मतलब के समय भाई वर्ना अनजान बन जाना
यही जीवन कि रीति नीति बनती जा रही है
मक्कारी कि यह हद आश्चर्य में डालती है
पर कहते हैं यही मक्कारी आगे बढाती है
मक्कार ही कहते हैं की मक्कारी आगे बढाती है
सच तो है की लगन, मेहनत, ईमानदारी और तकदीर रंग लाती है
यह ठीक है की मतलबी दुनीया में भाई और लुगाई भी मतलब साधते हैं
जरुरत हो तो सजना-भाई - अप्पा - ताई
नहीं तो तू कौन और मैं कौन हट सौदाई
फीर भी दुनीया टिकी है दिलवानों पे
महफ़िल टिकी है कद्र्दानो पे
धर्म टिका है धर्मवानों पे
इंसानियत टिकी है मेहरबानों पे
सरकार टिकी है वफादारों पे
प्रभु भक्तों की अर्दासों पे
इस लीये कोई आश्चर्य नहीं कोई गुमान नहीं
मैं मक्कार नहीं और - मक्कारी से नफरत है,
उसका कोई ग्यान नहीं, स्थान नहीं
Friday, May 2, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment