क्यों दोस्ती को बदनाम करते हो
क्यों अपने साथ हमें भी घसीटते हो
बहुत से गम होते है ज़माने में,
कुछ खुले में, कुछ वीराने में
हर जगह हर चीज की जरुरत नहीं होती
जैसे परीक्षा कक्ष में दोस्त कया दुश्मन की भी पैठ नहीं होती
शादी में बाराती तो सभी होते है
सुहागरात में तुम ही बताओ कितने दोस्त साथ होते है
तुम दम भरो दोस्ती का येही काफी है
जरुरत के समय भी नहीं आये तो भी तुम्हे माफ़ी है
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अहद करना आसान निभाना मुश्किल होता है
मांगने से पहले जो जान हाज़िर करे वोही दोस्त होता है
दम दोस्ती का भरने वाले बहुत इस ज़माने में हैं
जान पर खेल कर दोस्त के काम आने वाले कम ही दीवाने हैं
मुझे लगता है तुम्हारी कोई खास शखशियत है
ऐतबार तुम्हारे शब्दों पे मेरी किस्मत है
आशिक माशूक के किस्से मैं गाता नहीं
कृष्णा-सुदामा जैसी दोस्ती मैं भुलाता नहीं
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खाव्बों में रहने की तुम्हारी पुरानी आदत लगती है
फील्म तारिकाओं की तस्वीरों को ताकने की लत भी तुम्हे लगती है
जो हाथ की लकीरों में नहीं लिखा उस से प्यार की आदत लगती है
सड़क पर खडे हो कर नारे लगाने तक की हिम्मत लगती है
जब सामने आओगे तो सब याद करेंगे............
मुड के भूल जायेंगे ऐसी तुम्हारी किस्मत लगती है
Wednesday, May 7, 2008
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