मैं मंजिल की और तनहा चला जा रहा था
सामने से साथिओं एक फितना आ रहा था
वोह भी तनहा था मैं भी तनहा था
मौसम सुहाना हो गया था
दोनों की कटने का मौका बन गया
आँखों ही आंखों में दिल पट गया
क्या था- हाथ में हाथ आ गया था
रस्ता कब कट गया पता ही नहीं था
अलग होगी पर अब एक हो गयी थी
सारी जीन्दगी की तन्हाई दूर हो गयी थी
ऊपर वाले की नियामत का सभी तनहाओं पे हो
ऐसी ही दिलरुबा हर कीसी को नसीब हो
Monday, May 5, 2008
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1 comment:
बहुत ही सुंदर सुंदर कविता
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