Wednesday, April 23, 2008

चीडा और सफ़ेद गुलाब


येक चीडाा ने गुलाब को prapos कीया , सफ़ेद गुलाब ने शर्त लगा डी की जब वोह लाल हो जाएगा, चीडे काप्यार काबुल करेगा, चीडा गुलाब के उपर लोटने लगा और कांटो से अपने कोछील डाला। खून टपका टपका करगुलाब लाल कर दीया।
गुलाब को बड़ा रंज हुआ और कहा की वो भी उससे प्यार करता है पर तब तक चीडा मर चुका था


प्रेम कहानी का हसर शायद यही होता है
तब ही तो सोहनी म्हीवाल - हीर राँझा का नाम होता है
कीतने ही चीडे कुर्बान हो गए हुस्न ए सफ़ेद गुलाब पे
गुलाब तो लाल होकर हसीनो की जुल्फों में जा सजता है
याद करता न कोई चीडे को न गुलाब को,
जमाना तो सजी हुयी जुल्फों पे मरता ह

खूबसूरती तो कोई ख़ता नहीं..............
पर अदाओं से कीसी को सता नहीं.......
दील की तरह फूलों को न तोड़,
तुझे अदब की बातें पता नहीं..............

अदब बा मुलाहीज़ा होशीयार
फीत्नो पर फीदा होने वाले भोंरे बन समझदार

खता खूबसूरती में कोन बताता है
लेकीन बेवफा पर जान लुटाने में कीसी कीसी को मज़ा आता है

फूल को पांवों से कुचल या जुफो में सजा मेरा कया जाता है
फूलों को अदब प्रभु चरणों में अर्पण करने में ही आता है

यह साबीत कीतनी ही बार हुआ ......
.....की हुस्न ने बेवफाई की,.. दीलों को कुचला - रोंदा
हाय उन्हें तो मज़ा ही इस् खेल में आता है

Sunday, April 20, 2008

तूफान का बयान

गुरु जी विनोद जी बिस्सा की कलम से .......

नाम हो या बदनाम तूफां तू अपना काम कर वर्ना पूछा ना जायेगा
तू हो गया शांत तो जो लडते हैं तुझसे उनका नाम कैसे हो हो पायेगा

धर्म की आग ने जलाया था देश जातिवाद की आग ने पैदा कर दिया विद्वेष
अब क्षेत्रवाद की बातें कर फैला कर बांटने जा रहें हैं देश

पर तुझे क्या तूफां तु तो अपना काम कर
तू सफल हो या हो असफल दोनो ही स्तिथियों में याद किया जायेगा

नाम हो या बदनाम इतिहास का पन्ना तो हो ही जाएगा
गुरु जी विनोद जी बिस्सा की कलम से ......................

गुरु जी के आशीर्वाद से....................

तूफान हूँ मैं शांत कैसे हो सकता हूँ
मेरे तो जो भी सामने आये उसे फोड़ सकता हूँ

सफलता की क्या निसानी है?
इतहास के पन्नों में ही क्या जगह पानी है?

मन मेरा गवाही दे उसी रास्ते मैं जाता हूँ
परवाह नहीं नाम की मैं तो काम करता जाता हूँ

काम मेरा शांती, सद्भावना का बवंडर उठाना है
साथ में लहर भाईचारे की, देशप्रेम की फैलाना है

प्रानीदाया, जीव रक्षा मेरे साथ चलते है
मानव सेवा, प्रकृति रक्षा मेरे कारन फलते है

जीस प्रभु ने रचना की उसका गुणगान करता हूँ
मुझे परवाह नहीं सफलता की..........
इतहास में पन्ने की............
मैं तो इंसान और इंसानियत से प्यार करता हूँ

Saturday, April 19, 2008

तमन्ना ऐ दील

जीन्दगी की एक तमन्ना है की दोस्त मुझे प्यार के रस्ते का राहगीर माने
चलूँ मैं दोस्त साथ हों ख़ुशी और गम सब उनका प्यार साने

जब रुखसत होऊं तो भी दोस्तों का समसान तक साथ हो
ऊपर जा के बन जाऊँ तारा,प्यारों के दीलों का अँधियारा दूर करने का आगाज़ हो

झाँकू ताकुं आसमान से प्यारों की खुशियाँ बड़े सकून से
वोह मुझे ताकें और करे बाते प्यारे तारे के बड़े इत्मिनान से

जजबात की बात

पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला,
मैं मोम हूँ उसने मुझे छु कर नहीं देखा.
आखो में रहा दिल मैं उतर कर नहीं देखा ,
कश्ती के मुसाफिर ने समन्दर नहीं देखा.

जमने के बाद मोम भी पत्थर हो जाता है
दोस्त छू दे तो पत्थर भी पिघल जाता है

कश्ती डूबती दगा बाजों की है
बात समुंदर की नहीं जज्बातों की है

जिसने नहीं कीमत की जजबातों की
दील में उतरा नहीं ना आँखों से बातें की

उसने तो देख कर भी प्यार का समुंदर नहीं देखा
किस्ती उसकी डूब गयी और अभागा बाहर रह गया बैठा

Friday, April 18, 2008

सपने और दहलीज़

कीसी के जाने से जीन्दगी फ़ना नहीं होती है
हर रोज़ दीन के बाद रात, और फीर सुबह जरुर होती है

ीठी यादों को सहेजना अच्छा लगता है
लेकीन कीसी बेवफा के लीये गुरु बीखेरें खुशियाँ, हमें धक्का लगता है

गालीब बोल गए पुराने ज़माने में,
और भी बहुतसे गम हे इस ज़माने में।
कीस कीस को याद कीजिये कीस कीस बेवफा को रोइए

लाइन लगी है चाहनेवालीयों,पसंद कर अपनी की छाँट लीजीये,
और फीर.... आराम बड़ी चीज है .... मुह धक् कर सोइए


गुरु तुम भी आज के इंसान हो
पत्थर पूजते हो उसके समान हो

मील मालीकों को तो रोते जमाना बीत गया

अब तो नाम है लूटने में नेताओं का, अफसरों का जीनका यह पेशा बन चूका

बखस्ते नहीं वो ख़ुशी मालीक ए दुकान की
कया बीसात है उनके सामने हवान या
इंसान की

कीस ने बनाया है मालीक ए कायनात उनको
गुनाहगार हम तुम ही है चुनतेे है ..................वीधायक, सांसद उनको

जे

जीयेंगे हम कैसे तुम्हारे बीना जब छीन गए हमसे सारे सहारे
भंवर मे फंस गई कश्ती उस वक्त करीब थे बहुत अपने कीनारे
छोड़ गई वही साथ जीसके लीए मैंने ठुकरा दीये जींदगी के हसीन नज़ारे
छतो पर खड़े होकर नजरे मीलाना खो गए कहाँ वो मीलन के नज़ारे
तुम्हे एक बात बताऊ मीत्रो यारो उन्होंने कसम खाई थी की वो है हमारे
दील शाद कैसे होगा यही गम है छीन गए दील से दीदार के नज़ारे
उसने नजर क्या फेर ली हमसे यारो टूट कर गीरे आँखों से उम्मीदों के सीतारे
"महेन्द्र" की दुनीया मे खुशी कहाँ दील की दहलीज पर टूट गए सपने बेचारे
पत्थर से सख्त हो गए आज के इंसान दो पैसे क्या आ गए भगवान हो गए
खून चूसते है गरीबो का जोंक बनकर मील मालीक आज के हैवान हो गए

डीग्री और नौकरी

डीग्री भी चाहीये नोकरी भी चाहीये

.................क्योंकी..................

डीग्री तुम्हारे माँ बाप की मेह्नत का प्रसाद है
तुम्हारी नौकरी भी उस ही का आशीर्वाद है

ज़माने के साथ चलने में ही समझदारी है
मत ठुकरा देना प्रसाद यह ही दयान्त दारी है

क्यों चाहीये तुम्हे वापीस वो कोलेज की केन्टीन
वोह तीखा समोसा चाय और सीगरत का टीन

यादें दील में बसी हों, कमर टकर लेने को कशी हो
माँ पीता का रुण उतारो, अपने बच्चों को भवसागर में उतारो

प्रभु भजन जरुर करो बाकी सब फजुल बातों को दील से बीसारो
जिन्दगी का उदेस्य कया है उसे पहीचानो,

मत डीगो धर्म मार्ग से, उदेश्य पूरा करने की ठानो ,
ऊपर वाले ने अवसर दीया अपने को धन्य मानो

.............इसके लीये .............
डीग्री भी चाहीये - नोकरी भी चाहीये

Tuesday, April 15, 2008

दोस्ती की कसम



चाँद सीतारों में, रहना गुनाहगारों में, अल्लाह खैर करे
कर होसला, छोड़ दे गुनाह, हीम्मत ना हार, अल्लाह महर करे

फलक से चमक रही हैं कामयाबी की बीज्लियाँ रोशन तेरी दर करे
गम अँधेरे की काली रात है कामयाबी का आफताब, जल्द रोशनी करे

तू पुकार हमें - दोस्ती की कसम, मुसीबतें हम झेलें, कीला तू फतह करे
सीतारों का मेला अर्श से फर्श पर आजाये, ऐसा हम अहद करें

Monday, April 14, 2008

हीम्मत ऐ मर्दा मदद ऐ खुदा

मैं न हैवान हूँ और न इंसान हूँमैं बस आदमी हूँ और गुनाहों की खान हूँ
नहीं तमन्ना मेरी शिवालय का पाषाण बनूचाहता हूँ
किसी मंदिर की सीधी {जीना} बना रहूँ।
कितना रहूँ मैं जिंदा,चाहत नहीं है कोईएक पल भी है काफी,गर किसी के काम आ सकूं।
हो सके तो मुझको एक चिराग बना दोजलाकर वजूद अपना रोशन जहाँ करूं.

हीम्मत ऐ मर्दा मदद ए खुदा

जन्मसे ना हीन्दु ना मुसलमान और कोई शैतान ना कोई भगवान, बस आदमी यानी इंसान बनता है
कुछ संगत, कुछ संस्कार, कुछ जरूरतें , हवस और हसरतों से इंसान भगवान या सैतान बनना चुनता है।

जींदगी की कोई घटना पूरा परीवर्तन कर जाती है ।
या तो मटियामेट, या तो अमर, कर जाती है
हीट्लर भी रोया था मुसोलोनी भी अंत में इस्ही जमी पर खोया था
सीकंदर दोनों हाथ खाली आया दोनों हाथ खाली ही गया था ॥

इतहास हमेशा जीतने वाला लीखाता है।
हारने वाले को शैतान और जीतने वाले को भगवान् साबीत कराता है

सीता अगर लालच में स्वर्ण हीरण के ना आती
तो जनक नंदीनी, राम दुलारी, क्यों हरी जाती

सही सीता ने अतिथिधर्म का पालन कीया
जानते बुझते लक्ष्मण रेखा का उलंघन कीया

आओ तुम्हे बताएँ जीत और हार का जादू कैसे बोलता है
कैसे वीजेता का कवी उसे भगवान से तोलता है

क्यों हरी गयी सीता सब जानते है।
फीर भी कसूरवार हारने वाले को ही मानते हैं

रावन हार गया लेकीन हैवान बना
जबकी बहन की नाक कटने, का ले रहा, बदला था

राम ने धोके से बाली मारा, सुप्रन्खा को दुत्कारा,
फीर भी भगवान बना हालांकी, साम दाम दंड भेद से जीता था

अब आता हूँ तुम्हारी बात पे । बील्कुल ठीक कहा सोच के
तुम ना हैवान हो ना इंसान हो, आदमी का खून हो बीलाशक, इंसान हो

पहीचाने नहीं जाओगे उम्र से, ताकत से पैसे के गुमान से
पल ही काफी होगा बनने को सैतान भी, इंसान से

रामतीर्थ, वीवेकानंद, शंकराचार्य युवावस्था में प्रयाण कर गए
अपने छोटे से काल में इंसानियत का नाम अमर कर गए

गाँधी जब अफ्रीका गए
क्या
उन्हें मालूम था
अवसर महात्मा बनने का उनका वहां ही पर हाजीर था

तुम भी राम हो कर्षण हो शंकर हो कोई शक ना करो
अवसर की बाट जोहो और समय पर वार करो

आदर्शों का पालन करो इच्छाओं का दमन करो
नहीं तो सीता जैसे हालातों का वरन करो।

गजनवी ने सीख ली थी चीटीयों की चाल से
हारता गया बार बार, सीख पाई, जीता १८ वी बार में

हीम्मत ना हारना गीरना, उठना, फीर चलना,
मंजील सामने है उबरोगे जरुर जीवन की मझधार से

Sunday, April 13, 2008

शीकायत और जवाब


मेरे अपने मुझे मिटटी मैं मीलाने आये
अब कहीं जाके मेरे होश ठीकाने आये

ज़माने का दस्तूर है मीलाने, मिटटी में अपने ही आते हैं
तुम्हे शायद कुछ गुमान था, जो अब ठीकाने होश आते हैं

तुने बालों मैं सजा रक्खा था कागज़ का गुलाब
मैं ये समझा के बहारों के ज़माने आए

तुम्हारी आंखों का धोका या अलाह, फूल तुम ही लाये थे
हम ने तो सीर्फ़ बालों में लगाये हैं .
तुम तो बड़े जालीम हो, कल तक हम तुम्हारी बहार थे,
आज तुम्हे कागज नज़र आये हैं

चाँद ने रात की देहलीज को बख्शें है चीराग
मेरे हीस्से मैं भी अश्कों के खजाने आये

चाँद तो रोज़ नज़र आता है चीरागों को सुलाने,
अस्क बहाने को, और बहुतसे बहाने हैं


दोस्त होकर भी महीनों नहीं मीलता मुझसे
उससे कहना के कभी ज़ख्म लगाने आये

आपनी गीरेह्बान में झांक औ जालीम,
अस्कों के दरीया तो तेरी इंतज़ार में हमने बहाए हैं.
जख्मो की बात जमती नहीं तुमपे,
जख्म तो हमने खाए हैं

फुर्सतें चाट रही है मेरी हसरतों का लहू
मुन्ताजीर हूँ की मुझे कोई बुलाने आये

इस कलाम को मेरे दील का पैगाम समझ्ले, उड्के आजा,
रात गुजरती नहीं दीन भी तेरे जर ए साये हैं

इंसान या हैवान ...........

डरना है तो आदमी से डरो आदमी और इंसान में
कुछ तो फर्क करो.
आदमी को देखा है अक्सर शैतान होते
मगर इंसान कभीहैवान नहीं होता. कभी हैवान नहीं होता.

जीसमे दम हो उसे कहते है आ दम ई
आदम और हौवा की कहानी बहुत पुरानी है
इंसान हैवान क्यों बना यह भी सबकी जबानी है

मीत्र, इंसान और आदमी में थोडा ही फर्क होता है
जैसे सुबह पुजारी, रात को प्यार का भीखारी,
माँ के सामने बेटा , बेटे के सामने बाप होता है
वैसे ही आदमी हैवान और इंसान दोनो के रूप धरता है

भेड की खाल में भेडिया यानी
इंसान के लीबास में सैतान आता है

विनम्रता, दया, करुणा,प्रेम,शांती,भक्ती
इंसान की पहीचान है
हवस, मद, मोह, लोभ, इरषा, क्रोध,
इंसान को बनाते हैवान है

स्वंतुस्टी, परनींदा, प्रलोभ, परनारी, परधन, झूट, मक्कारी, कभी इंसान नहीं बनाते.
अपने अवगुण, पर्गुण, प्रभु भक्ती, सत्य, त्याग, दान, आदी इंसान को भगवान् से मीलाते

तुम खुद ही सोचो तुम कौन हो इंसान या हैवान

संवाद ..........................

एक स्वरचित व्यंग आपकी शान में पेश कर रहा हूँ :-

छोटा हुआ तो क्या हुआ है तो फल -खजूर.......
पेट चाहे भाराये न पर स्वाद मीले भर-पूर.......

