Tuesday, August 5, 2008

खुशियाँ और गम

ख्वाब और ख्यालों की मलिका हम तुम्हारे गुलाम
हर ल्ह्मा हर पल हम तुम्हे याद करते हैं
खुशियाँ बाटने से बढती असूल जमाने का
गम तो अकेले ही सहने पड़ते हैं

अपनों से शिकवा की बारिश की खबर नहीं दी
बंद कमरे में गैरों के साथ क्यों आप बंद होते है

तुम्हे दिखाने को हंसते रहे हम
छिपाते दिल के आंसू और गम
जब तुम सामने तो हम बाग़ बाग़ होते है

हर रात के बाद दिन आता है
चाँद छिपता सूरज निकल जाता है
दिल के जख्म भरने को
ग़मगीन के भी उत्सव होते है

ख्वाब और ख्यालों की मलिका हम तुम्हारे गुलाम
हर ल्ह्मा हर पल हम तुम्हे याद करते हैं

No comments: