एक स्वरचित व्यंग आपकी शान में पेश कर रहा हूँ :-
छोटा हुआ तो क्या हुआ है तो फल -खजूर.......
पेट चाहे भाराये न पर स्वाद मीले भर-पूर.......
.... नीतीन
इस स्वाद के चक्कर में तो जग बौरा गया ।
खा के ही नहीं सीरफ पाके,
नव्पीढ़ी का दीमाग पता नहीं कहाँ गया ।
छोटे बड़े के भेद को भूल कर बाप बेटे का
एक ही हूर पर दील आ गया ॥
पहले थेली में कलदार लेकर जाते थे,
और पीछे मजदूर माल लेकर आते थे।
आज क्रेडिट कार्ड का जमाना है,
जेब खाली पर पोडर लिपस्टीक तो जरुर लाना है ॥
बीबी इतरा कर चले, बोझ तो तुझे ही उठाना है .
पेट भरा हो या खाली, स्वाद, मीले या न मीले,
हर माह बील चुकाना है ...................... ॥
Sunday, April 13, 2008
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