Saturday, May 31, 2008
खुदा-बुदबुदा
जवानी में हसीना का पसीना इत्र ए गुलाब
और बाद में उसका सीना चारमीनार ए हयद्राबाद
हमें मुर्गा मुस्सलम नहीं सिर्फ दावत ए शिराजी चाहिए
तुम्हारी सांसे नहीं सिर्फ साथ जीने की आसें चाहिए
कहाँ खुदा- कहाँ बुदबुदा
मैं तो इंसान हूँ इंसान ही भला
भूल गए सुबह की नसीहत जो शाम ख़राब करते हो
लड़ने जीने की बात करते हो दिल पे वार करते हो
तुम करो या मैं करू किसी का साझा नहीं है
काम सब को है इम्त्ज़ार में कृष्ण के राधा नहीं है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment