Thursday, September 11, 2008

एहसास ए इश्क

रात तनहा नही सितारों से भरी होती है ।
दूजे की बगल में हूर की चाहत भी किस्मत से शिकायत करती है॥

जिसको चाहते हैं नही मिलती यह नसीब या खेल कहो ।
आशिक की तबियत तो गमगीन नर्म करती है ॥

फूल ही नही हर कांटे की दास्ताँ अलग होती है ।
हिफाजत करे काँटा, कली हसीना के जुड़े में जा सजती है॥

कांटा चुपचाप फना हो जाता है इश्क का एहसास लिए
उसकी दिलऔजान जैसे फूल के पास गिरवी होती है ॥

कभी कांटे के दिन भी आते हैं
जब कली के साथ चुने, जुड़े में फूलों का सहारा बन पाते हैं ॥

अली इस अरमान से कली के साये में भटकता है
मिलेगी फतह नाकामयाबी से ना डरता है ॥

क्या हुआ जो पा ना सका रस ए गुल वोह अली
लुटाता मिट गया बेपरवाह इश्क ए कली ॥

उस अली और कांटे का एहसास किसी को नही
मजनू , फरहाद महिवाल के किस्सों का भी इल्म nhi ॥

इश्क के पुजारी उनको आज भी सिजदा करते हैं
कसम उनकी खाते और महोब्बत करते हैं ॥

कभी देखते इश्क लुटता दुसरे की बाहों में आह भरते हैं
माशूक जब दगा देता तब भी अहद इक तरफा करते हैं ॥

हैंयारां अकेले हो तन्हा हो तो याद करना
छोड़ खुदा का दर भी आएंगे इतना इतबार करना ॥

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