.... नीतीन


इस स्वाद के चक्कर में तो जग बौरा गया ।
खा के ही नहीं सीरफ पाके,
नव्पीढ़ी का दीमाग पता नहीं कहाँ गया
छोटे बड़े के भेद को भूल कर बाप बेटे का
एक ही हूर पर दील आ गया ॥

पहले थेली में कलदार लेकर जाते थे,
और पीछे मजदूर माल लेकर आते थे।
आज क्रेडिट कार्ड का जमाना है,
जेब खाली पर पोडर लिपस्टीक तो जरुर लाना है

बीबी इतरा कर चले, बोझ तो तुझे ही उठाना है .
पेट भरा हो या खाली, स्वाद, मीले या न मीले,
हर माह बील चुकाना है ...................... ॥

माँ ... तेरी ... यादें .. . माँ की प्यारी सूरत


माँ की यादें ............................ हर माँ की येही है कहानी आँचल में दूध और आंखों में पानी || बहुत खूब तुम्हे आपनी माँ का त्याग आज भी याद है मुझको याद की अक्सर ऐसा होता था|| वह गर्मी की राते और बत्ती गुल एक पंखा बिना रुके उसके हाथो में चलता था वो जागती सारी रात, मैं उसकी नींदे सोता था || गर्मी की राते, गुल बत्ती, बिना रूके उसके हाथ में झलता पंखा, .....................................मेरा भाग्य है उसका जागना, मेरा चैन से सोना, उसकी नींद नहीं, हर माँ की बीती रात है मुझे आज भी याद है || मुझे याद है माँ वोह बड़ा मुश्किल जमाना, पिताजी का देर रात को थका हुआ घर आना. तुझे सारे दिन का दुखडा सुनाना और तेरा उन्हें ढाढस बंधाना....................... एक स्वेटर पुराना, अभी भी मुझे बहुत प्यारा ............ हजारो धुलाई चुरा ना सकी, उससे तेरे हाथो की खुशबु वो स्वेटर बुनती ऐसे, ख्वाब बुनती हो जैसे दिन में पूरे मोहल्ले के स्वेटर बुनना.. जैसे फूलों का चुनना ,..................... ख्वाबों का बुनना .............................. और उसमे से मेरे इस ही स्वेटर का चुनना || यह मेरी जिन्दगी का सबसे प्यरा तोहफा है धुल चूका हजारों बार, फिर भी घना चौखा है || आज भी छुपके मैं, बंद करके कमरा, अलमारी खोलता हूँ वोह तेरा बुना स्वेटर, समेटे तेरे हाथों की खुशबू, उसे बार बार सूंघता हूँ || इसे आज भी पहनता हूँ तो " माँ" तेरी याद आती है बंद कमरे से मैं अकेला नहीं तेरी खुशबू भी साथ जाती है|| जब से तुझे देखा है माँ , मुझे भगवान भी भूल गए तुने मुझे जन्म दिया , आज के झंझावात में हम सभी शायद भूल गए
मै आज विश्व मातृदिवस पर गौ माँ, भारत माँ, धरती माँ को नमन करता हूँ | व् समस्त मातृशक्ति को सादर स्मरण करता हूँ ||

॰॰॰॰॰॰हौसला॰॰॰॰॰॰

.................साथी हाथ बढ़ाना.........................
देख अकेला थक जायेगा, मील कर बौझ उठाना

इन्तजार कर सुबह का यह रात तो ढल जायेगी
जिन्दगी बहुत लम्बी है तेरी हीम्मत ही तेरे काम आएगी

मिटटी के दीये का कया कोई वजूद होता है
लेकीन शांझ ढलते ही उसका युद्ध शुरू होता है

फना होजाता है दीया अंधकार से लड़ते लड़ते
हार नहीं मानता है कतरा आखीरी ख़त्म होने तक के

वही फसाना जीन्दगी का भी होता है
शरीर बाती, हीम्मत होती है प्राणवायु, जीवन तेल होता है

मुसीबतें तूफ़ान के झोंकों की तरह आती हैं
तेरी नीयत, तेरी हीम्मत, तेरा यकीन डगमगाती हैं

मत छोड़ यकीन अपना उस खुदा पे जीसने तुझे पैदा कीया
मत रुक, बढा कदम, जीत उस्ही की है जो मर्दानगी से जीया

कश्मीरी दोस्त को जन्म्दीन की शुभ कामनाएँ

कश्मीर की वादियों ने मचाया शोर
आगया आदित्य का जन्म दीन, उठो होगयी भोर


चलो अमरनाथ बाबा की दर पे सीज्दा करने
चलो मार्तंड आदित्य की झोली सौगतो से भरने

चलो माता वैष्णवी के आदित्य को साथ लेके
माता भेजेगी वापस सारी मुरादें दे के

आओ मनाये जन्म्दीन आज नव्रता अष्टमी का है
आदित्य तुम्हे हो मुबारक यह दीन मौका बड़ी ख़ुशी का है

तुम हमारे दील में रहो येही हमारी तमन्ना है
काश्मीर में खुशियाँ आयें और हम तुम साथ हों येही कामना है

Saturday, April 12, 2008

आंखे...........................

आज हमारे दोस्त ने हमें दिखाई आंखे तो हमें याद आई तरह तरह की आंखे

आइये आपको भी दीख्लायें कुछ छोटी बड़ी - लाल पीली आंखे


जैसे.................
मीनाक्सी यानी मछली की आँखे

वीशालाक्सी यानी बड़ी बड़ी आंखे

सुवर की नज़र : बेशर्म ऑंखें

ूरदास नज़र : दिखता नहीं कया सूरदास क्यों चल रहा है बीना आंखे

समदर्शी नज़र : एक आंख वाला यानी के अबे काने

लाल नज़र : मत देख मुझे लाल आँखों से क्यों है तेरी गुस्साई आंखे


ड़बड़बाई नज़र : माँ की बड़ी याद आती है वोही पूंछती थी रोती ऑंखें

टिमटिमाती नज़र : टीम टीम टुक टुक क्या ढृंड रही हैं तेरी यह दुंडती आंखे

घुमती नज़र : मक्कारी से बाज आजा क्यों घूम रही है तेरी चालक आंखे

झुकी नज़र : कैसे उठ सकती है आपके सामने मेरी यह सम्मान देती आंखे
क्यों तू अब भी नहीं मान रहा है दे रही हैं चोरी का सबूत ऑंखें

उठी नज़र : क्या शान से शीवाजी खड़ा था बादशाह के दरबार में
डरा रही थी सबको उसकी मर्दानी ऑंखें

चश्मे से ढकी नज़र : तुम देख नहीं पावोगे मेरी आंखे

काब से झांकती नज़र : आज उनका दीदा का वादा था वोह आगयी हैं
और झांक रही है शायद उनकी आंखे

अरे ऑंखें ही ऑंखें

मुझे चाहीये आप जैसे मेहरबान की ऑंखें
मैं दूंगा आपको कद्रदान की ऑंखें

दुनीया दिखायेगी जलती हुई ऑंखें, कहर ढहती हुई ऑंखें.

उसे झेलेंगी हमारी दोस्ती की निगेबहाँ आंखे,

मुल्क की सरहद पर, नज़र रखती जवान की आंखे

जवानों की राह तकती,वीरह में तड़पती, भरी जवानियों की आंखे

दारू पीने के बाद के प्रवचन

तू तो मेरा भाई है…

यू know i ऍम not drunk ...

गाडी मैं चलाऊंगा ….....

देख यार क्या माल जा रहा है ......

तू बुरा मत मानना भाई…

मैं तेरी दील से इज्ज़त करता हु …

अबे बोल डाल आज उसको, आर या पार ....

आज साली चढ़ नहीं रही है कया बात है…

९ तू क्या समझ रहा है मुझे चढ़ गयी है…

१० ये मत समझ की मै पीके ै बोल रहा हू…

११ अबे यार कहीं कम तो नहीं पड़ेगी इतनी ...

१२ bro, एक लीटील लीटील और हो जाए …

१३ बाप को मत सीखा ...........

१४ यार मगर तुने मेरा दील तोड़ दिया...

१५ कुछ भी है पर साला - भाई है अपना…

१६ तू बोलना भाई, क्या चाहीये…जान चाहीये? हाजीर है ...

१७ अबे मेरे को आज तक नहीं चड़ी ...शर्त लगा साला आज तू .........

१८ चल तेरी बात करता हूँ उससे , फ़ोन नम्बर दे उसका...

1९ अरे यार छोड़ भी, उसकी ऐसी की तैसी कल तेरे को ख़ुद फोन करेगा ....

२० क्या बस इतना सा कल बैंक खुलते ही मंगा लीयो

२१ सुबेरे पहला काम यही तू मुझे बस याद करा दीयो....

22 यार आज उसकी बहुत याद आ रही है...............

23 मैं 95% नशे में हूँ, 5% होश में हूँ...

२४ यार मुझे जाररा घर तक उतर दीयो .....तेरी भाभी तेरे साथ देख कर कुछ नहीं बोलेगी.....

२५ आखीरी कतरा...... तेरे ग्लास में ...... हां हां हां में अबतो कल तू पीलायेगा .......

Friday, April 11, 2008

शराफत की कमजोरी

मानवता का दुर्भाग्य जभी होता है ।
जब शरीफ आँख बंद करके सोता है ।।

हर युग में यही सामने आया है ।
देवताओं के वरदान ने दानवों को सीर पे चढाया है ॥

या तो आयाशी या तो गुलामी, या तो डरना या तो बदगुमानी ।
शराफत और शरीफ की यही है कहानी

सीकंदर को आम्भी।मोहम्मद को, जैचंद मीला था ।
पौरस और चौहान ठगा सा खडा था ॥

शरीफ कभी हमला नहीं करता ।
मुसकील तो है की वोह मुकाबला भी नहीं करता ॥

लहू लुहान नज़रों का जीक्र भी जब आता है ।
शरीफ हाथ जोड़ दूर जाकर बैठ जाता है

पडोसी मुल्क में यह कहानी रोज दौराही जा रही है ।
जज अन्दर और बदमाशों की आरती उतारी जा रही है ॥

बदमाशी इतरा रही और शराफत शर्मा रही है ....................................................

Thursday, April 10, 2008

कसम तुम्हारी..................

वोह मीटी का चौबारा
वोह टूटा हुआ दयारा
वोह अम्मा की गूंजती आवाजें
पास में बहती नदी की कल कल करती धारा ॥

याद आती हैं उपर की मंजील की वोह टूटी हुई खीडकीयाँ
कैसे भूल जाऊँ पापा और जीजी की प्यार भरी झीडकीयाँ ॥
स्कूल में सह्पाठीओं से लड़ना और गुरुजी का डंडा लेकर थीरकना ॥

मीलती थी उस जमाने में एक चवन्नी
जैसे मील जाती हो कोई घूमती हुई फीरकनी,
ठंडी ठंडी कुल्फी खाते थे और भैया को चीडाते थे
खीड्की हमारी थी, कीतनी ही बार, उसके पीछे छीप जाते थे ॥

छीपने में तुम मेरा साथ देती थी,
साथ हंसती थी , साथ रोती थी ॥

मज्बूरीयाँ लीख देती हैं जीने का फ़साना
मुझे
याद है मेरा शहर में तुम से बीछ्ड कर आना,

तुम्हारा उस टूटी खीड्की के पीछे छीप कर आंस बहाना ।।
फीर आंसू पूंछ कर मुस्कुराते हुए चाँद की तरह नीकल आना
इंसान की मजबूरियों में सारी कहानी लीखी है
कैसे भूल जाऊं वोही फोटो तुम्हारी. मेरी आँखों में बसी है ।।

आरहा हूँ मैं अपने गाँव तुमसे मीलने , अपनी सुनान तुम्हारी सुन ने
मेरे में तो तुम्हारी याद बसी है, क्या तुम में भी वोही तड़प अब भी बची है ?

तुम ने अगर ठुकराया तो मैं टूट जाउंगा
कसम तुम्हारी,
वापीस शहर नही, ऊपर वाले के पास जाउंगा।।

भरत मीलाप

होश खोये ,जुबा खुले तो इझ्हार बनता है .
शबनमी लब , थर्थाराए तो इकरार बनता है ,
रूह जब रूह से मीले तो प्यार बनता है ,
आप जैसी हस्तिए से हमारा संसार बनता बनता है .....

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होश आये नज़र मीले तो दीदार होता है
आँखों में हया, लबों पे नाम हो तो. करार बढ़ता है
रुहानी प्यार क्या बात है,
यह तो मुकद्दर वालों को मीलता है ।।
संसार में हमारे जेसे हजारों
जब अग्रज और अनुज मीलें
तो भरत मीलाप होता है ॥

काल चक्र

रात की दस्तक दरवाज़े पर है,आज का दीन भी बीत गया है,
था उजाला फीर भी फीर से,अंधियारा ही जीत गया है,
एकांत की चादर ओढ़ कर फीर सेमैं खुद में खोया जाता हूँ,

आंखों के सामने यादों के रथ परमेरा ही अतीत गया है,
सन्नाटों के गुन्जन में दबकर,अपनी ही आवाज़ नहीं आती मुझको,

की सरहद पर लड़ता,आँसू भी अब जीत गया है,
टूटे दर्पण के सामने बैठकर,मैं स्वयं को खोज रहा हू

ही बैठे बैठे जाने,कीतना अरसा बीत गया है...

रात और दीन, दीन और रात
यह चक्र दीन रात चलता है
अकेले में बैठ यादों के रथ पे सवार
अतीत के ख्यालों में इंसान खोता है
कभी हंसता कभी आंसू बहाता
आँखों में सपने संजोता है
कीतना अरसा बीत गया बैठे बैठे, खुदी को याद कर,
टूटे हुए दर्पण में झांकता, 'अरवींद'
हमारे दील के करीब होता है

दोस्त की शिकायत का जवाब

उस हसीं दोस्त का कोई पैगाम नही आया,सोचा में ही कलाम लिख देता हूँ,
उसे अपना हाल- ए- दिल तमाम लिख देता हूँ,
ज़माना हुआ मुस्कुराए हुए,
आपका हाल सुने... अपना हाल सुनाए हुए,
आज आपकी याद आई तो सोचा आवाज़ दे दूं,
अपने दोस्त की सलामती की कुछ ख़बर तो ले लूं

शुक्रिया आपका जो हमारी याद तो आई
हमारे घसीटे हुए कलामों ने आपकी नज़र ए इंनायत तो पाई
बहुत जल्दी आपने कुछ नए दोस्त बना लीये
हम भी राहों में खडे थे दील ए जज्बात लीये
सोचते थे आज भी रहमो करम होगा
दोस्त को आपने वादे का इल्म तो होगा
आज उनका उल्हाना आया, उल्हाना ही सही पैगाम तो आया
उन्होंने आवाज दी उनको हमारी सलामती का ख्याल आया
खबर उन्होने पुंछी हमें दील ए करार आया

शब्दों की महिमा

शब्दों की महिमा

ना होता महाभारत 
अगर द्रौपदी चुप रही होती
सीता ना हरी जाती 

अगर सुपरंखा बहरी हो गयी होती ।।

राम को बनवास नहीं होता 

अगर दशरथ ने शब्द नहीं दीये होते
कृष्ण आज ग्वाले होते 

अगर कंस को, देवों के शब्द नहीं सुने होते ॥

शब्दों की महीमा बड़ी अहम् है,
पार ना पा सका इस से कोई ब्रह्म है

मन्त्र शक्ती किसे नहीं मालुम, 

यह तो शब्दों का जाल है
देवों को जो बुला सके, 

यह ख़ास शब्दों का ही कमाल है ॥

यह शब्द ही हैं जो कराते दोस्ती.
गलत शब्दों बोलोगे तो टूट सकती है खोपडी


गुरुजनों के शब्दों से स्वर्ग बनता है जीवन
प्रेमिका के मीठे शब्दों की मिठास में,

बीत जाता है सारा जीवन|| 

हर जन घर पहुँचते ही सुनना चाहता है 

बच्चों की कीलाकारी को
या माता के मीठे शब्दों को, 

या पत्नी प्यारी को ॥

आज की राजनीती में इसका विशेष महत्त्व है|
पांच साल की गद्दी  शब्द 
का ही गूढ़ रहस्य है ||

शब्द बोलो, वादा करो, वादे पर जितो-

वादा तोड़ो
फिर पांच साल के बाद चुप्पी तोड़ो, 

गुमराह करो या गद्दी छोडो ॥

सब शब्दों का मायाजाल है. 

शब्दों ने, साथिओं, फिरसे किया कमाल है
प्रेम से बोलो जय माता की , 

यह तो उस ही का मायाजाल है...........