एक अँधेरा लाख सीतारे ।
उलटे थाल में देखो उपर टंगे है सारे ॥
चाँद को देखते है वो तारे ।
जैसे हम घिरे हैं आफतों के मारे ॥
तम से ना वोह हारे ।
आफतों से हम नहीं मारे ॥
दीन और रात साथ साथ हैं ।
दुःख और ख़ुशी भी आस पास हैं ॥
कल की याद में कल नहो खोना ।
दुखों की याद में कभी नहीं रोना ॥
शाम होते ही आजायेंगे सीतारे ।
जैसे कोई आकर तेरी राह संवारे ॥
एक अँधेरा.....................
पता नहीं कोन पुकारे
Wednesday, May 21, 2008
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