Monday, June 2, 2008
सत्य की राह
क्यों हीमाकत कर रहा है सच बयां करने की तू
देखना टकराएंगे माथे से कुछ पत्थर मीयाँ
पांव नंगे हैं, चले हम ग़र्म रेती पर सदा
और कांधों पर सलीबों का रह लश्कर मियाँ
बड़ी कठिन है डगर सत् पर चलने की
हर सत्यवादी ने दुनिया को झेला है
सच्चाई के लिए चलना अकेला है
परवाह नहीं हमें गर्म रेत के तूफान की
झूट के मुलम्मो की या पत्थरों के सैलाब की
अगर यह हिमाकत है तो भी ठीक है
सलीब कंधो पे हो सच्चाई की जीत है
बहुत झेला है हमने इस जालिम ज़माने को
आतंकियों को अत्याचारियों को झूठे और मक्कारों को
फीर भी आप जैसो ने हौसला बढाया है
साथ चल हमारे- आफ़तों से बचाया है
जान पर खेलेंगे हम आफते झेलेंगे
अहद हमारा है सच की डगर न छोडेंगे
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