Monday, April 7, 2008

ना दीन हो ना रात

मुझे याद आता है वोह जमाना

मेरा नीक्कर में और तुम्हारा फीराक में आना

तुम्हारा हँसना और मुझे रुलाना

झगड़ना, रूठना फीर मान जाना

जब माँ ने मेरी दुल्हन बनने को कहा तो तुम्हारा शर्माना

एक दीन जब मुझे सजा मीली तो घर से चुरा कर मुझे खाना खीलाना

आज तुम्हे भी वोह सब याद आता होगा।

तुम मेरे सपने में आती हो में भी जरुर ख्यालों में आता हूँगा।

यह सभी यादें हमारी जीन्दगी की धरोहर हैं

जीसकी कोई कीमत नहीं फीर भी मनोहर हैं

आओ फीर उस ही दुनीया में वापस चलें

जहाँ तुम हो मैं हूँ पर घडी ना चले

बुझ जाये सारे दीये अंधियारी रात हो

तुम्हारे चाँद से चहरे से घूँघट हटाता मेरा हाथ हो

फीर ना दीन हो ना रात हो

समय थम जाये जब तुमसे मुलाकात हो

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