Monday, May 19, 2008

शर्म और हया

तेरा यह हुस्न यह जलाल अल्लाह कोई देखता न हो
तू कया जाने मेरा हाल क्यों नहीं देखती है तू

ज़माने से डरते हैं इश्क के दुश्मन हमें कया ड़र चाहे

कोई भी देखता क्यों ना हो

जालिम, हम हैं बेहाल कि किसने किया यह सवाल

कोई देखता न हो

तेरे शबाब कि कसम, लड़ी है जब से तेरी मेरी नज़र,

मर गए है हम चाहे तू देखती न हो

गुलाबों कि मलिका, हुस्न कि परी तेरी अदा है फूलना

और हमारी है तड़पना चाहे तू देखे या न देखती हो ...

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