.................साथी हाथ बढ़ाना.........................
देख अकेला थक जायेगा, मील कर बौझ उठाना
इन्तजार कर सुबह का यह रात तो ढल जायेगी
जिन्दगी बहुत लम्बी है तेरी हीम्मत ही तेरे काम आएगी
मिटटी के दीये का कया कोई वजूद होता है
लेकीन शांझ ढलते ही उसका युद्ध शुरू होता है
फना होजाता है दीया अंधकार से लड़ते लड़ते
हार नहीं मानता है कतरा आखीरी ख़त्म होने तक के
वही फसाना जीन्दगी का भी होता है
शरीर बाती, हीम्मत होती है प्राणवायु, जीवन तेल होता है
मुसीबतें तूफ़ान के झोंकों की तरह आती हैं
तेरी नीयत, तेरी हीम्मत, तेरा यकीन डगमगाती हैं
मत छोड़ यकीन अपना उस खुदा पे जीसने तुझे पैदा कीया
मत रुक, बढा कदम, जीत उस्ही की है जो मर्दानगी से जीया
Sunday, April 13, 2008
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