कांहा को निरख मंद हसत चितचोर तकत बैन छैलछबीले
बरसाने की गलियन में फिरत त्रिभंग वेश भरत गोपियन को डोले
राधा झाँकत खिड्कन ओट से श्याम बिहारी को पावत नहीं मन में बोले
चैन न आवत किशन बावरे बिना एक छन भी, वेग मिला "श्यामा" रसिक रस रसीले ॥
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