मुझे याद आता है वोह जमाना
मेरा नीक्कर में और तुम्हारा फीराक में आना
तुम्हारा हँसना और मुझे रुलाना
झगड़ना, रूठना फीर मान जाना
जब माँ ने मेरी दुल्हन बनने को कहा तो तुम्हारा शर्माना
एक दीन जब मुझे सजा मीली तो घर से चुरा कर मुझे खाना खीलाना।
आज तुम्हे भी वोह सब याद आता होगा।
तुम मेरे सपने में आती हो में भी जरुर ख्यालों में आता हूँगा।
यह सभी यादें हमारी जीन्दगी की धरोहर हैं
जीसकी कोई कीमत नहीं फीर भी मनोहर हैं
आओ फीर उस ही दुनीया में वापस चलें
जहाँ तुम हो मैं हूँ पर घडी ना चले
बुझ जाये सारे दीये अंधियारी रात हो
तुम्हारे चाँद से चहरे से घूँघट हटाता मेरा हाथ हो
फीर ना दीन हो ना रात हो
समय थम जाये जब तुमसे मुलाकात हो
Monday, April 7, 2008
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