Tuesday, June 3, 2008

इल्तजा ए महोब्बत

उस ने दूर रहने का मशवरा भी लिखा है,
साथ ही दोस्ती का वास्ता भी लिखा है
उसने ने ये भी लिखा है मेरे घर न आना ,
और साफ लफ्जों में रास्ता भी लिखा है

यह तो सब इश्क के लटके झटके है,
इनकार में ही इसरार छुपा होता है

अपनों से ही रूठना और बेरुखी जतलाना,
माशूक को मनाने का पैगाम होता है

यह तो हमारे इश्क का जलवा है
बेवफाई नहीं प्यार का फलसफा है

तुम कदम रखती हो गर्म जमी पे दिखाने
को यहाँ अंदर हमारा दिल दहक पड़ता है

तुम्हे गुमा है अपने इश्क की बुलंदी का
तो यहाँ कोन जालिम कसर रखता है

आसमा में सीतारे लाखों होंगे
चाँद तेरे जैसा एक ही निकलता है

तू ही खाव्बों की मलिका मेरी
तेरी ही याद में हर पल गुजरता है

एक ही तस्वीर रक्खी है दिल के आयने में हमने बेशक
हम भी जरुर होंगे तुम्हारे दिल के किसी कोने में

हक़ और शुबा छोडो इशारा समझो
जानेमन उड़ के चले आओ

तुम्हारी इंतज़ार में दिल
मशाल की तरह जलता है

तुम्हारे इश्क की बरसात में भीगने को
....................यारां यह बेचारा तडपता है

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