कॉलेज से आती लड़कियों का झुंड जो
पूरे दीन की पढाई से चूर चूर, माथे पर लट बीख्राए,
अलसाई आँखों से बीजीलीया
गीराता रोज गुजरता है
और उनसे आँख लड़ाने को, .............देवी दर्शन पाने को,
चौराहे पर चाय की दुकान पर
मनचलों का टोला ...........रोज आ सीमटता है
जो सीगरेट के धुएं
और गुटके के पीक के बीच
बहस करते नौकरी, पैसा और
देश की हालत पर,
और बीच-बीच में
नजर गड़ाये 'रंग बीरंगी तीत्लीयों' के उभारों पर
और सपना देखते हुए काश
चाय के साथ इनका भी साथ होता।
यह क्य्सा दुर्भाग्य है की
देश का चरीत्र इन चाय की दुकानों पर
एक चाय के प्याले पर नीलाम हो रहा है.
Monday, April 7, 2008
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