Sunday, May 11, 2008

माँ का अभिनन्दन

माँ तुझ से हसीं भगवान् की मूरत क्या होगी
पूजा करने के बाद मुझे भगवान् की जरुरत नहीं होगी

तू मुझ से खफा होगी तो रब से भी पनाह नहीं होगी
तू खुश हो तो दुनिया की नियामत मेरी मुट्ठी में होगी

करता हूँ आरती तेरी आज, मुझे यकीं है,
तू आशीर्वादों की बारिश कर रही होगी

तू थी तो मैं हूँ ऊँगली पकड़ चलना सिखाया तुने
इस दुनीया में लायी तू इस से लड़ना सिखाया तुझने

मैं तुझे कया दे सकता हूँ कतरा कतरा तेरे अहसान का गुलाम
है आज के पवन अवसर पर मेरा तुझे करबद्ध प्रणाम है

................................करबद्ध प्रणाम है

2 comments:

Prabhakar Pandey said...

करता हूँ आरती तेरी आज, मुझे यकीं है,
तू आशीर्वादों की बारिश कर रही होगी ।

माँ को शत-शत नमन।

सुंदर अभिव्यक्ति।

Unknown said...

मैं तुझे क्या दे सकता हूँ कतरा कतरा तेरे अहसान का गुलाम
है आज के पवन अवसर पर मेरा तुझे करबद्ध प्रणाम है


बहुत ही खूबसूरत बात कही है.
माँ वो चेतन शक्ति है जो नयी चेतना का विकास करती है. और वो चेतना अर्थात माँ की संतान. जैसे भक्ति भक्त पर आश्रित है, उसी तरह माँ पर उसकी संतान आश्रित है. संतान कभी भी अपनी माँ का अहशान नहीं चुका सकता. फिर भी वो कोशिश तो जरुर कर सकता है. संतान कभी भी अपनी माँ की बराबरी नहीं कर सकता. इसलिए कहा गया है की उस माँ को करबद्ध प्रणाम है.