Friday, September 5, 2008

झुलत पलने में घनश्याम

यशोदा लेत बलैया देखत श्याम सुबह श्याम
पलना डोरत हिलत पायजबिआं बजत मधुर कर्णधाम

नन्दबाबा को लाडलो सोवे गोपिआं देखेत आवे भूलत घाम
हरष खिलत देख श्याम को सखी झोंटा देत लपक नित शाम

यह दर्श मेरे मन में व्यापो मेरे जीवन की भई शाम
मैं तो चली गोकुल मिलवे सांवरे को मुझे ना कोई दूजो काम

तू भी आयियो कान्हा के दर्शन पायियो दोनों लेवेंगे श्याम को नाम
सुन प्रियसखी बैठेंगे नन्द के चौबारे कर जन्म सफल निरख छबि घनश्याम

राधे राधे

श्याम से मिला दे

नैया तू सबकी पार लगा दे