Sunday, July 22, 2018

माँ की लोरी

मेरी प्यारी माँ मुझे आज भी लोरी सुनाती है 
सपनों में आती और मुझे निहारती है ||

जिंदगी यूँ ही बीत जाती है। 
कभी इंतज़ार कराने में, कभी इंतज़ार करने में। 

मां की ममता की छांव।
मेरी जिंदगी का सफल दाव।।

जहां मैं निडर हो हुकुम चलाता था।
हर किसी को मां का डर दिखाता था।

कितनीं हि बार मां को खिजाने, 
डराने को मे छुप जाता था।
मां सहमती, बलाए लेती
सड़क निहारती थी।।
कभी घड़ी देखती,
कभी कारण खोजती,
कभी पास पड़ोस यार दोस्त को खंगालती
डर और गुस्से का मिश्रण बनी मेरी मां
जैसे ही देखती मझे, 
करुणा और रौद्र की प्रतिम बन जाती थी।
भुल जाती थी कुछ पहिले की ली कसमे
सिर्फ मुझे देर हुई क्यों,
कैसे जानने
मेरी प्यारी माँ मुझे आज भी लोरी सुनाती है |

No comments: