मोहन की बंसुरिया बाजे रे- मोरे चित में मयुरिया नाचे रे।
दिखत नाही बुझात नाही मटकत जात गोपियन को खिज्जात रे ॥
मन भटकत, जिया अकुलात सखी विरह सहा नाही ज़ात
वेग से मिलत श्याम मानु उपकार तोरा प्यारी रे॥
वेग से मिलत श्याम मानु उपकार तोरा प्यारी रे॥
पड़गई शाम - आवेंगे श्याम मैं तो हुई बाँवरी प्यारी सुन बांसुरी की धुन आवेको सन्देश आवेरे ॥
आवेंगे श्याम मौर मुकट, कटी काछनी, कर मुरली ,
और जिनके केश घनश्याम मनावेंगे मुझे, पर मैं न मानु रे ॥
छीन बांसुरी, उतार के माला, गयियन के पिछ्कारे दौडा पुरा बदरा आज मैं निकारूं रे ॥
छोड़ सखी बौलत है तू तब तक- जब तक - श्याम दर्शन ना दिखावत रे ॥
आवेंगे श्याम ढलेगी शाम होगी रासलीला, संग संग खेलत - नाचत
गोपियन के चरण दबावत, तुझ को रिझावत रे ॥
सून सयानी तू तो जानत छाछ के लोटे पे गोपिओं के गोठो
पे यह त्रिभूवंनाथ बांसुरी की टेर सुबह शाम सुनावत रे ॥
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