जो देखा वोह सही होगा उसकी कुदरत में उसका जलवा होता है

आशिक माशूक को बेटा बाप को, चेला उस्ताद को भगवान का दर्जा देता है
हवानियत साथ चले पर नाम अल्लाह, खुदा भगवान का ही लेता है

फितरत इन्सान की होती है रंग पलटने की, नहीं पलटने वाला तो भगवान होता है
तुम्हारे कर्म में शर्म क्यों है जब की कसूर पैदा करने वाले का होता है
तुमने अगर कुछ करामात करी हो तो वाकई में इल्जाम ए शर्म आता है

शुक्र कर उस उपर वाले का जिसने हमें इंसान बनाया
दीन इमान जज्बात रहम और महोब्बत का सबक पढाया

सोच, कहीं कुत्ता बनाया होता तो क्या होता?
भोंकता दूसरो पर, काटता अपनों को, और झुटन चाट रहा होता

नसीब हमारा की हम तुम्हारी आंखों में बसते है
मुकद्दर के सिकंदर हो जो तुम में अक्श ए इलाही नज़र आते है

Friday, May 30, 2008

दोस्त की जरुरत

ना रेगिस्तान को रेत की
ना आसमान को सितारों की
पर अच्छे इंसान को
अच्छे दोस्त की जरुर जरुरत होती है

राह में चलते कोई साथी मिल जाये तो
मंजिल समीप होती है
जीवन के सफर में हमराही और
उसके बाद भी चार कंधो की जरुरत होती है

क़यामत तो उस दिन आती है
जिस दिन दोस्ती बेमुरवत होती है

मारवाडी हमेशा व्यापार की बात करता है
माल लेता है दाम देता है

तुम भी गुरु मारवाडी हो
और हम भी राजस्थानी हैं
स्क्रैप दो
स्क्रैप लो
गलती हो तो माफ़ करो
पसंद आये तो तारीफ करो

इसही में जीन्दगी मस्ती से गुजर जानी है

जीवन और बुलबुला


पानी का बुलबुला सा जीवन
कुलाचे भरता है मन
बचपन से जवानी
आनी और जानी
बुलबुला देखने में सुंदर
मोटा ताजा दिलबर
फूटता है बुलबुला
निसान बाकी रहता नहीं तब
जीन्दगी और बुलबुले का फर्क
जीते जी नाम मरने के बाद अमर

Thursday, May 29, 2008

बेमौसम बरसात

जिस नारे से गौरों के दिल दहलाये
वन्देमातरम गान हमें क्यों याद नही
मेरठ मे जो क्रान्ति दूत बन ललकारा
मंगल का बलिदान हमें क्यों याद नही
देख वीरता गौरे भी थे घबराये
झांसी वाली शान हमें क्यों याद नही
अजीमुल्ला रंगो जी नाना टोपे
नायक बडे महान हमें क्यों याद नही
लाल किले से जफर क्रान्ति उदघोष किया
पुत्र किये बलिदान हमें क्यों याद नही
सन संतालीस नया सवेरा लाल किला
तीन रंग का मान हमें क्यों याद नही।


वन्दे मातरम हमें याद है।
शहीदों की कुर्बानिओं के रंग हमें याद हैं॥

नेताजी का तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा' याद है।
नारा ए बजरंगी हर हर महादेव भी हमें याद है॥

लाहोर की शांती बस और कारगिल भी याद है।
इंदिरा का बांग्ला संग्राम और अटल का अणुपरीक्षण भी याद है॥

कुछ नहीं भूले हमें सब याद है।
लेकीन हमें बड़ा दुख है और रंज आज है..

तुम अपने गुरु को याद करा रहे हो नौजवान ।
तुम्हारा शोर बेमौसम बे बादल बरसात है ॥
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

Wednesday, May 28, 2008

तुम्हारा सोचना और हमारा मरना

इस से बढ़ कर,मैं क्या ज़ब्त की मिसाल दूं
वो मेरे पहलू में बैठ कर, बहुत रोया किसी और के लिए


मिसाल तो तुम देती हो हमारी
जबकि हम तो खोये थे तुम में हमें तो गुमान भी नहीं
तुम क्या जाग रही थी हमारी बाहों में, किसी को याद करते,
जो हमारे इश्क का अहसास ही नहीं

अरे वोह आंसू तो तुम्हारे बिछड़ने की सोच से ही निकल पड़ रहे थे
तुम जग ना जाओ, कंधे से सिर न हटाओ,
इस लिए हम चुप चुप सिसकियाँ भर रहे थे


तुझसे बिछड़ कर ओ मेरे बेखबर
में नजाने किस किस की हो गई हूँ


यह तो हमें मालूम था तेरा जलवा
तुझे खुद ही नहीं पता तू किस किस के आगोश में सो चुकी है
तू एक के साथ या हो सो के हाथ,तू तो हम से दूर हो चुकी है


इक उम्र से यही है मेरे दिल के आरजू
वो सामने बैठा कर मुझे देखता रहे


अल्लाह पर ऐतबार कर, अच्छे कर्म कर, वफ़ा कर वफ़ा ले
हालात हमारे भी ऐसे ही हैं तू सामने हो और दम हमारा निकले

होसला तुझ को न था मुझसे जुदा होने का
वरना काजल तेरी आंखों मैं न फेला होता


तुझे बहुत गुमा है अपनी खूबसूरती का जो काजल की बात करती है
रात तेरे साथ गुजारी थी आँखों ने
कितने ही आंखों ही आँखों के इशारो में,
जगह ही कहाँ बची थी जो वोह वह्ना रुका होता

जिंदा जब तक रहेंगे आपके दिल में रहेंगे
दर्द ए जीगर जालिम होता है दवा हम करेंगे

दोस्ती के लिए जान देने का जज्बा रखते हैं
मरने के बाद भी कसम आपकी यादो में बसके रहेंगे

साकी और मयखाना

अल्फाज बयां ही करते है, दम तो बयां करने वाले में होता है
दिल को दिल की कशिश परदे में भी होती है रूबरू होने में क्या रखा है

साकी तो मयखाने में जाम लिए पैगम्बर होती है जैसे मूर्ति बुतखाने की
बुत की पूजा दूर से करो जनाब होटों से लगाने में क्या रखा है ॥

साकी का तो काम है गुस्ताखी करना और दीलों
को
तोड़ना
तुम आँखों से प्याले चटकाते रहना ॥

जब तक जेब में माल है साकी इस्तमाल है
जहाँ माल खत्म है वहां साकी दुसरे की दुल्हन है ॥
इसलिए साहेब

कुफ्र से तौबा करो अल्लाह से नाता करो
बदी से टलो नेकी पर चलो गरीब की आह से डरो ।।

आह तो वोह चीज है जो मरी भी लोहे को गाल दे
तुम अल्लाह के नाम भरो तो वोह तो मोत को भी टाळ दे ॥


कमाई करो, जेब खाली करो, ऐश करो
भाभी जान से इश्क करो, दोस्तों पर नेमत करो ॥

हुजुर, हम तुम्हारे साकी और मयखाना दोनो हैं
रूबरू तुम्हारे आगोश में साकी के हैं ॥

होटों से लगा कर भी हमें नशा नहीं आया
तुम यह जाम खाली करो दूसरा पीछे आया॥

आह भरो यह प्यार करो अंगार बनो या पानी
साकी तो साझे की है इतना तो जानलो सानी॥

हाल ए आशिकी

शब ए बजम ए जलाल जो देखा तेरा,
आँखे झुकी थी मुह लाल था तेरा,

आशिकों का येही हाल होता देखा होगा ,
ज़माने ने हसीनो के पैर दबाते, जूते खाते देखा होगा

और भी बहुत से गम है इस ज़माने में
भूल जा आशिकी-गम भुला जा मयखाने में

दोस्ती और शायरी

काम पड़ने पर तो मतलबी याद करते है
हम तो वोह शह है जो दिल पर राज करते हैं

हिचकियों की परवाह किसे होगी
हम तो तुम्हारी तस्वीर साथ रखते हैं

शायर का हर धर्म- इमान होता है
वोह तो खुदा की तरह दुनिया का निगेहबान होता है

दुनियादारी की बात शायरी नहीं व्यापर होता है
सूरमा या कायर का तमगा हर शायर को स्वीकार होता है

इबादत करोगे वरदान पाओगे
मुलाकात करोगे सौगात पाओगे

हिसाब यारी में किस बात का
तुम हमारे हो तो शक किस बात का

हर खामोशी का कोई हमराज होता है
तन्हाई में मिलने में भी कोई राज होता है

दोस्ती किसी भी चीज से तोली नहीं जाती
तुम्हारी कसम हमें हर दोस्त पे नाज़ रहता है

तुम यारों के चौधरी हो तो हम भी यारों के कन्हैया है
जब दिल ही दे दिया एक दूजे को तो सारे साजन और सैया हैं

Tuesday, May 27, 2008

फितने से सवाल जवाब

तुम दुर्गा हो तुम शक्ति हो
तुम ही इंदिरा सोनिया सी राज करती हो

तुम रति रम्भा और उर्वशी हो
तुम ही मीरा हो तुम मेरी भक्ति करती हो

तुम बोर कहो या हंसी कहो
हमने तो इज्ज़त बख्शी है की तुम खुश रहो

दुःख तो हमरे पास नहीं फटकता
हमने तो तुमसे आशियाँ जोडा है

हम जैसे भी हैं वैसे ही हैं
तुम क्यों पेट पिटती हो कल्पती हो

दुखी मत हो। यह मेरी नीयती है।
मैं नारी शक्ती हूँ। जब भी मैंने
तुम्हे ठेठ उजाले से जोड़ा है
तुमने मुझे इसी तरह बोर कवीता सुनाई
और इसी तरह तोड़ा ह


हर इंसान की यही फितरत होती है
भर थाली देख भूख लगी होती है

मुझे तो कृष्ण कन्हैया ही कहते है हुजुर
गोपियों के झुंड पे तो इंनायत ही होती है

तुम अपना बताओ क्या हाल है
दिल में हम बसे सुबह से हमारा ही ख्याल है

तुम्हारी नज़र में हमारा छा जाना ही
हमारा मुकद्दर ए हाल है


ां हां हां हां हां हां हां .....
मैं क्यों घंटी बजाऊ ...मुझे क्या पडी है ..
मीत्तल जी तुम जो शरीफ बने बैठे हो शराफत के कुण्ड पर ।
सच कहती हू गाज बन के गीरते हो परियों के झुण्ड पर ।।



मुझे तो तेरी आंखों ने इतनी पिलादी की मुझे होश नहीं
तुने कहते हैं किया मुझे बर्बाद मुझे खबर नहीं

मैं तो तेरे गेसुओं का कैदी था तुने कब रिहा किया
मैं तो तेरी आँचल की खुशबू में डूबा था कब बाहर किया

मैं तेरा आशिक था हुस्न की मलिका
गम नहीं तुने ही इस नाचीच को बर्बाद किया

गुलशन में कितनी ही कलियाँ चटकी हर आवाज पे
मैं यह समझा तुने ही इरशाद किया

तू मुडके देखेगी इस आशिक को जान ए मन
तुझे मालूम होगा तुने खुद से ही बेवफाई का आगाज़ किया


सोज़-ए-गम दे मुझे उसने ये इरशाद किया
जा तुझे कशमकश-ए-दहर से आज़ाद किया
वो करें भी तो किन अलफ़ाज़ में तेरा शिकवा
जिनको तेरी निगाह-ए-लुत्फ़ ने बरबाद किया
इतना मानूस हूँ फितरत से, कली जब चट्की
झुक के मैंने ये कहा, ''मुझ से कुछ इरशाद किया?''
मुझको तो होश नहीं, तुम को खबर हो शायद
लोग कहते हैं कि तुमने मुझको बरबाद किया


वल्लाह कया बात है.......

जब भी तुम्हे देखता हूँ
उपर वाले की कुदरत नजर आती है
तुझे आती होगी बदबू
हमें तो तेरे में गुलाबों की मुलामियत और खुशबू नज़र आती ह
तू मौन है कायनात सून है
छत के उपर मून है
लोहे की खनक चाहे चांदी की चमक
तेरे हुस्न के सामने सब गौण है


जब मै अपनें ही जैसे कीसी आदमी से बात करती हूँ,
साक्षर है पर समझदार नहीं है ,ये सोच के डरती हू..
अब कुछ बोलो भी जनाब ..
जब मैं भूख और नफ़रत और प्यार और ज़िंदगी
का मतलब समझाती हूँ-
जब मैं ठहरे हुए को हरकतमें लाती हूँ -

..चुप्पी तोड़ो ना


तुम ठीक ही ड़रती हो
समझदार हो
अपनी औकात समझती हो
मतलब समझाने का दम भी भरती हो
कायनात पे हुक्म चलने का जज्बा भी रखती हो
मुर्दा में जान ठंडे में गर्मी भरने का दावा भी करती हो
हे नाजनीन, हे महजबीं ................
डरती हो हमारे हुनर से
चुप रहने का इशारा भी करती हो

हम तुम्हारा इशारा समझते है
तुम्हारी हर अदा पे हम जा निस्सार करते है

तुम कहोगे तो सारी जीन्दगी चुप रहेंगे हम ,
नहीं खेलेंगे तुम्हारे हसीं जज्बातों से
यह अहद आज हम करते है

कैसी लगी हा .....हा.......हा.....


कई बौखलाए हुए मेंढक
कुएँ की काई लगी दीवाल पर चढ़ गए,
और सूरज को धीक्कारने लगे
--व्यर्थ ही प्रकाश को लीये घूमता रहता है
सूरज कीतना मजबूर है की हर चीज़ पर एक सा चमकता है।
चाहे बदबू हो या "खुशबु"

Monday, May 26, 2008

दिल ए हाल ए दास्तान

सोज़-ए-गम दे मुझे उसने ये इरशाद किया
जा तुझे कशमकश-ए-दहर से आज़ाद किया

वो करें भी तो किन अलफ़ाज़ में तेरा शिकवा
जिनको तेरी निगाह-ए-लुत्फ़ ने बरबाद किया

इतना मानूस हूँ फितरत से, कली जब चट्की
झुक के मैंने ये कहा, ''मुझ से कुछ इरशाद किया?''

मुझको तो होश नहीं, तुम को खबर हो शायद
लोग कहते हैं कि तुमने मुझको बरबाद कियआ
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मुझे तो तेरी आंखों ने इतनी पिलादी की मुझे होश नहीं
तुने कहते हैं किया मुझे बर्बाद मुझे खबर नहीं

मैं तो तेरे गेसुओं का कैदी था तुने कब रिहा किया
मैं तो तेरी आँचल की खुशबू में डूबा था कब बाहर किया


मैं तेरा आशिक था हुस्न की मलिका
गम नहीं तुने ही इस नाचीच को बर्बाद किया

गुलशन में कितनी ही कलियाँ चटकी हर आवाज पे
मैं यह समझा तुने ही इरशाद किया

तू मुडके देखेगी इस आशिक को जान ए मन
तुझे मालूम होगा तुने खुद से ही बेवफाई का आगाज़ किया



हां हां हां हां हां हां हां .....
मैं क्यों घंटी बजाऊ ...मुझे क्या पडी है ..
मीत्तल जी तुम जो शरीफ बने बैठे हो शराफत के कुण्ड पर ।
सच कहती हू गाज बन के गीरते हो परियों के झुण्ड पर ।।

हर इंसान की यही फितरत होती है
भर थाली देख भूख लगी होती है

मुझे तो कृष्ण कन्हैया ही कहते है हुजुर
गोपियों के झुंड पे तो इंनायत ही होती है

तुम अपना बताओ क्या हाल है
दिल में हम बसे सुबह से हमारा ही ख्याल है

तुम्हारी नज़र में हमारा छा जाना ही
हमारा मुकद्दर ए हाल है

वल्लाह कया बात है


जब भी तुम्हे देखता हूँ
उपर वाले की कुदरत नजर आती है

तुझे आती होगी बदबू
हमें तो तेरे में गुलाबों की मुलामियत और खुशबू नज़र आती ह

तू मौन है कायनात सून है
छत के उपर मून है

लोहे की खनक चाहे चांदी की चमक
तेरे हुस्न के सामने सब गौण है

कैसी लगी हां.....हां.......हां.....

मतलबी दुनिया


इस भरी दुनिया में कोई हमारा ना हुआ
गैर तो गैर सही अपनो का सहारा ना हुआ

उपर वाले को भी इन गलिओं से गुजरते हुए अहसास तो हुआ होगा
क्यों उसने बनाईं यह मतलबी दुनीया. जब किसीने नहीं पहिचाना होगा

भलाई करने वाले को बुराई मतलबी को मिठाई
प्यार करने वाले को रुसवाई कलजुग की येही रीत है भाई

चापलूसों की बातों में नेताओं के वादों में
रिश्वतखोरो के इरादों में, जात धर्म के भागो में
मिलावटीयों के धंधों में हसीना की कंधो पे
धर्म की दुकान पे नेताओं के इमान पे
भोग मस्ती के समुंदर में, रोटी कपडे की दौड़ में
अपने छुट गए सपने टूट गए इस मतलबी दौड़ में
आज इंसान इंसान को भूल गया
अरे उपर वाले तेरी कया बिसात -आज इंसान माँ बाप ही भूल गया

परवरदिगार तुझे कसम है तेरे चाहने वालों की
परम पित्ता परमेश्वर, मत सुनना इन मतलबी इंसानों की

जो भूल गए धर्म और इंसान को, देश और इमान को
देश बेचा धर्म छोडा पैसे को भगवान समझा,खा गए तेरे नाम को

तू आया तो यह जालिम तुझे भी रासन की कतार में खडा करदेंगे
कैसे सहेंगे, तेरे सामने तेरा अपमान, हम तेरे मुरीद, जान दे देंगे

..श्रीकृष्ण मित्तल

विश्वास की जीत

तूफानों में फंसी गयी दुनिया तो कया घबराना
तूफ़ान का तो काम ही है आना और जाना

तूफ़ान कई किस्मों के होते हैं कुछ दिखते कुछ छिपे होते हैं
कुछ उजाड़ जाते हैं बस्तियां हरी भरी फसलें तैरती किस्तियाँ
दिलों के तूफ़ान जीन्दगी भर का जख्म दे जाते हैं
तेरी लग्न के जज्बे हर मंजर पीछे छोड़ जाते हैं


इतहास गवाह है हर रात के बाद दिन निकलता है
हर तूफ़ान के गुजर जाने के बाद नया डेरा तू देता है
सिर्फ तेरे में विस्वास हो .......
कर्म का आगाज हो ..........
दिल में हिम्मत हो ...........
तरक्की का जज्बा हो ........
जीतने की तमन्ना हो ......
हर किसी का साथ हो ......
सिर पे तेरा हाथ हो ........

यकीं कर विस्वास कर ...........

कसम है इस भगवान की उसके जलवे और जलाल की
कि............
कोई तूफ़ान इस दो पाये के इंसानों को
मंजिल पाने को आगे बढ़ जाने को

....रोक नहीं सकता ....रोक नहीं सकता

विशाखा सखी

सखी मैं बावरी सपने में दिखत घनश्याम ।
रात सोलह श्रंगार कीये पिया को जपत कब लग गई लौ शाम ॥


दधि मटकी सर पर धरी ढूँढत श्याम थकी घुमत नंद्ग्राम ।
यशोदा घर गयी तिरछी नयनन सो चितवन देखी सोवत चौर घाम ॥

कहा कहूँ सखी रुकना सकी मैं शर्मा कर भगी छुट गयो नंद्ग्राम ।
लटक पटक दौडत बरसाने पहुंची निकलो नहीं जीयो प्रान ॥

पीछे पीछे नटखट सखा संग पहुचो करवे राधारानी को बदनाम ।
प्रान न निकले तन से चाह दर्शन की लीये आँखों में बसे सूर श्याम ॥

मैं कया जानू रात क्या भयो आँखों में ना नींद तन बिना प्रान ।
सखी तेरे चरणों पडूं वारि जाऊँ कहियो न किसी को मेरे जीवनधन केवल घनश्याम
राधे राधे .................

Thursday, May 22, 2008

राधा रानी के नयन रसीले

कांहा को निरख मंद हसत चितचोर तकत बैन छैलछबीले
बरसाने की गलियन में फिरत त्रिभंग वेश भरत गोपियन को डोले
राधा झाँकत खिड्कन ओट से श्याम बिहारी को पावत नहीं मन में बोले
चैन न आवत किशन बावरे बिना एक छन भी, वेग मिला "श्यामा" रसिक रस रसीले ॥

Wednesday, May 21, 2008

चाँद और तारे

एक अँधेरा लाख सीतारे ।
उलटे थाल में देखो उपर टंगे है सारे ॥

चाँद को देखते है वो तारे ।
जैसे हम घिरे हैं आफतों के मारे ॥

तम से ना वोह हारे ।
आफतों
से हम नहीं मारे ॥

दीन और रात साथ
साथ हैं ।
दुःख और ख़ुशी भी आस पास हैं ॥

कल की याद में कल नहो खोना ।
दुखों की याद में कभी नहीं रोना ॥

शाम होते ही आजायेंगे सीतारे ।
जैसे कोई आकर तेरी
राह
संवारे ॥

एक अँधेरा.....................
पता नहीं कोन पुकारे

याह अल्लाह शराब से तौबा.........

हाले दिल छुपाने को ग़ालिब बहाना करते हो
दर्द, मयखाने, शबाब और शराब पर इल्जाम धरते हो

अगर इस अंगूर की बेटी कोई असर होता
क्या नाचती नहीं बोतल या मयखाना नाचता होता

यह तो साकी की मदहोश आंखों का करिश्मा है
.................जिस ने तुझे पिलाई होगी
बोतलें तो हर जगह मिलती हैं उसे देख कर
.................तेरी नियत पीने को तरस गयी होगी

इस मय को आब ए हयात यूँ ही नहीं कहते है यारां
इसके अंदर जाने के बाद सारी दुनिया लगे ख़राब
..................उतरने पर तू ख़राब लगे यारां

कुर्बान

दाद ए हिम्मत तुम्हारी देते हैं

सच्चाई स्वीकारने की वाहवाही तुम्हे देते हैं

कद्र जज्बे की तुम्हारी हम करते हैं

सारा जहाँ तुम्हारे उपर कुर्बान करते ॥

संगीत की महिमा

जिंदगी एक संगीत है जैसे बहता पानी
संगीत जीवन की प्रेरणा कह गए ज्ञानी

जीवन के तम्बुरे पे प्रभु संगीत गा
इस जन्म में ऐश कर फीर प्रभु चरणों में जा

संगीत खबर करता है तेरी इस धरती पर आने की
संगीत ही बतलाता है तेरे प्रभु के पास जाने की

संगीत ही सुनाता हँ माँ की लोरियां
संगीत ही बताता है प्रेम में लिपटी गोरियाँ

संगीत ही बजाता है रण की भेरियाँ
जोश भी दिलाती है विजयनाद की भेरिया

रत्नाकर जैसे डाकू को संगीत का वरदान मिला
बन गया वाल्मिक ऋषि रामायण गान किया

जब शुकदेव निकल गए घर से तो वेद व्यास ने संगीत सुनाया
भागवत का संगीत सुन बेटा घर वापिस आया

जब तुम किसी को अपनी बात संगीत में सुनाओगे
तो साथिओं हलवा पूरी-आदर मान पाओगे

Tuesday, May 20, 2008

दिल जले

दिलजलों का यही हाल होता है
अन्दर जवालामुखी और मुह लाल होता है ॥

आह निकलती है जालिम की यादों में
दिल आसमा पे रुखसार होता है ॥

दूर बैठी वोह देखती मुस्कुराती है मेरे दिल ए हाल पे
मुझे तो शक है की अंदर से उनका भी येही हाल होता है ॥

जीन्दगी की शायरी

तुम्हारे लफ्ज हमारी जीन्दगी की शायरी है
तुम खुद से अजनबी हो हमसे तो आश्की है ॥
खुशबू तुम्हारे गेशुओं की बस गयी दिलओजान में
रोकते है साँसे खुशबू को अपना मान के ॥

हमें महोब्बत सिखाने का अहद भरती हो
हम तुम्हारे हो चुके झांक के तुम्हारी मदहोश आँखों में क्यों डरती हो ॥
जानम, कसम है तुम्हारी सिर्फ़ और सिर्फ तुम्ही इन आंखों में बसती हो
नींद आये तो तुम ना आये तो फिर तुम ही दिखती फिरती हो ॥

अरमान तुम हो हसरत भी तुम हो
जीन्दगी तुम पर वार दी अबतो मुस्कान भी तुम हो ॥
सांस तो रोक कर बैठे है जानती हो क्यों
तुम आओगी साथ बैठेंगे साँसे टकराएंगी घडी पल दो ॥

मशवरा तुम्हारा हम मुद्दत पहिले मान चुके हैं
तुम भी कर चुकी हो हम भी कर डूब चुके ही॥
फीर तुम्हे खाव्बों में वापसी का ख्याल आया लगता है
हमें तो अपनी बर्बादी का आसार ज्यादा लगता है ॥

जख्म खा खा के यह सीना चौडा होगया है
हसीं फितने को गले से लगा लगा यह खुद कातिल हो गया है ॥
अब तो बारी है जक्मो पे मरहम लगाने की
तेरे पास आने की सीने से लगाने की ॥

इस बार तुम आओ सीने से चिपक जाओगे
कसम तुम्हारे मिलन कि वापिस नहीं जा पाओगे ॥

Monday, May 19, 2008

दिल का अहद

तस्वीर तेरी इस दिल में जब से उतारी है ।
तू क्या जाने हमें मील गयी दुनिया सारी है ॥

इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा न हुआ ।
तुने भी जालिम अपने आंसुओं को हमारी ही आंखों का सहारा दिया ॥

तू अपने आंसू हमारी आंखों से जरुर गिरा सकता है ।
लेकिन क्या तू अपने दिल से हमें भुला सकता है?

.........जीवन का धेय्य ...............


कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर रे इंसान
जैसे कर्म करेगा तू वैसे फल देगा भगवान

जीवन के उदेश्य प्रभु ने बोले की होते है चार
माता-पिता-गुरु,पृभुसेवा जीवनयापन, मानवसेवा यानी सदाचार

साथियों, सदाचार से जीवन का पालन करो
मत रुको चलते रहो प्रभु आदेशों का पालन करो

जिंदा भी मरे हो अगर दुखियों को सताओगे
मर कर भी अमर हो जाओगे जो दूसरो के काम आओगे

बेजान खाल की हाय से लोहा पिघला जाता है
दीन दुखियों की हाय से रावन भी मारा जाता है

द दान द दया द दमन का धर्म सन्देश सभी महापुरसों ने दिया
साथी, व्यर्थ है जीना तेरा अगर तुने इसे नहीं जिया

सहयोग ले सहयोग दे समाज का उत्थान कर
जीवन सफल होगा, मर के भी तू अमर होगा विश्वास कर


शर्म और हया

तेरा यह हुस्न यह जलाल अल्लाह कोई देखता न हो
तू कया जाने मेरा हाल क्यों नहीं देखती है तू

ज़माने से डरते हैं इश्क के दुश्मन हमें कया ड़र चाहे

कोई भी देखता क्यों ना हो

जालिम, हम हैं बेहाल कि किसने किया यह सवाल

कोई देखता न हो

तेरे शबाब कि कसम, लड़ी है जब से तेरी मेरी नज़र,

मर गए है हम चाहे तू देखती न हो

गुलाबों कि मलिका, हुस्न कि परी तेरी अदा है फूलना

और हमारी है तड़पना चाहे तू देखे या न देखती हो ...

अदाओं का जाल

मैंने ठीक ही कहा था तुम्हे की मिला न करो
मगर मुझे ये बता दो की क्यों नाराज़ रहे तुम
खाफ्फा न हो न मेरी जुर्रत -ए -ताखातूब पर
तुम्हे ख़बर थी मेरी जीन्दगी की आस हो तुम

तुमने तो इशारा कर कर के बुलाया था हमें
कौन कहता है मनाही दी थी

अदा तुम्हारी है बुलाना इंतज़ार कराना
वादाखिलाफी कर आग ए दिल को सैलाब बनाना

चस्म ए नज़र , चस्म ए नूर, लख्ते जिगर ...........
अपनी जीन्दगी से कोई खफा होकर जीन्दा कैसे रहे
और तुम तो जानती हो की तुम हमारी क्या हो ?

.

Thursday, May 15, 2008

इस्क और बेवफाई - सवाल जवाब

लिखते हैं खून ए जीगर में डुबो के कलम
क्यों ऐसे सोचती हो मेरी बेवफा सनम

हमें तो मालूम नहीं हमने कहाँ खता खाई है
सात जन्मों की बात करने वाली तू क्यों बनी सौदाई है

तेरे हुस्न को चाहने वाले वाकई में सैकडों होंगे
हमें कसम है जो हम कमजोर पड़े होंगे

शिकवा अपनों से किया जाता है
बेवफा से तो झगडा ही किया जाता है

तुम बेवफाई की मिसाल हो सकती हो
लेकीन हमें बेवफा कैसे कह सकती हो

हमें कसम है जो हम नज़र भी ऊपर उठाएं
खुदा का कहर टूटे हम पे अगर हम भटक जाएं

शर्तें भी तुम लगाती हो
दाग़ ए दामन भी तुम सजाती हो

खुद बेवफाई का एलान करती हो
हमारे दुश्मनों की बांहों में जा जा के सजती हो

कभी कभी दिलरुबा सी बातें भी करती हो
जीन्दगी भर पिने पिलाने का अहद भरती हो

ख़त ओ खिताबत का भी शौक जताती हो
वाह दो नावो में पैर रखती हो

दुनीया ऊँगली पे नाचती हो
लेकिन याद रखना

सचाई छुप नहीं सकती बनावट के असुलों से
खुशबू आ नहीं सकती कागज के फूलों से

शिकवा तुम्हे नहीं बहुत खुब जान ए मन
खुद बेवफा इल्जाम हम पे वाह जान ए मन

कैसे एतबार करेगा तुम्हारा कोई की हमने नहीं चाहा तुम्हे
मेरे खून से भरे तुझे लीखे ख़त क्या फाड़ दिए तुने

इब्तदा ए इस्क तुझे क्या मालूम हकीकत तो बयां की है
हमने तू तो दिल तोड़ कर बैठ गयी दुसरे की डौली में

कहती है हमने मुडके नहीं देखा -
हम तो आँख भरे गुबार देखते रहे

टूट गया दिल जब तेरे सामने पहुंचा ,
मिलन की उम्मीद पर पहाड़ भी थे मैं ने तौडे

यह शहर तुझे ही मुबारक हमें तो नसीब हो वोह गलिआं
जहाँ तेरे साथ की महक आज भी डोले

एक कसम है तुझ को चादर चढा दियो जनाजे पे हमारे
लोग मिसाल दें कि आशिक का जनाजा धूमधाम से निकले


ek shakhs paas reh kar bhi samajha naheen
mujheiss baat ka malaal hai shikva nahin mujhemain usko bewafai ka ilzaam kaise doonuss ne to ibteda sey hi chaha nahin mujhekya kya umeedein bandh ke pohncha tha samneuss ne toh aankh bhar ke bhi dekha naheen mujhepatthar samajh ke paaon ki thokar bana diyaafsos teri aankh ne parkha nahin mujhemujhko bhi theharna na tha uss ke nagar main abachha hua ke usne bhi roka nahin mujhejindgi mein log bohat jaan nisaar theymain marr gaya to koi bhi roya nahin mujhey

