Monday, April 7, 2008

पुरी होंगी आशायें

पुरी होंगी रुकी हुई आशायें

एक आस पर ही तो मनुष्य जींदा रहता है

सुबह को शाम की , शाम को सुबह की इन्तजार की घड़ियों में

बचपन में जवानी की आस में, जवानी में आने वाले स्वर्णयुग की आस में,

पैदा होते ही माँ बाप के साए और बुढापे में बचो से सेवा की आस में

एक आस पर ही तो मनुष्य जींदा रहता है.

जब सब से नीरास हो प्रभु शरण में जाता है

तभी वीनोद बीस्सा जी का आशा भरा, संघर्ष भरा जीने का सन्देश आता है.

...................पुरी होंगी रूकी हुई आशायें

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