Friday, May 9, 2008

श्याम की बांसुरी बजे रे.........


मोहन की बंसुरिया बाजे रे- मोरे चित में मयुरिया नाचे रे।

दिखत नाही बुझात नाही मटकत जात गोपियन को खिज्जात रे ॥

मन भटकत, जिया अकुलात सखी विरह सहा नाही ज़ात
वेग से मिलत श्याम मानु उपकार तोरा प्यारी रे॥

पड़गई शाम - आवेंगे श्याम मैं तो हुई बाँवरी प्यारी सुन बांसुरी की धुन आवेको सन्देश आवेरे ॥


आवेंगे श्याम मौर मुकट, कटी काछनी, कर मुरली ,
और जिनके केश घनश्याम मनावेंगे मुझे, पर मैं न मानु रे ॥


छीन बांसुरी, उतार के माला, गयियन के पिछ्कारे दौडा पुरा बदरा आज मैं निकारूं रे ॥

छोड़ सखी बौलत है तू तब तक- जब तक - श्याम दर्शन ना दिखावत रे ॥

आवेंगे श्याम ढलेगी शाम होगी रासलीला, संग संग खेलत - नाचत
गोपियन के चरण दबावत, तुझ को रिझावत रे ॥


सून सयानी तू तो जानत छाछ के लोटे पे गोपिओं के गोठो
पे यह त्रिभूवंनाथ बांसुरी की टेर सुबह शाम सुनावत रे

No comments: