Wednesday, April 23, 2008

चीडा और सफ़ेद गुलाब


येक चीडाा ने गुलाब को prapos कीया , सफ़ेद गुलाब ने शर्त लगा डी की जब वोह लाल हो जाएगा, चीडे काप्यार काबुल करेगा, चीडा गुलाब के उपर लोटने लगा और कांटो से अपने कोछील डाला। खून टपका टपका करगुलाब लाल कर दीया।
गुलाब को बड़ा रंज हुआ और कहा की वो भी उससे प्यार करता है पर तब तक चीडा मर चुका था


प्रेम कहानी का हसर शायद यही होता है
तब ही तो सोहनी म्हीवाल - हीर राँझा का नाम होता है
कीतने ही चीडे कुर्बान हो गए हुस्न ए सफ़ेद गुलाब पे
गुलाब तो लाल होकर हसीनो की जुल्फों में जा सजता है
याद करता न कोई चीडे को न गुलाब को,
जमाना तो सजी हुयी जुल्फों पे मरता ह

खूबसूरती तो कोई ख़ता नहीं..............
पर अदाओं से कीसी को सता नहीं.......
दील की तरह फूलों को न तोड़,
तुझे अदब की बातें पता नहीं..............

अदब बा मुलाहीज़ा होशीयार
फीत्नो पर फीदा होने वाले भोंरे बन समझदार

खता खूबसूरती में कोन बताता है
लेकीन बेवफा पर जान लुटाने में कीसी कीसी को मज़ा आता है

फूल को पांवों से कुचल या जुफो में सजा मेरा कया जाता है
फूलों को अदब प्रभु चरणों में अर्पण करने में ही आता है

यह साबीत कीतनी ही बार हुआ ......
.....की हुस्न ने बेवफाई की,.. दीलों को कुचला - रोंदा
हाय उन्हें तो मज़ा ही इस् खेल में आता है

1 comment:

समयचक्र said...

बहुत सुंदर लाजबाब बधाई