Wednesday, May 21, 2008

चाँद और तारे

एक अँधेरा लाख सीतारे ।
उलटे थाल में देखो उपर टंगे है सारे ॥

चाँद को देखते है वो तारे ।
जैसे हम घिरे हैं आफतों के मारे ॥

तम से ना वोह हारे ।
आफतों
से हम नहीं मारे ॥

दीन और रात साथ
साथ हैं ।
दुःख और ख़ुशी भी आस पास हैं ॥

कल की याद में कल नहो खोना ।
दुखों की याद में कभी नहीं रोना ॥

शाम होते ही आजायेंगे सीतारे ।
जैसे कोई आकर तेरी
राह
संवारे ॥

एक अँधेरा.....................
पता नहीं कोन पुकारे

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