Monday, April 14, 2008

हीम्मत ऐ मर्दा मदद ऐ खुदा

मैं न हैवान हूँ और न इंसान हूँमैं बस आदमी हूँ और गुनाहों की खान हूँ
नहीं तमन्ना मेरी शिवालय का पाषाण बनूचाहता हूँ
किसी मंदिर की सीधी {जीना} बना रहूँ।
कितना रहूँ मैं जिंदा,चाहत नहीं है कोईएक पल भी है काफी,गर किसी के काम आ सकूं।
हो सके तो मुझको एक चिराग बना दोजलाकर वजूद अपना रोशन जहाँ करूं.

हीम्मत ऐ मर्दा मदद ए खुदा

जन्मसे ना हीन्दु ना मुसलमान और कोई शैतान ना कोई भगवान, बस आदमी यानी इंसान बनता है
कुछ संगत, कुछ संस्कार, कुछ जरूरतें , हवस और हसरतों से इंसान भगवान या सैतान बनना चुनता है।

जींदगी की कोई घटना पूरा परीवर्तन कर जाती है ।
या तो मटियामेट, या तो अमर, कर जाती है
हीट्लर भी रोया था मुसोलोनी भी अंत में इस्ही जमी पर खोया था
सीकंदर दोनों हाथ खाली आया दोनों हाथ खाली ही गया था ॥

इतहास हमेशा जीतने वाला लीखाता है।
हारने वाले को शैतान और जीतने वाले को भगवान् साबीत कराता है

सीता अगर लालच में स्वर्ण हीरण के ना आती
तो जनक नंदीनी, राम दुलारी, क्यों हरी जाती

सही सीता ने अतिथिधर्म का पालन कीया
जानते बुझते लक्ष्मण रेखा का उलंघन कीया

आओ तुम्हे बताएँ जीत और हार का जादू कैसे बोलता है
कैसे वीजेता का कवी उसे भगवान से तोलता है

क्यों हरी गयी सीता सब जानते है।
फीर भी कसूरवार हारने वाले को ही मानते हैं

रावन हार गया लेकीन हैवान बना
जबकी बहन की नाक कटने, का ले रहा, बदला था

राम ने धोके से बाली मारा, सुप्रन्खा को दुत्कारा,
फीर भी भगवान बना हालांकी, साम दाम दंड भेद से जीता था

अब आता हूँ तुम्हारी बात पे । बील्कुल ठीक कहा सोच के
तुम ना हैवान हो ना इंसान हो, आदमी का खून हो बीलाशक, इंसान हो

पहीचाने नहीं जाओगे उम्र से, ताकत से पैसे के गुमान से
पल ही काफी होगा बनने को सैतान भी, इंसान से

रामतीर्थ, वीवेकानंद, शंकराचार्य युवावस्था में प्रयाण कर गए
अपने छोटे से काल में इंसानियत का नाम अमर कर गए

गाँधी जब अफ्रीका गए
क्या
उन्हें मालूम था
अवसर महात्मा बनने का उनका वहां ही पर हाजीर था

तुम भी राम हो कर्षण हो शंकर हो कोई शक ना करो
अवसर की बाट जोहो और समय पर वार करो

आदर्शों का पालन करो इच्छाओं का दमन करो
नहीं तो सीता जैसे हालातों का वरन करो।

गजनवी ने सीख ली थी चीटीयों की चाल से
हारता गया बार बार, सीख पाई, जीता १८ वी बार में

हीम्मत ना हारना गीरना, उठना, फीर चलना,
मंजील सामने है उबरोगे जरुर जीवन की मझधार से

No comments: