Thursday, November 27, 2008

धिक्कार


भारत के कर्णधारों को
देश के सुरक्षा के जिम्मेदारों को
धिक्कार धिक्कार धिक्कार

जो घर के रहने वालों पर भोंकते काटते हैं
बाहर के आतंकियों को देख दुम दबा कर भागते है
निर्दोषों की जानो को दाव पर लगा कर झूटी शान बखारते हैं
धिक्कार धिक्कार धिक्कार

उन देश के नेताओं को
जो सुभाष भगतसिंह आजाद का नाम बदनाम करते
पंचशील को पुकारते हर बार यह आखिरी है वादा करते
ऐसे भेडियों को
धिक्कार धिक्कार धिक्कार

कभी कारगिल तो कभी संसद
कभी काशी तो कभी दखन
कभी दिल्ली तो कभी बम्बई
देश की अस्मत को लुटाते
निर्दोषों की जान गवांते
ऐसे पाखंडियों देश द्रोहियों को
धिक्कार धिक्कार धिक्कार


सब्र का बाँध टूट गया है
देश आंसुओं डूब गया है
विदेशी ठठाका मार रहा है
ऐसे शिखंडी सरकार पर
धिक्कार धिक्कार धिक्कार

देश की सेना क्या सो रही है
गुप्तचर सेवा क्या सुप्त हो रही है
ATS क्या अब रो रही है
ऐसी सरकार को
धिक्कार धिक्कार धिक्कार

देश भक्तों और सेना गोरवों पर
कहर बदनामी बरपा कर
अफजल को फांसी दोगे तो काश्मीर जल जाएगा सुना कर
देश की आन बान शान लूटा रही है
ऐसी राजनीती को
धिक्कार धिक्कार धिक्कार


आज जरूरत है इंतकाम की
इन आतंक के सौदागरों के दिल में
भारत के बदले और इंतकाम की
एक के बदले चार की यानी पैनी तलवार की धार की
नहीं तो हमें नहीं स्वीकार


उठो
देशवासिओं ऐसे देश के दुश्मनों से देश को बचाओ
खुल के सामने आओ और इनको बोली गोली और मतों से सबक सिखाओ





Saturday, October 25, 2008

गुरु को संदेश


गुरुदेव का आशीर्वाद बडी मुद्दत बाद मिला
जैसे डूबते जहाज को सिंदबाद मिला

हम तरसते थे गुरु ज्ञान पाने को
अपने क ख ग सुनाने और मार खाने को

एक समय ऐसा आया
गुरु ने हमे दिल से दूर हटाया

हमे मालूम ना हुयी त्रुटी हमारी
क्यों गुरुदेव ने हमारी यादें बिसारी

महीने कई बीत गये
गुरु हमे भूल गये

आज दिवाली आई है
शायद गुरुमन में प्रीती पुनः आई है

धन्य हुआ जीवन हमारा आप का संदेश आने से
मन गयी दिवाली, छूटे पठाखे, पेट भर गया खाने से

अब अगर भुलाया तो हम भी आपके चेले हैं
फिर नही कहना, बेसुरे, नाकारा, अलबेले हैं

तुम हमे छोड़ दोगे हम 'यह' दुनिया छोड़ देंगे
गुरु ही नहीं तो हम मान किसे देंगे

दीपावली पर आपने नया विषय उठाया है
बिल्कुल ठीक फरमाया है

दीपावली का प्रकाश



दीपावली प्रकाश और दिलों के मिलने का त्यौहार .
दीपावली ख़ुशी और उमंग का त्यौहार

हर वर्ष हम गणपति लक्ष्मी मनाते हैं
रिद्दी सिद्दी, धन दौलत, सुख शांति मनाते हैं

राम का राजतिलक उत्सव सदियों से मनता आया है
आज फिर वही अवसर आया है

शुभ हो यह अवसर खुशीआं भरपूर पाओ
लक्ष्मी पूजन करो गणपति को रिझाओ

मित्तल परिवार की बधाई और शुभ कामना सुनो और बांटो
जो खुशीआं मिले उन्हें जरुरतमंदों में भी बाटों

Thursday, October 23, 2008

मानस शोर्य कामना

जिसने भी तुम्हारा नाम मानस रखा होगा
तुम्हारे नामकरण के बाद इतहास बन गया होगा

हम बचपन से सुनते हैं
खत्री बहुत सुंदर होते है

आज हम देख रहे है
सुंदर ही नही रचियक भी पा रहे हैं

इस उम्र में तुम्हारा यह हाल है
जल्द बडे हो जाओ खाली पडे हाल हैं

तुम्हे बहुत आगे जाना है
दुनिया को बहुत कुछ सुनाना है

आज स्कूल की पुस्तिका में स्थान मिलता है
कल विश्व प्रसारण में उच्च स्थान दिखता है

हर फिल्म में हीरो कवि और गायक होता है
सुना के अपनी कविता कविताओं को मोहता है

तुम्हारी भी उम्र आने वाली है
इस कला की जरूरत तुम्हे जल्दी ही पड़ने वाली है

अपने जैसी ही नायिका का वरन करना
जो तुम्हारी प्रेरणा बन सके ऐसी का चयन करना

कुछ वर्ष शादी के बाद अपने जैसा चिराग जलाना
उस भी मानस यानी मानसपुत्र खत्री बनाना

और क्या लिखें आज इतना काफी है
हमारा आशीर्वाद, आशीष, तुम्हारा साथी है

*********************

रामचरित 'मानस'

तेरे प्यार की क्या तारीफ करूं कुछ कहते हुए मैं डरता हूँ
कहीं भूल से यूँ ना समझ लेना की मैं तुम से महोब्बत करता हूँ

सात समुन्द्र पार से मैं लेता हूँ तुम्हारी बलैयां
तुम अयोध्यावासी मैं तो केवल रामभक्त हूँ भैया

हम हैं दंडकारन्य लंका के पडोसी महिसासुर की नगरी के दक्षिणवासी
तुम पढ़ लिख राम बनाना आना इधर बन सन्यासी

सीता जैसी कोमलांगी तुम्हारे साथ हो और लक्ष्मण जैसा भाई
हनुमान मिलेंगे यहाँ तुम बनाना तुलसीदास की चौपाई

लिखना पढेंगे सभी ध्यान से
तुम भी तर जाओगे हम भी पार उतर जायेंगे इस जहान से

Monday, October 20, 2008

शब्दों में भी कंजूसी

आप को एक कंजूस सेठ की कथा सुनाते है

एक नगरसेठ नामी कंजूस था उसके एक साधू पधारे और उसे प्रभु आराधना का उपदेश दिया. उसने खर्च का रोना रोया तो मानसिक पूजा का तरीका समझाया.
सेठ ने रोज रात शयन से पहले मानसिक पूजा प्रारम्भ कर दी. पहिले गंगा जल से स्नान करा, पुष्प चढा. दीप दर्शन के बाद शक्कर का भोग अर्पण करने का अभिनय करता था. " जैसे चम्मच हाथ में हो शक्कर के पात्र से निकाल चढाने के साथ प्रभु भोग लगाओ" बोलता था.

एक दिन शायद सोने की हडबडी में गलती से दो बार भोग अर्पण कर बैठा.
तुरन्त ख्याल आया अररे क्या अनर्थ हो गया ? भगवान जी को तो ज्यादा शक्कर खाने से मधुमेय रोग हो जायेगा और तुरंन्त उच्चारण किया प्रभु एक चम्मच वापिस ली.
प्रभु को बड़ा गुस्सा आया और प्रगट हो उसका हाथ पकड़ बोले अरे कंजूस इस मानसिक अर्पण में भी तेरा कुछ लग रहा था क्या?

उधर कंजूस सेठ रो रहा और नाच रहा था. क्यों? इतने दिन शक्कर चढाई आज ही क्यों वापिस ली अगर पता होता की वपिस लेने से प्रभु प्रगट होते हैं तो पहिले दिन ही वापिस ले लेता

शक्कर भी लगी और प्रभु दर्शन भी देर से हुए



कैसी लगी कथा ?

इश्क की नियामत

हम अभी जवान है और मरने से डरते हैं
हम अभी जीना चाहते हैं क्यों की तुम पर मरते हैं

तुमसे मिलने को बहाने किसे चाहिए
हम तो तुम्हारी तस्वीर दिल में छुपा के रखते हैं

तुम कबूल करो या ना करो दुनिया को खबर है की
तुम और हम एक दूजे पर जाँ छिडकते हैं

आसमा है रकीब इश्क का
इसही लिए तो तुम हम कमरे में बंद रहते हैं

तुम हंसो हम देखें, हम हसें तुम देखो
येही इसरार खुदा से हम करते हैं

जख्म कोन जालिम भरना चाहता है
हम तो तुम्हारे दिए घाव इश्क की नियामत समझते हैं

जवाब के जवाब का जवाब

तुम्हारे हुस्न की तपस में
तुम्हारे इश्क की गर्मी में
तुम्हारे आंचल की ठंडक में
तुम्हारे हाथों के खनकते शोर में
तुम्हारी पायल की झंकार में
तुम्हारे हाथों से प्याले में

कोन जालिम बहरा, अँधा, गूंगा, पागल ना हो जाये

हम भी शायद उन्ही में से एक हैं
हुजुर इसलिए खो गये

शनि को कोन जाने
यहाँ तो पूरा हफ्ता ही सो गये

तुम्हारा कया हाल है ?
कम तो नही होगा

इतवार आये या ना आये
दिल में हमारा संदेश ही होगा
=======Reply to reply===========
क्या ये सच है ??!!
"आपकी खुशनुमा आहट दिन या रात
लाती हर किसी के चेहरे पर
दूध सी
गुलाब सी
लोबान सी
धुप सी
चाँद की चमक सी मुस्कुराहट !!"

शायाद ये सच ही है .....
नहीं तो.....
आपने ये कैसे नोट नहीं किया के आज sunday नहीं saturday है!!
मैंने ग्रीटिंग तो sunday का भेजा था!!
शायद ....
"दूध सी
गुलाब सी
लोबान सी
धुप सी
चाँद की चमक सी मुस्कुराहट में खो गए थे!!
हा हा हा हा ....
------Reply-------------
गुड मोर्निंग नमस्कार

सीता को देनी पडी अग्निपरिक्षा क्यूं
इम्तेहां गैर इत्फाकी का दूसरा नाम यूं


अंधियारों में भी खिलते है फूल
धूल में ही लगते है मुलायम फूल
आपकी खुशनुमा आहट दिन या रात
लाती हर किसी के चेहरे पर
दूध सी
गुलाब सी
लोबान सी
धुप सी
चाँद की चमक सी मुस्कुराहट
----------Message------------------
गुड मोर्नींग गुरु देव ....

इम्तेहाँ मुशीबत और भला ..
अधियारो में कोई है खिला ..
बेचैन बहारो की आहट..
चहरे में चित चितवन सजती
लोबान सी ख़ुश्बू मुस्कराहट

Monday, October 13, 2008

यु आर वैरी ग्रेट

तुसी सानु ग्रेट कहंदे हो
ग्रेटदा मतलब भी समझदे हो ॥

अस्सी त्वानू एक असली वाकया सुनांदे ने
तुवाणु ग्रेट दे अंदर दा मतलब समझान्दे ने ॥

इक यारनु भाभी जी तुस्सी बडे ग्रेट हो कहंदी आदतसी
सानु सुनके लगदी सी दिल ते छुरे घोपन सी ॥

अस्सी एक दिन पूछ बैठे
राज ओउद्दी गल दा खोल बैठे ॥

अस्सी पुछिया ओये सालेया सिर्फ भाभिआं ही क्यों ग्रेट होंदी हैं
अस्सी कया सोने नहीं या भाभिआं की ज्यादा दुद्द देंदी हैं ॥

सुन के अस्सी हैरान हुए,
उस कुत्ते दी गल ते हंस के लोटपोट हुए ॥

उसने अपने बचपन दा ईक वाकया सुनाया
सच्च था बचपन में उसे डकैतों ने था उठाया ॥

यारा जो हालात उन्होंने मेरी दो दिना में बनादेयी सी
वोह तो इन् भाभियाँ नु रोज सहना पडदा ही।।

इसही लिए इनाणु मैं भाभी जी यु आर वैरी ग्रेट कहंदा हूँ
मैं भी उसदिनतो जो ग्रेट कहंदा उनु भाभी वल समझदाहूँ ॥

कैसी लगी मेरे ग्रेट दोस्त को यह कहानी
अर्थ समझा या फोन कर पूछ ले जानी ॥

Sunday, October 12, 2008

हम सफर की याद

तुझे देख कर याद आते हैं कुछ जंगल के रास्ते
चलते थे हम तुम साथ साथ एक दुसरे के वास्ते॥

घर में कमरा एक और एक दरी होती थी
याद है रात को टांग कर दरी पार करते थे सदिओं के फासले ॥

दरी के इस पार तुम हम और उस पार दुनिया सोती थी
अररे, वोह भी क्या हसीन खुशनुमा मधुरात्रि होती थी ॥

आज दूरियां मिट गयी इंटरनेट आ गया
वेबकेम ने बंद कमरे का रहस्य भी दुनिया को दिखा दिया ॥

एक घर में चार कार, दस फोन होते हैं
हर कमरे में टी वी और टेप सजे होते हैं ॥

फिर भी दूरियां दिलों की इतनी हो गयी
मतलबपरस्ती इंसान की कहानी हो गयी ॥

कुरान, बाइबल, भागवत रामायण बासी होगयी
खता लह्मो ने करी, कहानी सदिओं की हो गयी ॥

आओ फिर उन लह्मो में खो जायें
वोही जंगल हो, हम तुम हों डाल के गलबाहें

Friday, October 10, 2008

आज का तब्सिरा

नाव चलाने वाले मल्लाह को गम था तो बस एक ही गम था ।
साहिल पे आके किस्ती जहाँ डूबी वहां पानी बहुत कम था ॥

देश की नाव और मल्लाह का भी येही हाल है
नाव में बैठे यात्री परेशान बेहाल है ॥

साहिल सामने नजर आरहा लेकिन मल्लाह गाफिल सो रहा ।
नाव आधी डूब चुकी किस्ती में सुराख़ हो चूका ॥

शेर गीदड़ बन गये शेयर बाज़ार ढह गया ।
सोना सुर्ख हो गया रूपया सौ का आधा रह गया॥

टकटकी लगी है सबकी इंतज़ार है साहिल से राहत के आने की ।
नाव को और पथिक को जीवनदान देने और कायनात बचाने की

उठो हिम्मत करो, मत देर करो, सब छुट जायेगा
जब देश ही नही रहा तो देशवासी कहाँ जायेगा

काशमिरिओं को संभाला हम वतनो ने
हम अगर डूबे,भागे,तो ठौर नहीं प्रभुचरणों में

Thursday, October 9, 2008

विजयदशमी पर्व का महत्व

विजयादशमी का पावन पर्व हमे कुछ याद कराता है ।
दशमुख के दहन की याद कराता है ॥

हम सदियों से जन्म मरण दिवस मनाते आए हैं ।
इस ही रूप में श्रधा के पुष्प चढाते आए हैं ॥

हरवर्ष ईद क्रिश्मस मनती है,गुरुनानक जयंती आती है ।
गाँधीजयंती ,बालदिवस और आधीअधूरी आजादी भी मनाई जाती है ॥

हर बच्चा अपनी वर्षगाँठ मनाता है।
हर जोडा शादी की सालगिरह पर बीबी के नाज़ उठाता है॥

आज देश में देशद्रोही मक्कारों की वर्षगांठ मनाई जाती है।
चारण चाटुकारों द्वारा उनकी झूटी महिमा सुनाई जाती है ॥

कल तक जो गबन के आरोपों में घिरे रहा करते थे ।
वोह आज देश के नेता और जनता खडी है सकते में ॥

आज अगर गांधी भी इस भारत में वापिस आ जायें ।
देख इटेलियन गांधियों को शायद वोह भी शरमा जाये ॥

त्रेतायुग ने दशानन के दस मुख दिखाए थे।
लालच, इर्षा, घमंड, द्वेष, परनारी आदि के पाप गिनाये थे ॥

रावण तो महाज्ञानी, पराक्रमी वेदपाठी, पोलत्सय था ।
इन्द्र यम कुबेर अग्नि वरुण विजेता तेजस्वी था ॥

आज कलयुग में भी रावण हैं।
जिस गली में चले जाओ एक दो नही बावन हैं॥

विजयदसमी की कल ही नही आज भी जरुरत है।
दसमुख से क्या होगा आज तो सौ की जरूरत है॥

आज (जनता) सीता (नेता) रावन की लंका में कैद हो गयी।
हनुमान दलाल बन गये सीता नीलाम हो गयी॥

विजय दसमी का पर्व नया संदेश लाता है।
दसमुख हों या सौमुख हों उनसे लड़ने को जगाता है ॥

एक दिन तो हर बच्चा राम बनना चाहता है।
आतंक, द्वेष, लालच,
देशद्रोह, मक्कारी, महंगाई,
गरीबी, बीमारी,छल कपट,
झूट, बेईमानी, लम्पटता
को जलाना चाहता है ॥

इस ही लिए यह पावन पर्व आता है।
राम नाम, राम राज्य, राम चरित्र की याद दिलाता है ॥

आओ हम भी यह विजय पर्व मनाये।
दसानन दहन का विशाल आयोजन करवाएं ॥

सीता को आजाद कराने की
दशानन को मार गिराने की
दलालों को भगाने की
विभिष्नो को दूर हटाने की
कीगरीबी, भुखमरी, बेकारी,
बदसलूकी, गद्दारी,चोरबाजारी,
आतंक, लालच, छलकपट, मक्कारी
दसमुखों को दहन करने की शपथ खाएं ।।

Wednesday, October 8, 2008

जीवन की सच्चाई

कभी कभी दिल की आग को भड़काने के लिए ।
प्रितम के दिल में अपने को जानने के लिए ॥

दुनिया को अपने प्यार की किताब पढाने के लिए।
कसमे वादों को फिर से दोहराने-अजमाने के लिए ॥

चकोर ढूंढ़ता,चाँद भी बदली में छिप जाता है ।
दिवाना भी इसरार करवाने के लिए गुम जाता है ॥

ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ ।
मैं ने भी कुछ ऐसा ही किया ॥

'या' शायद अनजाने में मै चाहने वालों से दूर हुआ ।
दिल बेकरार था दिन चैन रात नींद से मरहूम हुआ ॥

तपन मुझे भी उतनी ही चढी थी ।
आग इधर भी इतनी ही लगी थी ॥

रोज सोचता था यारों की हसने हसाने की बातें ।
रोज सुबह शाम जो होती थी बातें - मुलाकातें ॥

जब वापिस आया तो क्या देखा?
जो दम भरते थे महोब्बत का उन्हें नादारद देखा ॥

कुछ असली आशिको ने ढूँढ मचा दी थी ।
आर्कुट थाने में रपट लिखा दी थी ॥

आ कर मैं ने रपट की कार्यवाही देखी ।
उस पर अपनी स्याही से इबादत फैंकी॥

आपका शुक्रिया जो आप ने इतना मान दिया ।
अपने को हमारा हमदर्द साबित कर हमे गुलाम किया॥

Tuesday, October 7, 2008

हमारी कामना

खुश रहो
आबाद रहो

चैन से जीयो
सालों नाबाद रहो

हर सुबह नया सूरज देखो
हर रात नया चाँद ताको

हर पल को जीयो
यादों को दिल से ना बांधो

हर रात में दिन
हर गम में ख़ुशी

हर मा में ममता
हर माशूक में अदा

हर मन्दिर में बुत
हर काबे में खुदा

मिलता है चाहने वाले को
उठा नजर मिला जिगर

भूल जा गम
मना दीवाली रोज हर दम

हर दिन खुशनुमा होगा
हमे याद कर प्रेरणा ले रहा होगा

शिकायत - नई सुबह

तुम करो शिकायत हक तुम्हारा है
तुम से दूर रहे नसीब कसूर हमारा है ॥

कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है
दुसरे की गलती को भी ढोना पड़ता है ॥

अपने लक्ष्य को पाने, गोमाता को बचाने,
गोबर गोमूत्र के दाम ग्वाले को दिलवाने ॥

हम ने उद्योगपतियों को बुलाया था
इसे सत्य करने का बिदा हमने उठाया था ॥

आज इसके लिए खुद पहल कर बैठे हैं
मथुरा में गोवर्धन उद्योग की शुरुआत कर बैठे हैं ॥

दीपावली तक आशा है उत्पादन निकल आने
की पुरे देश में गोमाता के नाम का डंका बज जाने ॥

का गोबर से टाइल बोर्ड का पहला उद्योग होगा
आज पर्यावरण की समस्या - गोबर बिक रहा होगा ॥

हर गाय के गोबर का रु२० गोमूत्र का रु३० जिस दिन मिल जायेगा
कोन बेवकूफ उस गोवंश को कसाई के हाथ थमाएगा ॥

ऐसे लगता है ...........

बदले बदले से मेरे सरकार नज़र आते हैं
हमे तो........ बर्बादी के...... आसार नजर आते हैं
अगर आप फैन हमारे तो हम आपके कूलर हैं
आप गुरु - हम चेले ऑरकुट में साथ साथ खेले हैं
ऐसे लगता है ...........
आप कलाकार - मैं दर्शक
आप बादल - मैं कृषक
आप खुदा - मैं पूजा
आप हुस्न - मैं इबादत
आप हसीना- मैं इश्क
आप आप - मैं भी आप
मैं बेटा - आप मेरे बाप
आप जिन्दगी - मैं रवानी
आप नियामत - मैं जवानी
कैसी रही यह सीढ़ी
............बताना सानी

Sunday, October 5, 2008

वो सात समंदर पार गया

लल्लू ने स्कूल में लंदन रोम के बारे में पढ़ा था
ऊँचे मकान फैले मैदान देख उसका मन चला था ॥

सपने में आती थी उड़ते हवाई जहाज की आवाज और तस्वीरें
खुल जाती थी नींद जैसे उसने थे सात समुंदर उनमे पार करे ॥

जब भी किसी नजूमी,पंडित से मुलाकात होती
सिर्फ़ एक ही विषय पर बात होती ॥

मुह पर बताते उसके भाग्य में विदेश यात्रा
पीछे से कहते थे कोई पागल भी करता है विदेश यात्रा ?

सोचते सोचते दिन बीत गये साल निपट गये
लालू जी कक्षा 1२ से कोलेज में धमक गये ॥

दोस्त दिखाते थे ठाट से विदेशी माल को
लल्लू जी तड़पते थे रातों के देखे ख्याल को ॥

एक दिन कोलेज में घोषणा हुयी
अमरीका से चुनाव समिति आने की तिथि तय हुई ॥

लल्लू जी ने भाग लेने की तयारी करी
दोस्तों ने तानो के बारिश करी ॥

दिन निकलते गए
लल्लू जी तड़पते गये ॥

इंतज़ार की घड़ी खत्म हुई
विदेशिओं की टीम आ के जम गयी

लल्लू जी बुलाये गए
अररे, लल्लू जी तो बेहोश हुए ॥

आते ही 'गोड़ सेव दी किंग' चालू किया

फ़िर जन गन मन भी सुना दिया ॥

विदेशिओं ने रास्ट्र गीतों को मान दिया
सभी ने साथ दिया और उठ के सेल्ल्युट किया ॥

लल्लू जी के देश प्रेम से अमरीकी अभिभूत होगये
सवाल कुछ पूछने थे कुछ और ही पूंछे गये

देखते ही देखते लल्लू जी का चयन हो गया
सात समन्दर पार का प्यारों सपना सच हुआ ॥

नये कपडे सिलवाये गये
पासपोर्ट वीसा टिकट बनवाये गये ॥

वोह दिन भी आ गया
एअरपोर्ट पहुंच जहाज पकडा गया ॥

इंतज़ार की घडियां खत्म हुयी
उलटी गिनती चालू हुयी ॥

जहाज गुर्राना चालू हुआ
व्योमसुन्दरी ने सुचना, नास्ता, दारू चालू किया ॥

देखते ही देखते देश दूर होगये समंदर आ गया
लल्लू यानि वो इंजिनीअर ललित प्रशाद सात समंदर पार गया ॥

