Wednesday, May 28, 2008

साकी और मयखाना

अल्फाज बयां ही करते है, दम तो बयां करने वाले में होता है
दिल को दिल की कशिश परदे में भी होती है रूबरू होने में क्या रखा है

साकी तो मयखाने में जाम लिए पैगम्बर होती है जैसे मूर्ति बुतखाने की
बुत की पूजा दूर से करो जनाब होटों से लगाने में क्या रखा है ॥

साकी का तो काम है गुस्ताखी करना और दीलों
को
तोड़ना
तुम आँखों से प्याले चटकाते रहना ॥

जब तक जेब में माल है साकी इस्तमाल है
जहाँ माल खत्म है वहां साकी दुसरे की दुल्हन है ॥
इसलिए साहेब

कुफ्र से तौबा करो अल्लाह से नाता करो
बदी से टलो नेकी पर चलो गरीब की आह से डरो ।।

आह तो वोह चीज है जो मरी भी लोहे को गाल दे
तुम अल्लाह के नाम भरो तो वोह तो मोत को भी टाळ दे ॥


कमाई करो, जेब खाली करो, ऐश करो
भाभी जान से इश्क करो, दोस्तों पर नेमत करो ॥

हुजुर, हम तुम्हारे साकी और मयखाना दोनो हैं
रूबरू तुम्हारे आगोश में साकी के हैं ॥

होटों से लगा कर भी हमें नशा नहीं आया
तुम यह जाम खाली करो दूसरा पीछे आया॥

आह भरो यह प्यार करो अंगार बनो या पानी
साकी तो साझे की है इतना तो जानलो सानी॥

1 comment:

हकीम जी said...

कभी ग़म की आँधी, जिन्हें छू न पाये
वफ़ाओं के हम, वो नशेमन बना दें