मैं जिंदगी के गीत सुनाता चला गया।
रास्ते के कितने ही पत्थर हटाता गया।
मंजिल दूर थी साथियों
थकान, कमजोरी बाधाएं
खड़ी मुंह बाए
सबको भुलाता चलता गया।।
चला था अकेला
हर मोड पर
साथी मिलते गए
कारवां बनता गया
कटीले, ऊबड़ खाबड़, रेगिस्तान
पहाड़, नदी नाले, भूल भुलैया
कपटी, ईर्षालू, टांग खींचने वाले
धत्ता बताता, पार करता चला गया
आज पीछे मुड़ देखता
शुरुआती दौर
जो मैं, कभी नहीं भूलता
दिखता बहुत दूर
क्षितिज समान,
क्योंकि.......
मैं भाग्यशाली
अपनों का साथ
गुरुजनों और प्रभु का आशीर्वाद
मिलता चला गया।
आज इस मुकाम पर पहुंचा
क्योंकि
हर पल, हर कामयाबी, हर परेशानी
प्रभु चरणों में अर्पण करता चला गया।।
डा श्रीकृष्ण मित्तल
1 comment:
बहुत् सुंदर
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