Thursday, April 15, 2010

एक वक्त

किसी बहिन बेटी माँ की आबरू पर जान निसार करने का मादा
किसी को वचन देकर जान देकर भी पूरा करने का वादा
धरती, गौ माँ के लिए प्रान न्योछावर करने का जज्बा
अगर देवी प्रगट ना हो तो शीश चढाने की इच्छा

याद करें उन पृथ्वीराज, शिवाजी गुरुतेगबहादुर,छ्त्रसालों को
कैसे भूल जाएँ आज़ादी की जलती
लक्ष्मी, तांतिया, तिलक, गोखले लालाजी
जैसी मशालों को
वन्दे मातरम के नारे पर
गाँधी के इशारे पर
सुभाष के पुकारे पर
भगत के चिंघाड़े पर
खून खौल जाता था
हर औरत का जेवर उत्तर जाता था
दिल दिवाना- और दिमाग सब भूल जाता था

उन आज़ादी के दिवानो
देश की अस्मत के परवानो का खून ही क्या
पूरा बदन खोल जाता था
बदन ही नहीं पूरा
चमन ही डोल जाता था

यारों -आज भी एक वक्त है
रोटी कपडा और मकान फक्त है

हम दो और हमारे दो के नारे पर
ना बहिन
ना भाई,
ना बाप
ना माई
ना पड़ोस
ना नाती
ना यार
ना खुदाई
सिर्फ खुद और लुगाई

बाकी जज्बात जब्त हैं
किसे देशप्रेम, धर्म परोपकार से इश्क है

खून जुर्म होते देख भी खौलता नही
मुख अस्मतें लुटते देख भी बोलता नही
हाथ दान को उठता नही
पैर देव दर्शन को बढ़ता नहीं
क्योंकी सफेदपोश सोच के उठता, करता,बोलता, है
अपनी नोकरी, अपनी छोकरी अपनी टोकरी को बचाने को
दुसरे को बर्बाद करता,
अपनों से किनारा करता
ना जाने किस किस के पैर पड़ता है
ऐसा सफ़ेदपोश आज हर गलीकूंचे में डोलता-मिलता-दिखता है

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