"na jaane kon sa aasheb dil mein basta haiki jo bhi thahra vo akhir mukaam chod gayahaath seene pe rakh ke na dikhao mujhkomere toote hoye dil ki vo sada yaad karomaine maana ki vafadaar nahi hun,lekintum kisi aur ko iss tarah barbaad na karo"Hamare mehboob sankdo haiTumhare sheda hazaroon hongayNa tum se sikva na hum pe sikvaGila karoge ! gila karengayBura kahoogay ! bura kahengayMeine maana ki vafadaar nahi hoon lekinTum kissi aur ko iss tarah barbaad na karoHamari shart-e-wafa yahi ha, wafa karoge ! wafa karengeHamara milna hai aisa milna mila karoge ! mila karengeHamara pina pilana kiya hai ?Hamara pina pilana ye haiPilogay tum ! pilaengay humPiya karoge ! piya karengeYe poochna ki kiya khat likhoge ?Ye pochnay ki nahi zarooratTumhari marzi pe hai munhsarLikha karoge ! likha karenge

प्रेम कहानी का हसर शायद यही होता है
टीबी तो सोहनी म्हीवाल - हीर राँझा का नाम होता है

कीतने ही चीडे कुर्बान हो गए हुस्न ए सफ़ेद गुलाब पे
गुलाब तो लाल होकर हसीनो की जुल्फों में जा सजता है

याद करता न कोई चीडे को न गुलाब को,
जमाना तो सजी हुयी जुल्फों पे मरता है

खूबसूरती तो कोई ख़ता नहीं..............
पर अदाओं से कीसी को सता नहीं......

दील की तरह फूलों को न तोड़,
तुझे अदब की बातें पता नहीं..............

बा आदाब बा मुलाहीज़ा होशियार
फितानो पर फीदा होने वाले भोंरे बन समझदार

खता खूबसूरती में कोन बताता है
लेकीन बेवफा पर जान लुटाने में कीसी कीसी को मज़ा आता है

फूल को पांवों से कुचल या जुल्फों में सजा मेरा कया जाता है
फूलों को अदब प्रभु चरणों में अर्पण करने में ही आता है

यह साबीत कीतनी ही बार हुआ ...........
की हुस्न ने बेवफाई की,.. दीलों को कुचला - रोंदा
हाय उन्हें तो मज़ा ही इस् खेल में आता है


dil mera le lene ki khatir minate kya kya na kiaise badle mere sanam matlab nikal jaane ke baad*dard-e-dil tham ke sahtay hai,hum toh chup hi hein !log kya kya nahi kehte hai,hum toh chup hi hein !aap kyon dil ke tadapne ka bura maan gayeaapse kuch nahi kahte hai,hum toh chup hi hein !hum khatavaar nahi hai dil ke behak jaane kaye kagar aap hi dhatay hai,hum toh chup hi hein !*Na dekh mere sabar ki intaha kaha tak hai,Tu sitam karle teri taqat jaha tak hai,raham ki ummed jinhe hogi so hogihumay toh yeh dekhna hai teri zulam ki inteha kahan tak hai !!!


हुजुर ए आला,जानेमन,दिल और जान की बाते करती हो
जानबुझ कर कटे पर नमक छिड़कती हो

हालत तो यहाँ भी कोई ठीक नहीं कटती नहीं रातें
तारे गिनते गिनते सपने में तुम्हारी हमारी बीती राते

पूछो उस चिडे से जो गुलाब के इश्क में फ़ना होगया
गुलाब तो लाल हो जुडे में सज गया चिडा कुर्बाँ होगया

हे नाजनीन हुस्न की परी, ऐसी ही अदाएँ कुछ तुम्हारी है
हम राह तकते हैं तुम्हारी बाहों की, किस्मत में तो बेकरारी है

क्या क्या साथ जीने के ख्वाब हम तुमने नहीं संजोये थे
आंखों में आँखे डाल कर बगीचे में एक दुसरे में खोये थे

तुब तो तुम एक इशारे पर जान छिड़कती थी
जैसे अब रोती हो धमकाती हो ऐसे ही बिसरती थी

फिर एक दीन सय्याद ने चिडीया कैद कर ली
चिडीया तो सोने का पिंजरा देख सय्याद संग होली

सोचा नहीं उसने क्या होगा इस इश्क के मारे का
कौन संभालेगा इस टूटे हुए दिल को तेरे आशिक बेचारे का

जालिम हमने अपने ख्वाबो की मय्यत निकलती देखी थी
बेवफाई हमारी रुसवाई और जगहँसाई झेली थी

दिल के बिखरने से हम धक् से खडे राह गए दिल थाम के
मालूम था हमे हश्र तुम्हारा बैठ गए थे तेरी राह में डेरा तान के

जानेमन, इश्क सिर्फ एक बार होता है
बाकि तो दिल और बदन का व्यापार होता है

हम ने तुम्हे चाह है फिक्र ना करो हम तुम्हारे है
दिल जान कया चीज है हम सारे के सारे तुम्हारे है

सस्सी और सोहिनी कल की यादगार हैं
ये तो आशिकों के बुत है परवरदिगार हैं

लेकिन हम आज के आशिक है जो जान देना नहीं जानते
तुम इशारा करो तो दुनिया पलट दें दुश्मन की जान निकाल दें

बील्कुल सही हम अपने हुनर दिखा चुके अब तुम्हारी बारी है
ख्याल कर लेना तुम्हारी जान तुम्हारी नहीं अमानत हमारी है

हम वादा करते हैं की अगर तुम्हारी आवाज आएगी
दुनिया देखती राह जायेगी तू हमारी हो जायेगी

यह साबीत कीतनी ही बार हुआ ...........की हुस्न ने बेवफाई की,॥ दीलों को कुचला - रोंदाहाय उन्हें तो मज़ा ही इस् खेल में आता है.........तोह ये लीजिये जनाब:

दील चीज़ है क्या ज़ाना, ये जाँ भी तुम्हारी है
तेरी बाँहों में दम निकले, हसरत ये हमारी है

रोटी हूँ तड़पती हूँ, कटती ही नहीं जालिम
एक रात जुदाई की सौ रात से भरी है

फूलों की कदर पूछो, उस दर्द के मारे से
जीस सख्श ने काँटों पे, एक उम्र गुजारी है

इश्क-ओ-मुह्बत के चलो पूछ ले सादिक से
एक बाजी मुह्बत की उस शख्स ने हारी hai

सशी और सोहनी ने जाँ दे दी चाहत में
रोके न मुझे कोई अब मेरी बारी है *

ना मैं नादान हूँ ना मैं भगवान्
मैं तो एक अदना सा आशिक और इंसान हूँ

नहीं भूलता मुझे तुम्हारा गुलाबी चेहरा
वोह गदराया बदन वोह नुफानी जज्बा

मेरी बाहों का सहारा हमेशा तुम्हारा है
तुम इसे गलमाल समझो या सहारा यह फैसला तुम्हारा है

जब तक हम जीन्दा है ऐसा क्यों समझती हो
इंनायत नहीं हक है तुम्हारा अगर तुम हमें अपना समझती हो

मुरझाया कमल हो पीपल चाहे बादल ही सही
तुम हम साथ हों तो तन्हाई की बात भी नहीं

कौन तुमसे जागीर या तकदीर मांगता है

यहाँ तो जान देने की तमन्ना रखते है तुमसे ही वास्ता है

तुमने हमें याद किया अब तुम्हारी परेशानी हमारी है
तुम ख़त लिखो या सिर्फ हिचकी भरो आगे फिक्र हमारी है

now, wot i say.....m speechless....just can say....
bahutttttttt achche........

Tuesday, May 13, 2008

जयपुर का नर संहार

होशियार नफरत के सौदागरों खबरदार
मत तोड़ हमारे सब्र का इंतज़ार

हमने विश्व को मानवता का सन्देश दीया
पंचशील और सद्भावना को माना और जिया

मजहबों से परे जा हर कौम को आदर दिया
इस देश में हर धर्म और मजहब ने प्यार अमन को जिया

कुर्बानी का जज्बा हर वतनी के दिल में है
तू संसद पर आये या जयपुर में जाये,स्वागत को तेरे हम एक हैं

भूल गया तू पिटाई कारगिल के संग्राम की
संसद में तेरी मौत की, जम्मू में तेरी मौत के तूफ़ान की


इस मुल्क का बाल भी बिगड़ता नहीं जब तक मुल्क पर हमारी निगेबाहं है आँखे
सर पे कफ़न माथे पे तिलक त्यार हैं हम कमर बांधे

हमने विश्व से आतंक ख़त्म करने का अहद लीया है
बंग बंधुओं से अफगानों से पूछ हमने क्या क्या नहीं किया है

जहर नफरत का तू इन हरकतों से घोल सकता नहीं
जीत सकता नहीं, बढ़ सकता नहीं हमें तोड़ सकता नहीं

खावायिश तेरी लालकिले पे चाय पीने की अभी भुला नहीं तू
शास्त्री के जय जवान के नारे की मार को आज भी याद कर तू

हमें लाहौर शांती की रेल भेजना आता है
तू अगर पीठ पर छुरा घोंपे तो कारगिल भी करना आता है

आज आखिरी चेतावनी तू इससे मान ले
छोड़ दे यह ओछी हरकते विनाश की तरक्की की डगर थाम ले

मत ले सब्र का इम्थाम हमारा नहीं तो तू पछतायेगा
कसम उस पाकपरवरदिगार की, हम उठ गए तो तुझे कौन बचायेगा

जयपुर के भाईओं इस दुःख की घडी में मत घबराना
पूरा देश तुम्हारे साथ है आतंकियों को है सबक सिखाना

कृष्ण की दिवानी

दिन दहारे सरक किनारे, गोपी खरी कबसे बाट जोहत है ॥
नन्द का छौना, चलत रोज़ इस डगर पर, गोपियन संग अँखियाँ लडावत है ॥

रात सपने में ,मुस्का दिखा चितवन मधुर , गोपियन की नींद उडा,
रास केली दर्शन,करा हिरदय मे हिलोर मचावत है ॥

भोर होते ही, गयियन संग, पाग लचीली, कटी काछनी,
कर में मुरली लिए , गोपन के छोरों के संग देखो कान्हा जावत है ॥

याद किसे अपनी चुनरी सारी, सुन के टेर बंसी की प्यारी,
ले हाथ में माखन को लौन्दा, ब्रजबाला दौड्त कान्हा मिलने की आस लगात है ॥

भूल गयी मैं तो "सखी" सुन श्याम बंसरी, दिन चैन -रात नींद नहीं,
श्याम से मिलन को दिल तडपत, मुझे कछु नहीं भावत है ॥

एकता का संदेश

बचपन में माँ जीवन डगर पर चलना सिखा कर मुश्किलें आसान करती है
बालक के दर्द को झेलती संभालती कदम फूंक फूंक के रखती है

उस ही सीख को जीवन में उतार इंसान आगे बढ़ता है
जब भी मुश्किल सामने आये हाय माँ - हे माँ -हुई माँ करता है

इतहास गवाह है अलग अलग लड़ राजे हारते गए
कुछ आम्भी कुछ जैचंद बन अपनों को संहारते गए

धर्म-जाति- गाँव-गौत्र छुआछुत के आडम्बर में देश गुलाम होगया
सोने की चिडिया कैद हो गयी देश इसाई - मुस्लमा हो गया

एकता की शक्ति को ललकारा दीया नारा ' एक से सवा लाख लडाऊ' गुरु गोविन्द
एकता अहिंसा से सत्याग्रह से देश आजाद कराया साबरमती के संत ने

आजादी का जसं मनाते सरदार ने देश एक कर दिया
उत्तर दखिन पूरब पश्चिम का भेद मिटा उन्नति का पैगाम

कहा आपने संगठन में शक्ति है
इसलिए मैं कहता हूँ

साथी हाथ बढ़ाना देख अकेला थक जाएगा मिल कर बौझ उठाना

Monday, May 12, 2008

प्रभु की माया

घमंड व आत्म सम्मान में बहुत थोडा फर्क होता है.
सामने वाले को भी समझने का भ्रम होता है

कंही पर हम कहना बड़प्पन व घमंड बन जाता है
कहीं पर मैं बोलते ही सामने वाला बिदक जाता है

मैं खुद अपनी आत्मा की आवाज सही मानता हूँ
सामने वाले की इज्जत करता हूँ अपनी चाहता हूँ

कई बार आप सामने वाले का दिल न दुखे इसलिए झुक कर बोलते हो
लेकीन वोह समझता है की वोह बड़ा है और तुम उस से छोटे हो

कई बार हम किसी और दुविधा में डूबे होते हैं
सामने वाला समझता है की हम घमंडी हँ तने रहते है

कई बार कोई मांगने आपके पास बड़ी आस से आता है
देखता है नोट गिनते , खुश हो जाता है

उधर सोच रहे हैं ९५ होगये ५ कहाँ से लाना है
अगर १०० पूरे नहीं कीये तो इज्जत का बाज़ा बाज़ जाना है

आप मांगने वाले को हाथ जोड़ समझाते है
लेकिन आप घमंडी स्वार्थी कंजूस समझे जाते हैं


इसलिए ठगती - घूमती इस दुनिया में यह सब ऊपर वाले की माया है
अपना मन साफ रखो,
दीनों की मदद करो ,
छोड़ दो चिंता
यह तो प्रभु की दी काया है

इसक का भूत


तुम्हारी दिमागी हकीकत ज़माने की सचाई नहीं हो सकती
तुम्हारी रुसवाई, जहान की रुसवाई नहीं हो सकती

दिल आया गधी पे फिर हसीना क्या चीज होती है
मत कर बचपना मानले सीख, यह झूठा ख्वाब बुरी चीस होती है

इत्तफाक से महोबत कामयाब कम ज्यादातर रुसवाई होती देखी है
कल तक की माशुका दुसरे की डौली तीसरे की बाहों में जाती देखी है

अगर तुझे शौक है दिवार से सिर फोड़ने का तो हमारा क्या जाता है

तू इसक कर,.............
आगे पीछे घूम ..............
इबादत कर.................
फीर भी अगर उन्हें यह सब..................
मज़ाक, खाव्ब, इत्तफाक लगता है तो सौच...............
तेरा हस्र कीतना नजदीक हो सकता है

कृष्ण दीवानी



दिन दहारे, सरक किनारे, गोपी खरी कबसे बन्सीवारे की बाट जोहत है ॥

नन्द का छौना , चलत रोज़, इस डगर पर, गोपियन संग अँखियाँ लडावत है ॥

रात सपने में मुस्कान दिखा चितवन मधुर, गोपियन की नींद उडा, रास केली के दर्शन करा हिरदय मा हिलोर मचावत है ॥

भोर होते ही,
यशोदा सज्जा कान्हा को पाग लचीली, कमर काछनी लपेटे, गल हार डाले कर मुरली, गयियन चरान, गोपन के छोरों के संग देखो भेजत है ॥

याद किसे अपनी चुनरी सारी, सुन के टेर बंसी की प्यारी, ले हाथ में माखन को लौन्दा,
कान्हा मिलने की आस में ब्रजबाला दौड्त लगात है ॥

कहे कृष्ण दीवानी -
सुन श्याम की बंसरी, भूल गयी मैं तो जग "सखी", ना दिन चैन -ना रातनींद ,श्याम से मिलन को दिल तडपत, मुझे कछु और नहीं कान्हा ही की चाहत है

उद्धव ने जब मांगी गोपी चरण रज सांवरे की भलाई को, दौड़ दौड़ गोपियन, चरण उठा धरती पे पटक उद्धव को विरह प्रेम का अदभुद रास दिखात है

कृष्ण सखा, देख गोपियन को , लज्जा में डूब डूब, कान्हा प्रेम सागर देख उमड़ता गोपियन के मान में, गोपियन की याद में द्वारकाधीश की दशा ठीक पात मुस्कुरात है

bhagvan

भगवान सुख से सो रहा, असुर धरा सब भेज ।
देवों की रक्षा हुई, फंसा मनुज निस्तेज ॥

हुआ मनुज निस्तेज असुरों से लड़ लड़ के
सिर्फ तेरा सहारा बुला रहा भगवन रो रो के

मधु कैटभ- रावन कुम्भकर्ण- से यह संसार भर
गया तेरी सल्तनत हिल चुकी मानव दानव बन चूका

एक ब्रह्मास्त्र ने पांडववंश को रोक दीया
ऐसे हजारो परमाणु बमों से आज भर गयी है यह धरा

तू ने जो राम सेतु बनाया था वोह आज खतरे में है
रामसेतु नहीं- भगवन तेरा नाम धरती पर खतरे में है

कवि .......... तुझे कह रहा है छोड़ शेषनाग की सेज
उठजा प्रभु-बुला असुरों को - सेना रामदुतों की भेज

Sunday, May 11, 2008

पैसे की ताकत

सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के असुलों से
खुशबू आ नहीं सकती कागज के फूलों से

यह सच है की पैसा सब कुछ नहीं होता है
लेकीन आज के जमाने में शायद यह भी कुछ तो.... होता है

बोलने में मेरी बातें कड़वी लगी होंगी
यारों दिल से बताओ कितनी सटीक लगी होंगी

मैं तो खुद प्यार की राह का मुसाफिर हूँ
प्यार ही मेरा काबा है मंदिर और मंजिल है दर्शनों का मुहाजिर हूँ

इन रिश्तों की खातिर मैंने ज़माने को झेला है
हर रिश्ते को माना और जोरों से खेला है

लोगों की दया भरी नज़रे झेलना कितना कठिन होता है
उनकी दयानत, हिकारत की नज़रें - पैसे से प्यार, भी देखा है

आशिकों की मुहब्बत की कसम भी अजमाई है
मैंने भुगती है रुखसार की बेवफाई, दिल पर चोट खाई है

इसलिए मैंने तो आयना आपके सामने रखा था
मेरा कोई मतलब उल्टा नहीं मेरा दिल बिलकुल साफ था

माँ बाप बहिन भाई- चाचा मामा - बाबा ताई साथ नहीं जाते हैं
लेकीन माशूक की बाँहों में मुक्कदर वाले मौत पाते हैं

इस से भी ज्यादा नशीब वाले वोह आशिक और मासुक होते हैं
जो एक साथ जीते हैं और मोत की गौद में एक साथ सोते है ..

माँ का अभिनन्दन

माँ तुझ से हसीं भगवान् की मूरत क्या होगी
पूजा करने के बाद मुझे भगवान् की जरुरत नहीं होगी

तू मुझ से खफा होगी तो रब से भी पनाह नहीं होगी
तू खुश हो तो दुनिया की नियामत मेरी मुट्ठी में होगी

करता हूँ आरती तेरी आज, मुझे यकीं है,
तू आशीर्वादों की बारिश कर रही होगी

तू थी तो मैं हूँ ऊँगली पकड़ चलना सिखाया तुने
इस दुनीया में लायी तू इस से लड़ना सिखाया तुझने

मैं तुझे कया दे सकता हूँ कतरा कतरा तेरे अहसान का गुलाम
है आज के पवन अवसर पर मेरा तुझे करबद्ध प्रणाम है

................................करबद्ध प्रणाम है

Saturday, May 10, 2008

भीगी पलकें टपकते आंसू

यह भीगी भीगी पलके , यह टप टप करते आंसू
खोल रहे हैं बीती रात का फसाना


मैं तो बैठी थी सज के संवर के रिझाने उसको, बीत गई जैसे सदियाँ हज़ार
शाम बीती, रात बीती, आया नहीं जालिम नहीं हुई पूरी इंतज़ार

मुझे मालूम था जादू डालेगी सौतन और तू होगा मुझसे बेजार
रोते रोते बीतेंगी रतियाँ मेरा मुक़द्दर तोडेगा मेरा दिल मेरा यार


कीतना छूपाऊं राज छुपता नहीं दिल का
भीगी पलके - टपकते आंसू बता रहे हैं मेरे
प्यार का अफसाना

Friday, May 9, 2008

रिश्तों की मजबूरी

दल्दले में फसे है िरश्ते अब बढ़ नहीं पाते,रुक रुक कर चलते है मंजिल तक नहीं जाते
सूरज हूँ बादल बन कर कब तक ढकोंगे मुझे,सुनहरी साडी ओढा दु, दामन में ढक नहीं पाते
तेरा, मेरे दर तक आना और वापस चले जाना,रुकते अगर जरा सा तो िरश्ते बदल नहीं जाते
वक्त का अँधेरा है घना फैला ओ मेरी परछाई,मेरे बगैर तुजे उजाले में भी लोग जान नहीं पाते


जिन रिश्तो में कामना होती है,
वोह कभी मंजिल तक नहीं जाते ।

काठ की हांडी बार बार चढाई नहीं ,जाती

साडी औढाने से दाग छिप नहीं जाते ।

मुझे गैरत है और तुम्हारी इज्ज़त की फिक्र है ,

नहीं तो सुबह तक अखबार निकल जाते ।

दीन के उज्जाले में भी सीता को धोबिओं ने नहीं बख्शा -

रात के अँधेरे के मिलन पता क्या कहर ढहाते ॥

श्याम की बांसुरी बजे रे.........


मोहन की बंसुरिया बाजे रे- मोरे चित में मयुरिया नाचे रे।

दिखत नाही बुझात नाही मटकत जात गोपियन को खिज्जात रे ॥

मन भटकत, जिया अकुलात सखी विरह सहा नाही ज़ात
वेग से मिलत श्याम मानु उपकार तोरा प्यारी रे॥

पड़गई शाम - आवेंगे श्याम मैं तो हुई बाँवरी प्यारी सुन बांसुरी की धुन आवेको सन्देश आवेरे ॥


आवेंगे श्याम मौर मुकट, कटी काछनी, कर मुरली ,
और जिनके केश घनश्याम मनावेंगे मुझे, पर मैं न मानु रे ॥


छीन बांसुरी, उतार के माला, गयियन के पिछ्कारे दौडा पुरा बदरा आज मैं निकारूं रे ॥

छोड़ सखी बौलत है तू तब तक- जब तक - श्याम दर्शन ना दिखावत रे ॥

आवेंगे श्याम ढलेगी शाम होगी रासलीला, संग संग खेलत - नाचत
गोपियन के चरण दबावत, तुझ को रिझावत रे ॥


सून सयानी तू तो जानत छाछ के लोटे पे गोपिओं के गोठो
पे यह त्रिभूवंनाथ बांसुरी की टेर सुबह शाम सुनावत रे

Thursday, May 8, 2008

नगमा

औ दुनिया के रखवाले सुन दर्द भरे मेरे नाले
बहूत खूब कहा लेकीन दोस्त ................


नगमे दर्द और ख़ुशी दोनो के होते है
मिलन और बिछड़ने के होते है

हार और जीत भी नगमे बनाती है
प्रभु की प्रार्थना बहुत दूर जाती है

पन्नों पे तो कालिख बिखरती है
जब दिल को भा जाये तो कविता-ग़ज़ल-नगमा बनती है
सबूत है कुरान बाइबल गीता रामायण

पढ़ते पढ़ते पन्ने फट गए कितनी ये पुरातन

जब भी पढो नया अर्थ निकल आता है
कोई दर्द नहीं बल्कि दवा-एदर्द इन का कलाम बन जाता है

Wednesday, May 7, 2008

माँ की ममता

आंधियां बुझा सकी न मेरे चिरागों को
मुझको तो मेरी माँ की दुवा का असर लगता है
-.-.-.-.-.
माँ की दुआ का असर, हर कहर से बड़ा होता है
जीस के साथ माँ खडी हो, उसे कया कभी कोई रंज होता है?

