Saturday, April 19, 2008

जजबात की बात

पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला,
मैं मोम हूँ उसने मुझे छु कर नहीं देखा.
आखो में रहा दिल मैं उतर कर नहीं देखा ,
कश्ती के मुसाफिर ने समन्दर नहीं देखा.

जमने के बाद मोम भी पत्थर हो जाता है
दोस्त छू दे तो पत्थर भी पिघल जाता है

कश्ती डूबती दगा बाजों की है
बात समुंदर की नहीं जज्बातों की है

जिसने नहीं कीमत की जजबातों की
दील में उतरा नहीं ना आँखों से बातें की

उसने तो देख कर भी प्यार का समुंदर नहीं देखा
किस्ती उसकी डूब गयी और अभागा बाहर रह गया बैठा