Monday, September 8, 2008

मन्दिर सजते मधुशाला से

अगर रावण का भाई ना होता तो राम कहाँ होते ?
अगर आम्भी ना होता तो सिकंदर कहाँ होते ?॥

सफेद चादर पर काला निसान टीके की तरह सजता है ।
जैसे गोरी के गाल पे काला तिल चाँद सा चमकता है ॥

मन्दिर के पंडत याद करते है मधुशाला की रातें ।
बैठते अल्लाह के दर पे, पर मधुबाला को ताकते ॥

उस बुतखाने को क्यों याद करना जहां खुदा भी कैद हो ।
उस साकी और मधुशाला का सदका जहां आज़ादी काबिज़ हो ॥

अगर साबित करना हो की किस की ज्यादा दुकानदारी है ।
खोल देखो मधुशाला, किस पर, किस की, रंगत भारी है ॥

दिख जायेगा रंग मधुशाला का हर कोई मदहोश हो जाएगा ।
कारवां पीने गया मधुशाला से तो इबादत करने कोन जाएगा ॥

"सजते है मंदिर मधुशाला से" शराबी झूमता गाता जायेगा ।
मधुशाला होंगी तो ही मौलवी मस्जिद में खुदा याद कराएगा ॥

1 comment:

arun prakash said...

bahut achhe .kabhii mere blog par aayen kyakahun.blogspot.com