Sunday, July 13, 2008

मजनू, फरहाद महिवाल

बेपरवाही से जीने का मजा कुछ और ही आता है
आँख बंद कर प्यार करने को ही इश्क कहा जाता है

जलने वालों ने बख्शा नहीं मजनू फरहाद महिवाल को
फन्हा होने तक मजबूर किया इश्क के दिवानो को

परवाह अगर करते तो मिसाल ए इश्क कहाँ बनते
आज तुम हम है और हम भी परवाह नहीं करते

कल रात तो सितम की रात थी
तुम उधर सोच में डूबे थे तो इधर भी येही बात थी

याद करते तुम्हारी और जालिम ज़माने को कोसते थे
कसम खुद ए इश्क की हम भी येही सोचते थे

तुम जब सामने आओगे तो क़यामत आ जायेगी
सब्र का बांध टूट जायेगा और गुस्से की बाढ़ आजायेगी

लेकिन कसूर तुम्हारा नहीं इस ज़माने का है
लगे हज़ार पहरे फिर भी जिगरा तुम्हरा जो आने का है

इस्तकबाल तुम्हारा करेंगे गुलदस्ता हाथ में होगा
तामिल रात का सोच, हंसी चेहरे पे, तुम्हारे हाथ में हाथ होगा

रात कैसे गुजरे तुम बताओ कम स कम इश्क का आगाज होगा
भूल जायेंगे ज़माने वाले, मजनू, फरहाद महिवाल को, कल हमारा होगा

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