वोह मीटी का चौबारा
वोह टूटा हुआ दयारा
वोह अम्मा की गूंजती आवाजें
पास में बहती नदी की कल कल करती धारा ॥
याद आती हैं उपर की मंजील की वोह टूटी हुई खीडकीयाँ
कैसे भूल जाऊँ पापा और जीजी की प्यार भरी झीडकीयाँ ॥
स्कूल में सह्पाठीओं से लड़ना और गुरुजी का डंडा लेकर थीरकना ॥
मीलती थी उस जमाने में एक चवन्नी
जैसे मील जाती हो कोई घूमती हुई फीरकनी, ॥
ठंडी ठंडी कुल्फी खाते थे और भैया को चीडाते थे
खीड्की हमारी थी, कीतनी ही बार, उसके पीछे छीप जाते थे ॥
छीपने में तुम मेरा साथ देती थी,
साथ हंसती थी , साथ रोती थी ॥
मज्बूरीयाँ लीख देती हैं जीने का फ़साना
मुझे याद है मेरा शहर में तुम से बीछ्ड कर आना,
तुम्हारा उस टूटी खीड्की के पीछे छीप कर आंसू बहाना ।।
फीर आंसू पूंछ कर मुस्कुराते हुए चाँद की तरह नीकल आना
इंसान की मजबूरियों में सारी कहानी लीखी है
कैसे भूल जाऊं वोही फोटो तुम्हारी. मेरी आँखों में बसी है ।।
आरहा हूँ मैं अपने गाँव तुमसे मीलने , अपनी सुनाने तुम्हारी सुन ने
मेरे में तो तुम्हारी याद बसी है, क्या तुम में भी वोही तड़प अब भी बची है ?
तुम ने े अगर ठुकराया तो मैं टूट जाउंगा
कसम तुम्हारी,
वापीस शहर नही,ं ऊपर वाले के पास जाउंगा।।
Thursday, April 10, 2008
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2 comments:
मित्तल जी बहुत ही सुन्दर ब्लोग बनाया है आपने॰॰॰॰॰॰॰ भूली बिसरी यादें पढ़कर यादें ताजा हो गईं ॰॰॰अपनी रचना जीवन सत व आपका उत्तर उसमे पढ़कर आनन्द आ गया ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ प्रयोग बहुत ही शानदार है॰॰॰ शुभकामनायें॰॰
aapke blog me hindi ka bahut hi sunder aur srijanaatmak prayog hua hai.kaash ISHWAR aesi sadbudhhi mujhe bhi de.
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