Monday, June 23, 2008
बेवफा के ख़त का जवाब
मैंने एक ख़त लिखा था तुम्हे परेशानी में
कौन जाने की तुम्हे याद भी है की नहीं
मैंने लिखा था जरूरत है सहारे की मुझे
वोह सहारा जो तुम दो तोह इन्य्यात होगी
मैंने लिखा था मेरा कोई नहीं दुनिया में
मैं गई थी आकाश में बादल तनहा
जैसे बसती में किस्सी मोड़ पे पीपल तनहा
जैसे मुरझाया हुआ कमळ कोई पानी में
मैंने लिखा था ये तुझे मालूम न था
"मैं तुम्हे रूह की जागीर नहीं लिख सकती
ख़त तोः लिख सकता हूँ तकदीर नहीं लिख सकती
भूल जाना की खता होगी नादानी में
में एक ख़त लिखा था तुम्हे परेशानी में
कौन जाने की तुम्हे याद भी है या की नहीं
तुमने तो दसिओं ख़त लीखे ते इजहार ए प्यार को
कोन से ख़त को सुना रहे हो अपने दिल दार को
आज भी हमारी रात वोही ख़त पढ़ पढ़ गुजरती है
पढ़ते हैं ख़त और तस्वीर तुम्हारी सामने पसरती है
तुम्हारी परेशानी का सबब फरेबी है
वफादारी तुम से दूर पास लालच और बेसब्री है
इस लिए तुम कहानी सुनाते हो
जब दुसरे की बाँहों में जगह नहीं मिली
तो अपने खतों का वास्ता बताते हो
हम ने तभी तुम्हे आगाह किया था
चिडीया सोने का पिंजरा और सयाद को याद किया था
आज भी कुछ बिगडा नहीं
हम बदले नहीं तुम वापस वहीँ
तुम हसीं हम जवान वल्लाह कया बात है
ख़त मत लिखो चले आओ आज पूनम की रात है
तकदीर की बात करो मत आगाज ए तकदीर हैं हम तुम्हारे
सात जन्म तक का वादा रहा हम ही हैं पीर पैगम्बर तुम्हारे
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1 comment:
मैंने एक ख़त लिखा था तुम्हे परेशानी में
कौन जाने की तुम्हे याद भी है की नहीं
मैंने लिखा था जरूरत है सहारे की मुझे
वोह सहारा जो तुम दो तोह इन्य्यात होगी
" wow, its wonderful poetry'
Regards
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