Monday, May 12, 2008

कृष्ण दीवानी



दिन दहारे, सरक किनारे, गोपी खरी कबसे बन्सीवारे की बाट जोहत है ॥

नन्द का छौना , चलत रोज़, इस डगर पर, गोपियन संग अँखियाँ लडावत है ॥

रात सपने में मुस्कान दिखा चितवन मधुर, गोपियन की नींद उडा, रास केली के दर्शन करा हिरदय मा हिलोर मचावत है ॥

भोर होते ही,
यशोदा सज्जा कान्हा को पाग लचीली, कमर काछनी लपेटे, गल हार डाले कर मुरली, गयियन चरान, गोपन के छोरों के संग देखो भेजत है ॥

याद किसे अपनी चुनरी सारी, सुन के टेर बंसी की प्यारी, ले हाथ में माखन को लौन्दा,
कान्हा मिलने की आस में ब्रजबाला दौड्त लगात है ॥

कहे कृष्ण दीवानी -
सुन श्याम की बंसरी, भूल गयी मैं तो जग "सखी", ना दिन चैन -ना रातनींद ,श्याम से मिलन को दिल तडपत, मुझे कछु और नहीं कान्हा ही की चाहत है

उद्धव ने जब मांगी गोपी चरण रज सांवरे की भलाई को, दौड़ दौड़ गोपियन, चरण उठा धरती पे पटक उद्धव को विरह प्रेम का अदभुद रास दिखात है

कृष्ण सखा, देख गोपियन को , लज्जा में डूब डूब, कान्हा प्रेम सागर देख उमड़ता गोपियन के मान में, गोपियन की याद में द्वारकाधीश की दशा ठीक पात मुस्कुरात है

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