Thursday, May 15, 2008

इस्क और बेवफाई - सवाल जवाब

लिखते हैं खून ए जीगर में डुबो के कलम
क्यों ऐसे सोचती हो मेरी बेवफा सनम

हमें तो मालूम नहीं हमने कहाँ खता खाई है
सात जन्मों की बात करने वाली तू क्यों बनी सौदाई है

तेरे हुस्न को चाहने वाले वाकई में सैकडों होंगे
हमें कसम है जो हम कमजोर पड़े होंगे

शिकवा अपनों से किया जाता है
बेवफा से तो झगडा ही किया जाता है

तुम बेवफाई की मिसाल हो सकती हो
लेकीन हमें बेवफा कैसे कह सकती हो

हमें कसम है जो हम नज़र भी ऊपर उठाएं
खुदा का कहर टूटे हम पे अगर हम भटक जाएं

शर्तें भी तुम लगाती हो
दाग़ ए दामन भी तुम सजाती हो

खुद बेवफाई का एलान करती हो
हमारे दुश्मनों की बांहों में जा जा के सजती हो

कभी कभी दिलरुबा सी बातें भी करती हो
जीन्दगी भर पिने पिलाने का अहद भरती हो

ख़त ओ खिताबत का भी शौक जताती हो
वाह दो नावो में पैर रखती हो

दुनीया ऊँगली पे नाचती हो
लेकिन याद रखना

सचाई छुप नहीं सकती बनावट के असुलों से
खुशबू आ नहीं सकती कागज के फूलों से

शिकवा तुम्हे नहीं बहुत खुब जान ए मन
खुद बेवफा इल्जाम हम पे वाह जान ए मन

कैसे एतबार करेगा तुम्हारा कोई की हमने नहीं चाहा तुम्हे
मेरे खून से भरे तुझे लीखे ख़त क्या फाड़ दिए तुने

इब्तदा ए इस्क तुझे क्या मालूम हकीकत तो बयां की है
हमने तू तो दिल तोड़ कर बैठ गयी दुसरे की डौली में

कहती है हमने मुडके नहीं देखा -
हम तो आँख भरे गुबार देखते रहे

टूट गया दिल जब तेरे सामने पहुंचा ,
मिलन की उम्मीद पर पहाड़ भी थे मैं ने तौडे

यह शहर तुझे ही मुबारक हमें तो नसीब हो वोह गलिआं
जहाँ तेरे साथ की महक आज भी डोले

एक कसम है तुझ को चादर चढा दियो जनाजे पे हमारे
लोग मिसाल दें कि आशिक का जनाजा धूमधाम से निकले


ek shakhs paas reh kar bhi samajha naheen
mujheiss baat ka malaal hai shikva nahin mujhemain usko bewafai ka ilzaam kaise doonuss ne to ibteda sey hi chaha nahin mujhekya kya umeedein bandh ke pohncha tha samneuss ne toh aankh bhar ke bhi dekha naheen mujhepatthar samajh ke paaon ki thokar bana diyaafsos teri aankh ne parkha nahin mujhemujhko bhi theharna na tha uss ke nagar main abachha hua ke usne bhi roka nahin mujhejindgi mein log bohat jaan nisaar theymain marr gaya to koi bhi roya nahin mujhey

"na jaane kon sa aasheb dil mein basta haiki jo bhi thahra vo akhir mukaam chod gayahaath seene pe rakh ke na dikhao mujhkomere toote hoye dil ki vo sada yaad karomaine maana ki vafadaar nahi hun,lekintum kisi aur ko iss tarah barbaad na karo"Hamare mehboob sankdo haiTumhare sheda hazaroon hongayNa tum se sikva na hum pe sikvaGila karoge ! gila karengayBura kahoogay ! bura kahengayMeine maana ki vafadaar nahi hoon lekinTum kissi aur ko iss tarah barbaad na karoHamari shart-e-wafa yahi ha, wafa karoge ! wafa karengeHamara milna hai aisa milna mila karoge ! mila karengeHamara pina pilana kiya hai ?Hamara pina pilana ye haiPilogay tum ! pilaengay humPiya karoge ! piya karengeYe poochna ki kiya khat likhoge ?Ye pochnay ki nahi zarooratTumhari marzi pe hai munhsarLikha karoge ! likha karenge

प्रेम कहानी का हसर शायद यही होता है
टीबी तो सोहनी म्हीवाल - हीर राँझा का नाम होता है

कीतने ही चीडे कुर्बान हो गए हुस्न ए सफ़ेद गुलाब पे
गुलाब तो लाल होकर हसीनो की जुल्फों में जा सजता है

याद करता न कोई चीडे को न गुलाब को,
जमाना तो सजी हुयी जुल्फों पे मरता है

खूबसूरती तो कोई ख़ता नहीं..............
पर अदाओं से कीसी को सता नहीं......

दील की तरह फूलों को न तोड़,
तुझे अदब की बातें पता नहीं..............

बा आदाब बा मुलाहीज़ा होशियार
फितानो पर फीदा होने वाले भोंरे बन समझदार

खता खूबसूरती में कोन बताता है
लेकीन बेवफा पर जान लुटाने में कीसी कीसी को मज़ा आता है

फूल को पांवों से कुचल या जुल्फों में सजा मेरा कया जाता है
फूलों को अदब प्रभु चरणों में अर्पण करने में ही आता है

यह साबीत कीतनी ही बार हुआ ...........
की हुस्न ने बेवफाई की,.. दीलों को कुचला - रोंदा
हाय उन्हें तो मज़ा ही इस् खेल में आता है


dil mera le lene ki khatir minate kya kya na kiaise badle mere sanam matlab nikal jaane ke baad*dard-e-dil tham ke sahtay hai,hum toh chup hi hein !log kya kya nahi kehte hai,hum toh chup hi hein !aap kyon dil ke tadapne ka bura maan gayeaapse kuch nahi kahte hai,hum toh chup hi hein !hum khatavaar nahi hai dil ke behak jaane kaye kagar aap hi dhatay hai,hum toh chup hi hein !*Na dekh mere sabar ki intaha kaha tak hai,Tu sitam karle teri taqat jaha tak hai,raham ki ummed jinhe hogi so hogihumay toh yeh dekhna hai teri zulam ki inteha kahan tak hai !!!


हुजुर ए आला,जानेमन,दिल और जान की बाते करती हो
जानबुझ कर कटे पर नमक छिड़कती हो

हालत तो यहाँ भी कोई ठीक नहीं कटती नहीं रातें
तारे गिनते गिनते सपने में तुम्हारी हमारी बीती राते

पूछो उस चिडे से जो गुलाब के इश्क में फ़ना होगया
गुलाब तो लाल हो जुडे में सज गया चिडा कुर्बाँ होगया

हे नाजनीन हुस्न की परी, ऐसी ही अदाएँ कुछ तुम्हारी है
हम राह तकते हैं तुम्हारी बाहों की, किस्मत में तो बेकरारी है

क्या क्या साथ जीने के ख्वाब हम तुमने नहीं संजोये थे
आंखों में आँखे डाल कर बगीचे में एक दुसरे में खोये थे

तुब तो तुम एक इशारे पर जान छिड़कती थी
जैसे अब रोती हो धमकाती हो ऐसे ही बिसरती थी

फिर एक दीन सय्याद ने चिडीया कैद कर ली
चिडीया तो सोने का पिंजरा देख सय्याद संग होली

सोचा नहीं उसने क्या होगा इस इश्क के मारे का
कौन संभालेगा इस टूटे हुए दिल को तेरे आशिक बेचारे का

जालिम हमने अपने ख्वाबो की मय्यत निकलती देखी थी
बेवफाई हमारी रुसवाई और जगहँसाई झेली थी

दिल के बिखरने से हम धक् से खडे राह गए दिल थाम के
मालूम था हमे हश्र तुम्हारा बैठ गए थे तेरी राह में डेरा तान के

जानेमन, इश्क सिर्फ एक बार होता है
बाकि तो दिल और बदन का व्यापार होता है

हम ने तुम्हे चाह है फिक्र ना करो हम तुम्हारे है
दिल जान कया चीज है हम सारे के सारे तुम्हारे है

सस्सी और सोहिनी कल की यादगार हैं
ये तो आशिकों के बुत है परवरदिगार हैं

लेकिन हम आज के आशिक है जो जान देना नहीं जानते
तुम इशारा करो तो दुनिया पलट दें दुश्मन की जान निकाल दें

बील्कुल सही हम अपने हुनर दिखा चुके अब तुम्हारी बारी है
ख्याल कर लेना तुम्हारी जान तुम्हारी नहीं अमानत हमारी है

हम वादा करते हैं की अगर तुम्हारी आवाज आएगी
दुनिया देखती राह जायेगी तू हमारी हो जायेगी

यह साबीत कीतनी ही बार हुआ ...........की हुस्न ने बेवफाई की,॥ दीलों को कुचला - रोंदाहाय उन्हें तो मज़ा ही इस् खेल में आता है.........तोह ये लीजिये जनाब:

दील चीज़ है क्या ज़ाना, ये जाँ भी तुम्हारी है
तेरी बाँहों में दम निकले, हसरत ये हमारी है

रोटी हूँ तड़पती हूँ, कटती ही नहीं जालिम
एक रात जुदाई की सौ रात से भरी है

फूलों की कदर पूछो, उस दर्द के मारे से
जीस सख्श ने काँटों पे, एक उम्र गुजारी है

इश्क-ओ-मुह्बत के चलो पूछ ले सादिक से
एक बाजी मुह्बत की उस शख्स ने हारी hai

सशी और सोहनी ने जाँ दे दी चाहत में
रोके न मुझे कोई अब मेरी बारी है *

ना मैं नादान हूँ ना मैं भगवान्
मैं तो एक अदना सा आशिक और इंसान हूँ

नहीं भूलता मुझे तुम्हारा गुलाबी चेहरा
वोह गदराया बदन वोह नुफानी जज्बा

मेरी बाहों का सहारा हमेशा तुम्हारा है
तुम इसे गलमाल समझो या सहारा यह फैसला तुम्हारा है

जब तक हम जीन्दा है ऐसा क्यों समझती हो
इंनायत नहीं हक है तुम्हारा अगर तुम हमें अपना समझती हो

मुरझाया कमल हो पीपल चाहे बादल ही सही
तुम हम साथ हों तो तन्हाई की बात भी नहीं

कौन तुमसे जागीर या तकदीर मांगता है

यहाँ तो जान देने की तमन्ना रखते है तुमसे ही वास्ता है

तुमने हमें याद किया अब तुम्हारी परेशानी हमारी है
तुम ख़त लिखो या सिर्फ हिचकी भरो आगे फिक्र हमारी है

now, wot i say.....m speechless....just can say....
bahutttttttt achche........

1 comment:

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया कविता आभार