सखी मैं बावरी सपने में दिखत घनश्याम ।
रात सोलह श्रंगार कीये पिया को जपत कब लग गई लौ शाम ॥
दधि मटकी सर पर धरी ढूँढत श्याम थकी घुमत नंद्ग्राम ।
यशोदा घर गयी तिरछी नयनन सो चितवन देखी सोवत चौर घाम ॥
कहा कहूँ सखी रुकना सकी मैं शर्मा कर भगी छुट गयो नंद्ग्राम ।
लटक पटक दौडत बरसाने पहुंची निकलो नहीं जीयो प्रान ॥
पीछे पीछे नटखट सखा संग पहुचो करवे राधारानी को बदनाम ।
प्रान न निकले तन से चाह दर्शन की लीये आँखों में बसे सूर श्याम ॥
मैं कया जानू रात क्या भयो आँखों में ना नींद तन बिना प्रान ।
सखी तेरे चरणों पडूं वारि जाऊँ कहियो न किसी को मेरे जीवनधन केवल घनश्याम
राधे राधे .................
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