Wednesday, July 4, 2018

जिस्मानी - रूहानी भूख

ना तुम ढोकली ना तुम रसगुल्ला
ना तुम मेरी भूख ना गर्म हल्ला।।
तुम बिन मैं अधूरा शायद
मुझ बिन तुम अधूरी।
आओ चलें तारों की छांव में करें उसे पूरी।।
जिस्म की बात कही
जो बिकते खरीदे जाते है
ना मैं उस गली का खरीदार
जहां जिस्म फरोश नजरें गड़ाते हैं।
मैं कृष्ण तुम राधा फिर
तो महज रूहानी कहानी है।
आ बना डालें यह दुनिया
सपनो सी रंगीन
कल की किसने जानी है।
ना तुम खाली
ना मैं रीता
साथ मे तुम तो
भूख बेमानी है।।

*भूख*
मैं सिर्फ जिस्म हूं तुम्हारे लिए।
तुम्हारी भूख का सामान।
गरमा गरम दाल ढोकली कि बगैर चम्मच पूरी कटोरी​ गटक।
ठंडा -ठंडा रसगुल्ला कि एक ही बार में गप्प।
नया -नया अलफ़ेन्ज़ो कि चूस चास के हज़म
गर्म- गर्म काफ़ी कि टेबल पर खतम।
सुनो!
मैं भी हूं इन्सान! मेरी भी है भूख जवान!
किंतु
अलग-अलग हैं हम-तुम अलग-अलग है भूख
मेरी भूख का सामान नहीं है तुम्हारे पास
नहीं है तुम्हारे पास रूह का सुकून।
मैं जानती हूं
खाली हाथ लौटूंगी इस सफ़र में
किंतु तनहा नहीं हूं मैं
साथ में है मेरी भूख अमर,अजर, चिरंतन।
----मीनू मदान

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