तुम्हारे लफ्ज हमारी जीन्दगी की शायरी है
तुम खुद से अजनबी हो हमसे तो आश्की है ॥
खुशबू तुम्हारे गेशुओं की बस गयी दिलओजान में
रोकते है साँसे खुशबू को अपना मान के ॥
हमें महोब्बत सिखाने का अहद भरती हो
हम तुम्हारे हो चुके झांक के तुम्हारी मदहोश आँखों में क्यों डरती हो ॥
जानम, कसम है तुम्हारी सिर्फ़ और सिर्फ तुम्ही इन आंखों में बसती हो
नींद आये तो तुम ना आये तो फिर तुम ही दिखती फिरती हो ॥
अरमान तुम हो हसरत भी तुम हो
जीन्दगी तुम पर वार दी अबतो मुस्कान भी तुम हो ॥
सांस तो रोक कर बैठे है जानती हो क्यों
तुम आओगी साथ बैठेंगे साँसे टकराएंगी घडी पल दो ॥
मशवरा तुम्हारा हम मुद्दत पहिले मान चुके हैं
तुम भी कर चुकी हो हम भी कर डूब चुके ही॥
फीर तुम्हे खाव्बों में वापसी का ख्याल आया लगता है
हमें तो अपनी बर्बादी का आसार ज्यादा लगता है ॥
जख्म खा खा के यह सीना चौडा होगया है
हसीं फितने को गले से लगा लगा यह खुद कातिल हो गया है ॥
अब तो बारी है जक्मो पे मरहम लगाने की
तेरे पास आने की सीने से लगाने की ॥
इस बार तुम आओ सीने से चिपक जाओगे
कसम तुम्हारे मिलन कि वापिस नहीं जा पाओगे ॥
Tuesday, May 20, 2008
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