Friday, April 18, 2008

सपने और दहलीज़

कीसी के जाने से जीन्दगी फ़ना नहीं होती है
हर रोज़ दीन के बाद रात, और फीर सुबह जरुर होती है

ीठी यादों को सहेजना अच्छा लगता है
लेकीन कीसी बेवफा के लीये गुरु बीखेरें खुशियाँ, हमें धक्का लगता है

गालीब बोल गए पुराने ज़माने में,
और भी बहुतसे गम हे इस ज़माने में।
कीस कीस को याद कीजिये कीस कीस बेवफा को रोइए

लाइन लगी है चाहनेवालीयों,पसंद कर अपनी की छाँट लीजीये,
और फीर.... आराम बड़ी चीज है .... मुह धक् कर सोइए


गुरु तुम भी आज के इंसान हो
पत्थर पूजते हो उसके समान हो

मील मालीकों को तो रोते जमाना बीत गया

अब तो नाम है लूटने में नेताओं का, अफसरों का जीनका यह पेशा बन चूका

बखस्ते नहीं वो ख़ुशी मालीक ए दुकान की
कया बीसात है उनके सामने हवान या
इंसान की

कीस ने बनाया है मालीक ए कायनात उनको
गुनाहगार हम तुम ही है चुनतेे है ..................वीधायक, सांसद उनको

जे

जीयेंगे हम कैसे तुम्हारे बीना जब छीन गए हमसे सारे सहारे
भंवर मे फंस गई कश्ती उस वक्त करीब थे बहुत अपने कीनारे
छोड़ गई वही साथ जीसके लीए मैंने ठुकरा दीये जींदगी के हसीन नज़ारे
छतो पर खड़े होकर नजरे मीलाना खो गए कहाँ वो मीलन के नज़ारे
तुम्हे एक बात बताऊ मीत्रो यारो उन्होंने कसम खाई थी की वो है हमारे
दील शाद कैसे होगा यही गम है छीन गए दील से दीदार के नज़ारे
उसने नजर क्या फेर ली हमसे यारो टूट कर गीरे आँखों से उम्मीदों के सीतारे
"महेन्द्र" की दुनीया मे खुशी कहाँ दील की दहलीज पर टूट गए सपने बेचारे
पत्थर से सख्त हो गए आज के इंसान दो पैसे क्या आ गए भगवान हो गए
खून चूसते है गरीबो का जोंक बनकर मील मालीक आज के हैवान हो गए

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