Monday, May 12, 2008
इसक का भूत
तुम्हारी दिमागी हकीकत ज़माने की सचाई नहीं हो सकती
तुम्हारी रुसवाई, जहान की रुसवाई नहीं हो सकती
दिल आया गधी पे फिर हसीना क्या चीज होती है
मत कर बचपना मानले सीख, यह झूठा ख्वाब बुरी चीस होती है
इत्तफाक से महोबत कामयाब कम ज्यादातर रुसवाई होती देखी है
कल तक की माशुका दुसरे की डौली तीसरे की बाहों में जाती देखी है
अगर तुझे शौक है दिवार से सिर फोड़ने का तो हमारा क्या जाता है
तू इसक कर,.............
आगे पीछे घूम ..............
इबादत कर.................
फीर भी अगर उन्हें यह सब..................
मज़ाक, खाव्ब, इत्तफाक लगता है तो सौच...............
तेरा हस्र कीतना नजदीक हो सकता है
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1 comment:
संदेश से परिपूर्ण कविता मनभावन लगी बहुत बढ़िया लिखते रहे धन्यवाद
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