Monday, March 29, 2010

वक्त कि हर् शह गुलाम


वक्त कि हर् शह गुलाम, हर कोयी इसे करता सलाम
मस्ती मे भुल जाता अपनो को, करता दुजो का जीना हराम

वक्त का मारा ठोकर खाता, मिलता नही उसे आराम
दुजे का किया वो भुगतता, दोषी सारा मुक्कदर और राम

नानक दुखिया सब सन्सार, दुख कट्ते मिल जुल हरबार
जब तुम रोते कोयी साथ ना रोता, ह्न्सते पुर सन्सार

गरीब की जौरु सब की भाभी, रइस का कुत्ता बिस्कुट खाता
इस दुनिया की रीत येहि, मरने वाले के साथ कोयी नही जाता

दिन के बाद मे रात अगर आती, तो रात के बाद दिन भी आता
फिर येह इन्सान अपने सुख के पल क्यो नही बाट बिताता

कह गये ग्यानि सारे,दुख बाट्ने वाले को सुख हि सुख मिल
ता
कर परवाह होगी परवाह ,येह सत्य मानव क्यो नही अपनाता

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