Saturday, September 13, 2008

आज फ़िर चला पटाका

आज हिमाले की चोटी से फिर किसी ने पुकारा है ।
आतंकवाद के साये में धूर्त जलते पडोसी ने ललकारा है ॥

पूरा भारत घूम, सिमी मुजाहिद्दीन, हिन्दोस्तान  में फिर धमका गया ।
भारत के सपूतों ने आईएसआई की इस चुनौती को स्वीकारा किया ॥

आतंक के सौदागरों को चेतावनी का संदेश भिजवाया है ।
बम फोड ले सडक खोल ले हिंद-कश्मीर हमारा है ॥

६० साल से जालिम तुने मासूमों पर कहर बरपाया है ।
हम ने मुहतोड़ जवाब दिया और हर जगह तुझे हराया है ॥

खेमकरण और कारगिल के संग्राम की पिटाई तू क्या भूल गया ।
जम्मू हो या सूरत, हैदराबाद हो या बनारस चाहे संसद तेरी मौत भूल गया ॥

शायद खावायिश लालकिले पे चाय पीने की अभी भुला नहीं तू ।
शास्त्री के जय जवान की मार को आज भी याद कर तू ॥

राम कृष्ण गौतम गाँधी तिलक जवाहर के हम वंशज हैं जानले ।
सर पे कफ़न माथे पे तिलक, कमर कसे है हिंदकी सेना मानले ॥

हमने विश्व को मानवता का सन्देश दिया ।
पंचशील और सद्भावना को माना और जिया ॥

मजहबों से परे जा हर कौम को आदर दिया ।
इस देश में हर मजहब ने प्यार अमन को जिया ॥

हमने विश्व से आतंक ख़त्म करने का अहद लिया ।
बंगबंधुओं से, अफगानों से, पूछ हमने क्या क्या नहीं किया ॥

हमें लाहौर शांती की रेल भेजना आता है ।
तू छुरा घोंपे तो कारगिल भी करना आता है ॥

मुल्क में जमुरियत फिर से दस्तक दे रही है ।
बेनजीर को लुटा के इंसानियत भी रो रही है ॥

सात समुन्द्र दूर बैठा तेरा आका आज तुझे जान गया ।
हम कुछ भी ना करें दुनिया का थानेदार तो डंडा तान चुका ॥

कुरान-हदीस के पाक फतवों को भुला तू कुफ्र की वकालत कर रहा है ।
अपनों को भड़का के तू उन्हें क्यों नापाक नाकाम बदनाम कर रहा है ॥

दुनिया कहाँ से कहाँ तरक्की कर गयी तू भी इसे जान ले ।
झूट बोलना आतंक बोना- लाशे काटना गलत है मान ले ॥

सावन  के पाक महिने में सिजदा कर कुफ्र  से तौबा मांग ले ।
छोड़ दे यह ओछी हरकते विनाश की,तरक्की की डगर थाम ले ॥

मत ले इम्तहान नहीं तो तू पछतायेगा ।
कसम से हम उठ गए तो कौन बचायेगा ॥

भारत वासियों मत घबराना सब तुम्हारे साथ है ।
हम एकता, सावधानी, कठोरता, निरभ्यता, सद्भाव है ॥

हिम्मत रखना मत घबराना आतंकियों को सबक सिखाना है ।
बाबा बर्फानी के दर्शनों को जाना है आशीर्वाद पाना है 

जनगनमन, सत्यमेवजयते और वन्देमातरम गाना है ॥

Thursday, September 11, 2008

एहसास ए इश्क

रात तनहा नही सितारों से भरी होती है ।
दूजे की बगल में हूर की चाहत भी किस्मत से शिकायत करती है॥

जिसको चाहते हैं नही मिलती यह नसीब या खेल कहो ।
आशिक की तबियत तो गमगीन नर्म करती है ॥

फूल ही नही हर कांटे की दास्ताँ अलग होती है ।
हिफाजत करे काँटा, कली हसीना के जुड़े में जा सजती है॥

कांटा चुपचाप फना हो जाता है इश्क का एहसास लिए
उसकी दिलऔजान जैसे फूल के पास गिरवी होती है ॥

कभी कांटे के दिन भी आते हैं
जब कली के साथ चुने, जुड़े में फूलों का सहारा बन पाते हैं ॥

अली इस अरमान से कली के साये में भटकता है
मिलेगी फतह नाकामयाबी से ना डरता है ॥

क्या हुआ जो पा ना सका रस ए गुल वोह अली
लुटाता मिट गया बेपरवाह इश्क ए कली ॥

उस अली और कांटे का एहसास किसी को नही
मजनू , फरहाद महिवाल के किस्सों का भी इल्म nhi ॥

इश्क के पुजारी उनको आज भी सिजदा करते हैं
कसम उनकी खाते और महोब्बत करते हैं ॥

कभी देखते इश्क लुटता दुसरे की बाहों में आह भरते हैं
माशूक जब दगा देता तब भी अहद इक तरफा करते हैं ॥

हैंयारां अकेले हो तन्हा हो तो याद करना
छोड़ खुदा का दर भी आएंगे इतना इतबार करना ॥

तारों से फरमाईश

यह बेकरारी है,सबब ए इंतजारी चाँद के प्यारों जागतेरहों
हमारी जानेमन आज आ रही है सितारों जागते रहो ॥

वोह आयेनही ऐसी बदकिस्मती नहिहमारी तुम
jab tak ना आये प्यारी रातहैभारी तारों साथ में रहो ॥

चाँदसेप्यारी जान है हमारी तारों रश्क ना करो
फक्र हमे चाँद हार गया बाजी तुम गवाह तो हो ॥

जाग रहे पाने को राजदारी इस बदख्याल में न रहो
कल ढिंढोरा न पीटना हमारे राज का कसम तुम्हे हो ॥

वोह आये या ना आए जागेंगे रात सारी तुम हामी तो भरो
चाँद छिपगया शर्मसे बादलो की ओट में उनका इस्तकबाल करके
...........अब तुम्हारी बारी आगे बढो ॥

लाना उन्हें हमारे गरीबखाने पे तारों की छाओं में ऐसा करम करो
सीता की बेकरारी अशोकवन में तारी ऐसी ही कोई जुगत करो ॥

Monday, September 8, 2008

वकील भाई को जन्म दिन की बधाई

वकीलों का भी जन्म दिवस आता है
वोह भी उसे बडी धूमधाम से मनाता है

कमल के समान चेहरा
उपर से काला कोट तुम्हारा

हमे भी कुछ कहने को
कुछ पैरवी करने को
जन्मदिन की खुशीआं मनाने को
तुम्हे बधाई सुनाने को

हजारों साल जीने को
और हर साल में हजारों दिन बनाने को

प्रभु से अर्दास करने को दिल चाहता है

हमारी अरदास कबूल होगी
तुम्हे दुनिया की सब खुशीआं नसीब होंगी

हमारी मिठाई
हमारे तुम तक आने तक
या तुम्हारे मैसूर आने तक
उधार रखनी होंगी

इस विश्वास के साथ

तुम्हे जन्म दिन की बहुत बधाई
हम ही नही पूरा जग सुनाता है

इंतज़ार.................

शायद आज कल आपके आँगन में धुप आने लगी है
बंधन टूटे युग बीता पर आँखे अब तक संबोधित है '


इस दुनिया में इंसान दूर भागता है किस से
मौत और मौत सबसे बड़ा सच्च है फिर भी इस से


उनके नाम को देख कर कंपकपी सी चढ़ जाती है
खबर की कोन कहे यहाँ तो माँ याद आ जाती है

उन्हें तलाश है मौत के जल्दी आने की
हमे तो करने हैं अभी बहुत काम देर है अभी जाने की

जब मौत आये तो घबरा मत जाना
गले मिलना, कंधे पर चढ़ना और रुखसत हो जाना

हमारे जैसे शायद वहां भी बहुत मिलेंगे
अगर नही तो हम भी अपना सफ़र चालू ही करेंगे

फिर मिलेंगे उपर खुब बातें होंगी
सर्द गर्म खट्टी मिट्ठी मुलाकाते होंगी

अगर खुदा को रास नहीं आई तो फिर वापसी होगी
फिर से संदेश भेजेंगे और मौत की इंतज़ार होगी

अगर ईस जमी पर बाकी हो तो जवाब खरियत का देना नही
तो हम चले आयेंगे उनके कुचे में मुश्किल होगा हमे झेलना

मुरीद तो उनके हो गये
सौदागर ए मौत के प्यारे हो गये

चाहते लकीरें बनके उभर आती हैं हाथो में
पूछ लेना यह बात किसी नजूमी से मुलाकातों में

ऊपर वाला बडा हिसाब किताब रखता है
एक पल ज्यादा ना कम खर्च करने देता है

चाहने से मजनू को लैला नहीं मिली सब जानते
एक भीष्म को इच्छाम्रत्यु वरदान था सब मानते

उसने भी कौरवों पांडवों की दुश्मनी देख मौत चाही थी
लेकिन वोह तो सब खत्म होने के बाद ही मिल पाई थी

आ हम तुम मिल नई दुनिया बनाने का आगाज करें
जिसमें मौत की कोईजगह नाहो ना जुर्म या आतंक वास करे

मन्दिर सजते मधुशाला से

अगर रावण का भाई ना होता तो राम कहाँ होते ?
अगर आम्भी ना होता तो सिकंदर कहाँ होते ?॥

सफेद चादर पर काला निसान टीके की तरह सजता है ।
जैसे गोरी के गाल पे काला तिल चाँद सा चमकता है ॥

मन्दिर के पंडत याद करते है मधुशाला की रातें ।
बैठते अल्लाह के दर पे, पर मधुबाला को ताकते ॥

उस बुतखाने को क्यों याद करना जहां खुदा भी कैद हो ।
उस साकी और मधुशाला का सदका जहां आज़ादी काबिज़ हो ॥

अगर साबित करना हो की किस की ज्यादा दुकानदारी है ।
खोल देखो मधुशाला, किस पर, किस की, रंगत भारी है ॥

दिख जायेगा रंग मधुशाला का हर कोई मदहोश हो जाएगा ।
कारवां पीने गया मधुशाला से तो इबादत करने कोन जाएगा ॥

"सजते है मंदिर मधुशाला से" शराबी झूमता गाता जायेगा ।
मधुशाला होंगी तो ही मौलवी मस्जिद में खुदा याद कराएगा ॥

Friday, September 5, 2008

झुलत पलने में घनश्याम

यशोदा लेत बलैया देखत श्याम सुबह श्याम
पलना डोरत हिलत पायजबिआं बजत मधुर कर्णधाम

नन्दबाबा को लाडलो सोवे गोपिआं देखेत आवे भूलत घाम
हरष खिलत देख श्याम को सखी झोंटा देत लपक नित शाम

यह दर्श मेरे मन में व्यापो मेरे जीवन की भई शाम
मैं तो चली गोकुल मिलवे सांवरे को मुझे ना कोई दूजो काम

तू भी आयियो कान्हा के दर्शन पायियो दोनों लेवेंगे श्याम को नाम
सुन प्रियसखी बैठेंगे नन्द के चौबारे कर जन्म सफल निरख छबि घनश्याम

राधे राधे

श्याम से मिला दे

नैया तू सबकी पार लगा दे

Wednesday, September 3, 2008

गणपति बाप्पा मोरिया

हीरों के मुकुट से सजा
लाल रत्नों से भरा

गणपति बाप्पा मोरिया

आया मेरे द्वारे
कारण तुम्हारे

आ मिल के इसे पुकारें

गणपति बाप्पा मोरिया
अबके वर्ष तू जल्दी आ

रिद्दि सिद्दि साथ ला
दीन दुखी सेवा की शक्ति दे
देश को खुशहाल बना

अंत समय आये तो ..........
अपने दर्श दिखा

यमपाश से बचा के ..................
अपने धाम में बसा

कसम बेवफ़ा

लम्हा लम्हा वक़्त गुज़र जायेगा ,
चंद लम्हों में दामन छोड़ जायेगा।

अभी वक़्त है दो बातें कर लो हमसे,
पता नही कल कौन तेरी ज़िंदगी में आ जायेगा।।

तुम भूलकर तो देखो हमे
हर ख़ुशी तुमसे रूठ जायेगी।
जब भी सोचोगे अपने बारे में
खुद-बा- खुद याद हमारी आएगी ॥

जीनकी याद में हम दीवाने हो गए,
वो हम ही से बेगाने हो गए।।

शायद उन्हें तलाश है अब नए दोस्त की,
क्युंकी उनकी नज़र में अब हम पुराने हो गए ॥

ख्वाब देखा भी नहीं और टूट गए
वोह हमसे मीले भी नहीं और रूठ गए ॥

हम जागते रहे दुनिया सोती रही
एक बारीष ही थी जो साथ रोती रही।।

सुना है जब कोई याद करता है तो हीच्की आती है
अगर इस बात मैं थोडी सी भी हकीकत है ॥

नामुमकिन है की तुम्हारी हिचकी एक पल भी रुक जाय
हम सामने ना होंगे फ़िर भी हमारी याद आए और आँख ना भर आए ॥

Monday, September 1, 2008

संदेश

************************
* जीयो और जीने दो । *

* अहिंसा परमो धर्म: ॥ *
************************
दया करुणा रहम अहिंसा ।
क्षमा मानव-प्राणी प्रेम त्याग का संदेश ॥

गौतमबुद्द-महावीर-गांधी ।
ईसा अल्लाह नानक के नाम की आंधी ॥

हर पैगम्बर हर मजहब का यह एक फरमान ।
भूलगया आज इन्हें इंसान ॥

जाता मन्दिर मस्जिद चर्च गुरद्वारे और दिवान ।
दिल में नफरत इर्षा और धर्म का तूफ़ान ॥

सुमरिणी फेरत दिन गुजारे।
राम रहीम जिसस नानक को पुकारे ॥

पर्युषण पर मांगे क्षमा का दान ।
दिल में रखे लडाई का मैदान ॥

कैसा भ्रम पाला तुने हे हिन्दू सिख क्रिस्चन मुसलमान ।
तू समझे धर्म पर मिटना तेरी आन लड़ना तेरी शान ॥

पछता रहा उपरवाला बना के कलजुग का इंसान ।
अरे तुझे लड़ा रहे धर्म के ठेकेदार यह कलजुग के शैतान ॥

गौरी-गणेश पर्युषण पर्व और महिना पाक रमजान ।
आ आज प्रण करके करुणा अहिंषा का दे इन्हें सम्मान ॥

जन्मदिन की बधाई

मैं पल दो पल का शायर हूँ
पल दो पल की जिंदगानी है

आज जन्मदिन की बधाई देनी
और तुम से खुशी की मिठाई खानी है

यह हसीं गुलाब सा चेहरा रोशन रहे
इस आसमा पर जब तक सूरज चाँद रहे

यह पहाडों का देवता अडिग रहे
किसी भूचाल तूफान से ना डरे

इस जिन्दगी का मकसद
रहम करुना दया और माफ़ करना

आज एक अहद करो
इन मकसदों को नये प्रभात में लागू करना

बर्फानी की जय


बधाई
इस सफलता पर पुरे बर्फानी भक्त समुदाय को
और केंद्र सरकार को सदबुद्दि आने पर।

बर्फानी का देखो कमाल
दुश्मनों को कर दिया हलाल

बर्फानी से जो टकराएगा
उसका येही हश्र हो जायेगा ॥।

कुर्बानी असर लाती है खून देने के बाद
आतंकियों को सबक काश्मीर या मुज्जफराबाद ॥।

जीत की ख़ुशी मनाएंगे
अब तो अमरनाथ जायेंगे ॥।

Friday, August 29, 2008

मेरा धर्म ....गोरक्षा......... मेरी गोमांता

तुने जन्म दिया नहीं मुझको ।
पर मानू तुझे मैं मा ॥

तेरा दूध रगों में दोडे ।
मैं जानू ये भी मा ॥

भारत के तू हर कण में ।
भारत के तू हर जन में ।
तू बसती है मेरी मा ॥


सुख सारे तुससे पाए ।
तू दुःख में भी सुखालाये ।
मैं हर्षित हूँ मेरी मा ॥


जीवन से और मरण तक ।
शिख से और चरण तक ।
तू सबके काम आये ॥

बैल शक्ति गोबर गोमूत्र से ।
दूध दही घी उपयोग से ।
नई उद्योग क्रांति आये ॥

हर गाँव हर कोने में ।
देश का दुर्भाग्य ।
जो तुझे काट और खाए ॥

हर गाँव में हो तेरा बसेरा ।
फैलाए जो सवेरा ।
अंधियारा भाग जाए ॥

अब हमने भी ठानी ।
गोमाता है बचानी ।
जो मरने पर तारे ।
जन्नत धरा पे लाये ॥

कृष्ण प्यारी........... निहाल

कान्हा खेलत ब्रिज मैं ग्वालन संग
घुसत गोपियन के घर ढुडन माखन ॥

गोपी तरसत छुप झाँकत, कब आवेंगे नन्दलाल
देख कान्हा, दर्शन पात, होजावे निहाल ॥

लेत बलिआं, पीछे भागत, पकड़वे को नटवरलाल
अंखियन नीर बहावत, कमलपद पखारत, जपे गोपाल ॥

ये नटखट,लीला करत,गोपियन को खिजावत,करे धमाल
छाछ के लोटे पे,त्रिभंगी को नचावे,देखो गोपियन को कमाल ॥

मनभाव दुसरो,काम दूसरो,पकडे श्याम को, डाले लाल
सून स्यानी, जो इसे ध्यावे,वोह तो,निहाल और खुशहाल ॥

Saturday, August 16, 2008

रक्षा बंधन

अपनी मुफलिसी के डर से, मैं घर ही नहीं गया अपने ।
बहन ने फेंक दी होगी राखी, मेरा इंतज़ार करते करते

मुफलिसी नहीं यह तो बहाना था
तो भाभी के साथ सुसराल जाना था

बहिन मिलती तो खर्च हुआ होता
सुसराल में तो स्वागत हुआ होगा

बहिन तो इंतज़ार में सूख आधी हो चुकी
तुझे किसने समझया की वोह राखी फैंक चुकी

में एक बार भाई बहिन का त्यौहार आता है
मुफलिसी का बहानाकर बहिन को इंतजार कराता है

फेकी नहीं किसी गधे को बाँध दी होगी राखी
अपसगुन कैसे करेगी फैंक के बहिन,
.................भाई का वरदान यह राखी

आज की ताजा खबर

कश्मिरिओं को १५०० करोड़ का नुक्सान हो गया
अरे हिसाब लगाने वालोंसिर्फ ३,००,००० कश्मीरी पंडितों का ५,00,000/- साल से हिसाब लगालो तो :-

अबतक 15000 करोड़ के हिसाब के ३,0०,००० करोड़ का नुक्सान हो चूका है।
उनकी जमीन सम्पति तो १० लाख करोड़ से ज्यादा की पाएगी ॥


अगर हिसाब की बात करते हो तो लगाओ हिसाब की ....................
कितने लाख करोड़ इधर से उधर जा चुके हैं ।
एक कारगिल में कितने जवान जान गवां चुके है ॥


क्या मुजफ्फराबाद में सेव नही उगते जो इनका वहाँ इस्तकबाल होगा ।
अरे नही इन्हें जाने दो इनका हमे मालूम है वहां क्या हाल होगा ॥

हमे uno की धमकी देते हैं जैसे अमन के ठेकेदार हों ।
दुनिया जानती है पहिचान्ती है इन आतन्किओं को ॥


बदनाम कर दिया हिंद के मुसलमान को ।
अल्लाह के नाम को इंसान के अरमान को ॥

भेड़िया आया भेड़िया आया का शौर सुन दौड़ा करते थे ।
एक दिन आया तो झूट मान अनसुना करते थे ॥

एक दिन यहाँ भी ऐसा ही होने वाला है ।
पूरा काश्मीर एक हो भारत में मिलने वाला है ॥

कश्मीर की धरती का बवाल

आज की ताजा खबर कश्मिरिओं को १५०० करोड़ का नुक्सान हो गया हिसाब लगाने वालों सिर्फ ३,००,००० कश्मीरी पंडितों का ५०,०००/- साल से हिसाब लगालो तो अबतक १५०० करोड़ के हिसाब के ३०,००० करोड़ का नुक्सान हो चूका हैउनकी जमीन सम्पति तो १० लाख करोड़ से ज्यादा की पाएगी ॥
हिसाब की बात करते हो तो लगाओ हिसाब की

कितने लाख करोड़ इधर से उधर जा चुके हैं ।

एक कारगिल में कितने जवान जान गवां चुके है ॥
क्या मुजफ्फराबाद में सेव नही उगते जो इनका वहाँ इस्तकबाल होगा ।

अरे नही इन्हें जाने दो इनका हमे मालूम है वहां क्या हाल होगा ॥
हमे uno की धमकी देते हैं जैसे अमन के ठेकेदार हों ।

दुनिया जानती है पहिचान्ती है इन आतन्किओं को ॥

बदनाम कर दिया हिंद के मुसलमान को ।
अल्लाह के नाम को इंसान के अरमान को ॥

रक्षा बंधन

शुभ प्रभात की बेला में
 रक्षा बंधन लिए हाथ में 
बहिन खड़ी दरवाजे पे 
उठ दौड़ ले बलैआं 
भाग जगे तेरे उसके आने से 
वोह बांधेगी रक्षा 
तेरा रक्षा का वचन पाने को 
देगी तुझे आशीर्वाद 
दुनिया की हर नेमत पाने को

नटवरलीला

प्रिय सखी

जपत देखत नटवरलीला अपनों जन्म सफल बनाएँगे
राधे श्याम सुमिरत ब्रिन्दावन धाम जायेंगे.

राधावल्लभ कुञ्ज गलियन में ढूंड नयनन शीतल करवाएँगे
आया जन्मोत्सव राधाजू को श्याम रिझाने को सृंगार करेगे

सखी सखा सब मिल श्याम राधाजू की लीला में रास करेंगे
वेश बना पकवान पका युगलवर की ब्लैआं ले सेवा करेंगे

नन्द यशोदा के लाडले को माखन दिखा नाचवे को त्यार करेंगे
सुनरी सखी श्याम मनोहर राधाजू संग रास ठिठोली कर विलास करेंगे

ऐसी छटा इस जग में खिलेगी हम सब द्रग नीर भर भाग सराहेंगे
मुझे ना चाहे बंसीबट या महल चौबारा मैं तो वहां ही बसूं जहाँ मेरे राधे श्याम बसेंगे

Monday, August 11, 2008

अभिनव बिंद्रा का अभिनन्दन

देश ओलम्पिक में शामिल तो होता था
११० करोड़ का देश शर्मिंदा वापिस होता था

अरबों खर्च का था सालो साल कोई हिसाब नही
एक भी एकल स्वर्ण था हमारे भाग में नही

हम विश्व नेता होने का दावा करते थे
लेकिन स्वर्ण पाने को तरसते थे

खेल भावना की मिसाल देते थे
अपने कर्म ठोक रो लेते थे

कभी ध्यान कभी मिल्खा कभी अमृत याद करते थे
कर्नेश्वरी और चौहान को आँखों पर रखते थे

पुरुश्कारो को अर्जुन राजीव पुकारते थे
देश के खिलाडियों को भर भर धिक्कारते थे

असली अर्जुन तो अभ्यास कर रहा था
अपने करतब को पैनी धार धार रहा था

सुबह पूरब से नया उजाला आया
देश में खुशीओं से भरा पैगाम लाया

अभिनव तुम देश की शान
भेद दिया ओलम्पिक का निसान

२५ साल के पंजाब के नवजवान
आधुनिक अर्जुन को देश का सलाम

आओ वापिस देश पलक बिछा इन्तजार में
है बिंद्रा के विजय अभियान उत्सव की त्यारी जोरों पे है

तुम्हारी विजय देश का भाग लिखा जाने वाला है
स्वर्ण नही, नवयुवको की प्रेरणा और संकल्प होने वाला है

बिंद्रा परिवार को हार्दिक बधाई