तुम बात चिरागों की करते हो, हमने तो करिश्मा देखा है
दामन में माँ के बड़ी जगह होती है, और दिल तो बड़ा ही होता है

एक फितने ने माँगा अपने आशिक से माँ का दिल , और माँ ने कलेजा काड कर दे दिया
हडबडी में चलते आशिक, ठोकर खा के गिर गया

फ़ौरन उस कटे दिल से आवाज आई
बेटा ठीक तो है ना , कहीं चोट तो नहीं आई

दोस्त की सलाह

क्यों दोस्ती को बदनाम करते हो
क्यों अपने साथ हमें भी घसीटते हो

बहुत से गम होते है ज़माने में,
कुछ खुले में, कुछ वीराने में

हर जगह हर चीज की जरुरत नहीं होती
जैसे परीक्षा कक्ष में दोस्त कया दुश्मन की भी पैठ नहीं होती

शादी में बाराती तो सभी होते है
सुहागरात में तुम ही बताओ कितने दोस्त साथ होते है

तुम दम भरो दोस्ती का येही काफी है
जरुरत के समय भी नहीं आये तो भी तुम्हे माफ़ी है

.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-
अहद करना आसान निभाना मुश्किल होता है
मांगने से पहले जो जान हाज़िर करे वोही दोस्त होता है

दम दोस्ती का भरने वाले बहुत इस ज़माने में हैं
जान पर खेल कर दोस्त के काम आने वाले कम ही दीवाने हैं

मुझे लगता है तुम्हारी कोई खास शखशियत है
ऐतबार तुम्हारे शब्दों पे मेरी किस्मत है

आशिक माशूक के किस्से मैं गाता नहीं
कृष्णा-सुदामा जैसी दोस्ती मैं भुलाता नहीं

.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.--
खाव्बों में रहने की तुम्हारी पुरानी आदत लगती है


फील्म तारिकाओं की तस्वीरों को ताकने की लत भी तुम्हे लगती है

जो हाथ की लकीरों में नहीं लिखा उस से प्यार की आदत लगती है
सड़क पर खडे हो कर नारे लगाने तक की हिम्मत लगती है


जब सामने आओगे तो सब याद करेंगे............
मुड के भूल जायेंगे ऐसी तुम्हारी किस्मत लगती है


Monday, May 5, 2008

महबूब और चाँद

बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है
सीतारों रागनी गाओ मेरा महबूब आया है

चुप क्यों हो गए कोई रागनी गाओ
सागर की लहरों साहिल तक आओ मेरा महबूब आया है


आने दे तेरी किरने, मैं देखूं,महबूब को, वल्लाह कया हुस्न पाया है
चाँद क्यों शर्माता है- छिपने से तेरा दाग नहीं छिप जाता है

सारे मिलो मेरे महबूब से और सोचो
अल्लाह ने मेरे महबूब को कया हुस्न अता फ़रमाया है
मेरे महबूब को खुश करने कायनात में रंग आया है

सूरज - चाँद- तारे, जलवा अफरोज सारे के सारे,
सागर की लहरे उठ रही कदम बोसी को ,
भोरों ने तराना गया है

तन्हाई

मैं मंजिल की और तनहा चला जा रहा था
सामने से साथिओं एक फितना आ रहा था

वोह भी तनहा था मैं भी तनहा था
मौसम सुहाना हो गया था

दोनों की कटने का मौका बन गया
आँखों ही आंखों में दिल पट गया

क्या था- हाथ में हाथ आ गया था
रस्ता कब कट गया पता ही नहीं था

अलग होगी पर अब एक हो गयी थी
सारी जीन्दगी की तन्हाई दूर हो गयी थी

ऊपर वाले की नियामत का सभी तनहाओं पे हो
ऐसी ही दिलरुबा हर कीसी को नसीब हो

कर्म- गीता

कर्म कीये जा फल की इच्छा मत कर रे इंसान
जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान
कर्म से ही भाग्य बनता है, होसले से कर्म बनता है

जिसने कर्म किया यानी होसला किया वोह पार हो गया
जो सोचता रहा और सोता रहा वोह पीछे रह गया


यह सच है की हार दिल तोड़ती है
लेकिन नाकामयाबी सफलता की पहली सीढ़ी होती है

ाम या करष्ण जवाहर या गाँधी-कौन नहीं हारा
लड़ गया तूफानों से,
बेपरवाह दुनीया की बातों से और जीत ने स्वीकारा

मुश्किल कीस चिडीया का नाम है हम नहीं जानते
होसला हमसे है, हार हम नहीं मानत

जनवी ने फतह १८वि बार में पाई थी
कृष्ण ने गीता कुरुछेत्र में रास पकडे सुनाई थी

गाँधी को गौरों ने रेल से बाहर फैक दिया था
सड़क पर मर मर बेहाल किया था
लेकिन इन वाकों ने इन सभी को और मजबूत किया था

जीत की वरमाला पहर सभी का मार्ग दर्शन किया
अत्याचार मत सहो-सामना करो का मन्त्र जान मानस को दिया

यह सभी भी हमारी तरह हाड मांस के इंसान थे
कुछ अलग करने को व्याकूल होसलेवान थे

पुजती है दुनीया इन होसले वालों को
गम न करो, तुम में भी कया कमी है यारों

करो होसला, बढो आगे,
खडी है मंजिल सामने,फतह करो

Sunday, May 4, 2008

पल दो पल की जवानी

काल करे सो आज कर - आज करे सो अब
पल में परलय होयगी फेर करेगा कब

पल दो पल की मस्ती है पल दो पल की यह जवानी है
पल दो पल की बस्ती है पल दो पल की रवानी है

की खबर नहीं ..................
फीर भी राधा क्रष्ण की दीवानी है
ऊपर वाले ने कुछ भला करने को दी यह जिंदगानी है

खाली हाथ आया था और खाली हाथ गया था
हाथी ना घोडा ,आम्भी ना पोरस साथ कब्र में सोया था

कीमत समय की करले .......सुख पायेगा
काल का बुलावा आ गया तब सोच सोच पछतायेगा


कितने ही ही सुरमा फोत हो गए बिना परमार्थ कीये
याद करता है जमाना सिर्फ उन्हें ..............
जिन्होंने दूसरो के लीये प्राण न्योछावर किय

प्रण करो, त्याग करो, दया करो दूसरो के काम आओ
नाम अमर अपना करो, दीन दुखियों के काम आओ

Friday, May 2, 2008

मई दीवस

नसले बिता दी जिनकी गुलामी में 'खालिद'
मिला फ़क़त एक दिन कम पड़ता है गम बताने में ......
1 मई मजदूर दिवस ये सिर्फ एक झुनझुना है

कौन कहता है की ......
तुझे झुन्झाना बजाना आता नहीं

एक दीन ही सही बजा लाडले बजा.............

मई दीवस बगावत की नीसानी है

मजदूरों की एकता और आजादी की नि्सानी है

रूस चीन टूट गए , लाल से काले पीले होगये

६० साल बाद हमारी आजादी के- लाल वाकिय में लाल हो गए

परमाणु और महंगाई के इसु पर लाल होते होते

सरकार गिराने वाले होगये
ख़ुशी का झुन्झना बजा लाडले बजा...................

लाल सलाम का दीन हर साल आता है

जैसे तेरा जन्मदिन तू मनाता है

तब तुझे नहीं दूसरा दीन याद आता है

यार झुनाझाना गिफ्ट में लेकर आता है

और तेरे साथ मिलके बजाता है

बजा लाडले बजा

तू रोज जस्न मना- यारों को बुला - माल खिला

और फीर ठाट से - बजा झुन्झना लाडले बजा