Monday, April 7, 2008

कीसान का सोच

नया उत्साह ,

एकदम धुला-धुला सा आसमां,एक मुट्ठी कीरण,
कुछ सौधी सी ,मिटटी की महक,
मन जागा-जागा सा,कुछ और नहीं ,
ये आगमन है,बारीश का।।


* * * * * * * *
देख कारे कारे बदरा मौर मुताबीक नाच रहा
मन एक कीसान का,
जो सोच सोच मुस्कुरा रहा

यह कड़कती बीजली नहीं उपरवाले का वरदान है
बादल बरसे तो समझो पूरे होगए अरमान है

कल तक जो मिटटी बुरी लगती थी आज लगे प्यारी
महक सौंधी, फसल फूली, भरती दीखती है कोठियारी

छम छम करती आती का उसे इन्तजार है
आज खाना लेकर आती रमणी से नहीं,................ उसे तो बरसात से प्यार है

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