दिन दहारे सरक किनारे, गोपी खरी कबसे बाट जोहत है ॥
नन्द का छौना, चलत रोज़ इस डगर पर, गोपियन संग अँखियाँ लडावत है ॥
रात सपने में ,मुस्का दिखा चितवन मधुर , गोपियन की नींद उडा,
रास केली दर्शन,करा हिरदय मे हिलोर मचावत है ॥
भोर होते ही, गयियन संग, पाग लचीली, कटी काछनी,
कर में मुरली लिए , गोपन के छोरों के संग देखो कान्हा जावत है ॥
याद किसे अपनी चुनरी सारी, सुन के टेर बंसी की प्यारी,
ले हाथ में माखन को लौन्दा, ब्रजबाला दौड्त कान्हा मिलने की आस लगात है ॥
भूल गयी मैं तो "सखी" सुन श्याम बंसरी, दिन चैन -रात नींद नहीं,
श्याम से मिलन को दिल तडपत, मुझे कछु नहीं भावत है ॥
Tuesday, May 13, 2008
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