वफ़ा का नाम ज़माने में आम कर जाऊँ ,
फीर उसके बाद मैं जीन्दा रहूं या मर जाऊँ
इलाही मुझको अता कर सदाकातों के चीराग,
मैं उनकी रोशनी लेकर नगर नगर जाऊँ ,
तेरी ज़ॅमी पे नाम न हो नफ़रतों का कहीं,
मूहोब्बतों के फसाने सुनू जीधर जौउँ,
मज़ा तो जब है की दुश्मन भी मुझको याद करें,
...........मीसाल दोस्ती की ऐसी मैं छोड़ जाऊँ ॥
मरें तुम्हारे दुश्मन तुम्हे तो जिंदा रहना है
वफ़ा तुमसे है तुम वफाई हो अरे कया कहना है॥
खुदा ने अता की उम्र सदाकत से जीने के लीये
चीराग तेरे पास है सहर में उजाला करने के लीये॥
जब दीन नीक्लता है, अँधेरा गुम जाता है
यारी से फुरसत नहीं, नफ़रतों से कहाँ नाता है॥
तेरा मकसद साफ, इरादा नेक है
तेरे प्यार की कसम तेरी मेरी मंजील एक है॥
लैला मजनू, शीरी फरहाद, हीर रांझा आज फ़ना हो गए हैं
तेरी कसम, मीसालें दोस्ती की दुश्मनों ं की जबा पर छोड़ गए हैं॥
आ आज इस नव वर्ष के मौके पर एक अहद करे
तेरी मेरी दोस्ती परवान चढ़े,दोस्ती की मीसाल कायम करें॥
न भूलें लोग लैला मजनू, शीरी फरहाद, हीर राँझा को उनकी कुर्बानी को.
भूल जाएं झगडा दुश्मनी, नफरत, और याद करे तेरी मेरी कहानी को॥
Monday, April 7, 2008
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