Monday, May 26, 2008

मतलबी दुनिया


इस भरी दुनिया में कोई हमारा ना हुआ
गैर तो गैर सही अपनो का सहारा ना हुआ

उपर वाले को भी इन गलिओं से गुजरते हुए अहसास तो हुआ होगा
क्यों उसने बनाईं यह मतलबी दुनीया. जब किसीने नहीं पहिचाना होगा

भलाई करने वाले को बुराई मतलबी को मिठाई
प्यार करने वाले को रुसवाई कलजुग की येही रीत है भाई

चापलूसों की बातों में नेताओं के वादों में
रिश्वतखोरो के इरादों में, जात धर्म के भागो में
मिलावटीयों के धंधों में हसीना की कंधो पे
धर्म की दुकान पे नेताओं के इमान पे
भोग मस्ती के समुंदर में, रोटी कपडे की दौड़ में
अपने छुट गए सपने टूट गए इस मतलबी दौड़ में
आज इंसान इंसान को भूल गया
अरे उपर वाले तेरी कया बिसात -आज इंसान माँ बाप ही भूल गया

परवरदिगार तुझे कसम है तेरे चाहने वालों की
परम पित्ता परमेश्वर, मत सुनना इन मतलबी इंसानों की

जो भूल गए धर्म और इंसान को, देश और इमान को
देश बेचा धर्म छोडा पैसे को भगवान समझा,खा गए तेरे नाम को

तू आया तो यह जालिम तुझे भी रासन की कतार में खडा करदेंगे
कैसे सहेंगे, तेरे सामने तेरा अपमान, हम तेरे मुरीद, जान दे देंगे

..श्रीकृष्ण मित्तल

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