Tuesday, September 29, 2015

देशभकत मुसलिम बिरदार के सवाल का जवाब


मुकम्मल है इबादत मै वतन इमान रखता हूँ
वतन की शान की खातिर हथेली जान रखता हूँ
क्यों पढ़ते हो मेरी आँखों में पाकिस्तान का नक्शा
मुसलमान हूँ मै सच्चा दिल में हिन्दुस्तान रखता हूँ
कौन पढता है तुम्हारी आखो मे पाकिस्तान का नक्शा |
कोन नकारता है तुमहारी वतन परस्ती का जज्बा||
क्या तुम सरहद पर हिफाजत ए वतन को नही गये |
या इस मुल्क  के कायदेआजम या चीफ जस्टिस नही रहे||


तुम ही बताओ तुम्हे कोन सा अख्तियार नही |
क्या पढनेलिखने,तिजारत,खानेपहिनने,आनेजाने मे है, फर्क कहीं||
हम तो कहते कहते थक गये , हिन्दू मुस्लिम भाई भाई |
फिर भी तुम्हे ६८ वर्षों में यकीं क्यों नही आई||
इतनी आजादी तो नही किसी को पाकिस्तान मे|
इतना अमन,चैन महोब्बत नही देखा अरबिस्तान मे ||
औरत मर्द का यकीनी रिश्ता ऐसा नही मिलेगा इंगलिशतान मे | 
तुम चश्मेनूर हो सिरमौर हो, बगलगीर हो हिन्दुस्तान में||

आज हिन्दुस्तान जो वतन है तुम्हारा,तुम्हे पुकार रहा है |
वतन का कानुन तुम पर भी लाजिम है,करोअमल बता रहा है ||
मानो इसे शरियत के मानिंद और इज्ज़त करो हमारी |
मत काटो गाय यह है मादरेवतन बच्चों की पालक पयारी||

इकबाल लिखगये,आज फिर मिल कर गाएँ वोही गाना|
वतनपरस्ती, भाईचारे की दास्ताँ है यह तराना||
सारे जहान से अच्छा हिंदुस्तान हमारा|
हम बुलबुल हैं इसके यह  गुलिस्तान हमारा||
मजहब नही सिखाता आपस मे बैर रखना|
हिंदी है, हमवतनहै, हिन्दुस्तान हमारा||
कुछ सिरफिरे हर कौम में होते है |
हर शहर में हर देश हर कोने में होते है ||
उनका काम होता है नफरत ग़लतफ़हमी फैलाना |
तुम समझदार हो या नहीं जो इन्हें नहीं पहिचाना ||
नहीं चाहते ये कौमी अमन, एकता भाईचारा|
वजह, इनकी रोटी, सियासत का यह नफरत ही सहारा||
यह मजहब के ठेकेदार, सियासतदार जो नफरत ही बांटते |
हिन्दू को सिख,मुसलमान और इसाई से अलग मानते||

लड़ो मत, आँखे खोलो, इन को पहिचानो|अमन चैन खुशहाली से रहना तो इनकी ना मानो ||


Monday, September 21, 2015

ख़ुशी कहाँ

हर ख़ुशी की हर गमी की कोई वजह होती है
 वोह नसीब वाले होते है जिन्हें बिना वजह ख़ुशी मिलती है. 

हम ढून्ढते है इसे विरानोमें, महफ़िलो
 में ना जाने कहाँ कहाँ, 
यह तो दिल में छुपी होती है.
 किसी को मिलती है विसाले यार में,
 किसी को उसके परिंदों को गिनने में ही मिल जाती है 
. हकिम लुकमान के पास भी इस इलाज ना मिला,
 इस मर्ज का इलाज़ अगर होता, 
तो ना सोहिनी होती ना महिवाल होता,
 ना हीर होती ना राँझा होता.

सुबह और शाम


बिहार का संग्राम



Friday, September 18, 2015

Wednesday, September 16, 2015