Saturday, April 3, 2010

बेक़सूर बारिश

बारिश बिचारी का क्या कसूर
वोह तो है हमेशा मजबूर

उसका तो काम ही है बरसना भिगोना
कहीं सिर्फ पल्लू कहीं पूरा सराबोर

मिटटी भी बेचारी क्या करे
उस ने तो बारीश की आहट पाते ही होता है महकना

बेदर्द यह आँखे तरसती दीदार को किसी को
कभी कभी काम कर जाती हैं बारीश सा बरसाना

बारिश तो माशूक के सामने रख लेती है इज्ज़त
आंसुओं को ढक बूंदोंमें समेट लेती हें

कर मत नफरत तू बारिश से औ निशीत
यह तो आशिको की कल्पना, राहत और सहेली है

No comments: