Friday, June 20, 2008

बकरा

सादर वंदन - देवकीनंदन 
तुमने दफ्तर का जिक्र किया
उस मोटे 'बकरे' का फ़िक्र किया

हाँ, बकरे से याद आया
शायद उसका भी खून लाल होता है
जब कटता है तो चीखता चिल्लाता भी है

कलमा सुनाने को मौलवी वहां होता है
फिर भी बकरा तो वहीँ दौखज पाता
और मौलवी 'वहां' जाता है

जिस लाल धुएँ वाले शहर की आप बात करते हैं
मैं उसका बाशिंदा हूँ .............

लाल आँखे,
लाल फितने,
लाल बच्चे,
लाल ताऊ
लाल कपडा,
लाल हथियार
और ना जाने क्या कया
लाल लाल
इस शहर में देखा है

शर्म से झुकी
लालच से भरी,
आतंक से डरी,
काम से थकी,
गौरी से लड़ी
इंतज़ार में पस्त
चिंता में ग्रस्त
प्रभु आनंद में मस्त
नशे में लस्त
आसमा से गिरते डस्ट से ग्रस्त
हवा का झोंका भी
लाल आस्मां और लाल धुएँ सा दिखता है

इसलिए मैं कहता हूँ ......
बोलने वाले मुख से सहायता करनेवाला
हाथ ज्यादा पाक होता है

1 comment:

हकीम जी said...

कराहों की लहरों में पाशव प्राकृत
वेदना भयानक थरथरा रही है।
मैं उसे सुनने का करता हूँ यत्न