Monday, April 7, 2008

जीने का चक्कर

कहाँ परवाह है कल की किसी को रहे न रहे
आज जीने के चक्कर में दुनिया लुटा रहे हैं
................................. विनोद बिस्सा

आजादी की लड़ाई लड़ कर कुर्सी पाई

कुर्बानी की कीमत पाई, खूब दौलत कमाई

चुनाव लड़ते लड़ते जनता की बद दुआएं सामने आई
विरोधीओं ने जांच करने कों सी बी आई जांच बैठाई

घोटालों का सामना करते करते जान सांसत में आई
कमाया माल जाते देख दील हाथ में आया है

कहाँ परवाह है कल की किसी को रहे न रहे
आज जीने के चक्कर में दुनिया लुटा रहे हैं

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